मंगलवार, 31 जनवरी 2017




ये हैं छत्तीसगढ़ की जानी सिंगर कमला राठौर जी। 1977 से 1988 इन ग्यारह वर्षों में मुझे रायपुर शहर में काफी नजदीक से आर्केस्ट्रा जगत को देखने का मौका मिला था। उस दौर में पूरे छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव के आर्केस्ट्रा राज भारती और रायपुर की रायपुर संगीत समिति का जबरदस्त बोलबाला था। रायपुर संगीत समिति में कमला राठौर जी की तूती बोलती थी। न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि ओड़िशा व महाराष्ट्र तक में कमला जी के कद्रदान थे। वह लता जी का गाना "ऐ मालिक तेरे बंदे हम..." अपनी मधुर आवाज़ में गातीं थीं, वहीं उषा उत्थुप जी का गाना "तू मुझे जान से भी प्यारा है..." वेस्टर्न अंदाज में गाकर जवां दिलों में खलबली मचा देती थीं। उस कालखंड में गणेश व दुर्गा उत्सव में होने वाले कार्यक्रमों में कमला जी जैसे कलाकारों को सुनने हजारों की भीड़ जुटा करती थी। वक्त ने करवट ली। आर्केस्ट्रा का दौर पीछे होते चला गया। कमला जी शादी होकर गोंदिया (महाराष्ट्र) गईं। वहां से मानो कठिन परीक्षा की शुरुआत हो गई। पति का साथ ज्यादा समय का रहा नहीं।एक बेटा था राकेश जिसके दो बच्चे हुए तुलसी और हुमाण। तूलसी पांच की है और हुमाण साढ़े तीन साल का। राकेश की पत्नी दोनों बच्चों को छोड़कर चली गई। परिवार के बिखरने के ग़म में तीन महीने पहले राकेश चल बसा।अब दोनों मासूम बच्चों के भरण पोषण का जिम्मा इस 65 साल की उम्र में कमला जी पर है। हाल ही में कमला जी दोनों बच्चों को लेकर गोंदिया से रायपुर एक कार्यक्रम में गाने आई हुई थीं। उनकी आंखों के सारे आंसू मानो सुख चुके। कार्यक्रम में स्टेज के पीछे उनकी कहानी सुनकर कुछ लोगों की आंखें नम हो गईं। कमला जी अपनी कठिन संघर्ष भरी दास्तान सुना ही रहीं थीं कि मंच पर से उनके नाम की पूकार हुई। फिर 65 की इस मर्दानी ने जब फिल्म 'नाकाबंदी' का उषा उत्थुप जी का गाना "आर यू रेडी नाकाबंदी..." प्रस्तुत किया तो सैकड़ों की संख्या में वहां मौजूद दर्शकगण उन्हें एकटक देखते रह गए। समय किसी पर मेहरबान रहता है तो किसी के साथ निर्ममता से पेश आता है। कमला जी को उम्र के इस पड़ाव में न जाने और कितना इम्तहान देना बाकी है....

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

रायपुर अजीब मिजाज़ का शहर है। कई बार होता यह है बड़ी से बड़ी बात किनारे लग जाती है और छोटी चीज तिल का ताड़ बन जाती है। पिछले दिनों न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज आई कि राजधानी के कबीर नगर इलाके से 13-14 साल का एक लड़का पांच साल की बच्ची का अपहरण कर ले गया। वहीं अखबारों में सीसी कैमरे से निकली वो फूटेज छपी, जिसमें लड़का सायकल में बिठाकर बच्ची को ले जा रहा है। उस लड़के के नाम से ऐसी हैडिंग लगीं मानो वो लड़का कोई बड़ा पेशेवर अपराधी हो। पुलिस जब एक के बाद एक सीसी कैमरे के फुटेज निकलवाकर उस लड़के के घर तक पहुंची तो कुछ दूसरी ही कहानी सामने आई। पता चला कि लड़का और बच्ची भाई बहन हैं। दोनों का पिता एक है। मां अलग हैं जो अलग जगह पर रहती हैं। लड़की की मां ने पुलिस को यही बताया था कि उसकी बच्ची का अपहरण हो गया है। फिर हर कोई सोच में पड़ गया था कि दिन दहाड़े एक छोटे से लड़के ने बड़ी घटना को अंजाम कैसे दे दिया। बहरहाल इस मामले के सुलझने के बाद अफवाहें जो जोर पकड़ी हुई थीं उन पर विराम लगा। अपहरण समझ लिए गए इस मामले पर से पर्दा उठने में चौबीस घंटे भी नहीं लगे, पर पूर्व में कभी कुछ ऐसे भी वाकये हुए, जिन पर लंबे समय तक सस्पेंस बना रहा था। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो सब कुछ काफी चौंकाने वाला रहा था। रायपुर की एक छात्रा वर्षा दीवान की गायब रहने की खबर करीब दो साल तक मीडिया में बनी रही। इस मामले में मीडिया लगातार पुलिस व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहा था। एक दिन ऐसा आया वर्षा अचानक वापस घर लौट आई और सारी आशंकाओं कुशंकाओं पर विराम लगा। तब लोगों को मालूम हुआ कि वर्षा धर्म और आध्यात्म की तरफ आकृष्ट होकर किसी आश्रम में रहने चली गई थी। इस बीच उसने घर परिवार तक से कोई संपर्क नहीं रखा था, जिससे हर कोई यही मानकर चलते रहा कि वर्षा का अपहरण हो गया। इससे अलग हटकर एक और दिलचस्प किस्सा है। बरसों पहले अखबार के मुख्य पृष्ठ में टॉप पर कलेक्टर का संतरी बना कलेक्टर शीर्षक से एक खबर प्रकाशित हुई। खबर में बताया गया कि दुर्ग जिले के कलेक्टर के यहां संतरी की ड्यूटी करने वाले रामायण साहू ने आईएएस की परीक्षा पास कर ली है। यह सही था कि रामायण ने आईएएस की परीक्षा दिलाई थी पर पता नहीं कैसे यह हवा बन गई कि उसने परीक्षा पास कर ली। अखबार से जुड़े लोगों ने रामायण से संपर्क किया तो उसने भी स्वीकार किया कि वह पास हो गया है। अखबार वाले उत्साह दिखाते हुए रामायण पर तत्कालीन दुर्ग कलेक्टर की प्रतिक्रिया लेने से पीछे नहीं रहे। यहां तक कि एक अखबार का संवाददाता जेल में सजा काट रहे रामायण साहू के पिता से मिलने जा पहुंचा। यह जानने के लिए कि बेटे के कलेक्टर बन जाने पर वह कैसा महसूस कर रहा है। कुछ दिनों के बाद अचानक चौंकाने वाला सच सामने आया कि रामायण ने आईएएएस परीक्षा पास ही नहीं की है। बहरहाल कभी-कभी ऐसी भी चीज सामने आ जाती है, जिस पर लोग सोच कुछ रहे होते हैं और वह आगे जाकर निकलता कुछ और है।

शेर और महेन्द्र बहादुर
प्रदेश में अब तक इस बात को लेकर सस्पेंस कायम है कि सरायपाली राज परिवार के 92 वर्षीय नेता महेंद्र बहादुर सिंह कांग्रेस के साथ हैं या अजीत जोगी की पार्टी के साथ। जब पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं पूर्व विधायक महेन्द्र बहादुर सिंह एक साथ मीडिया के सामने आए तो कांग्रेस के भीतर खलबली मच गई। जोगी ने मीडिया के समक्ष कहा कि पूरे छत्तीसगढ़ में दो ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेर का कलेजा खाया है। मैंने और महेन्द्र बहादुर ने। शेर का कलेजा खाने वाला सौ साल से ज्यादा जीता है। तभी तो महेंद्र बहादुर इस उम्र में भी इतने फिट हैं। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि अजीत जोगी के साथ शेर जाने-अंजाने जुड़ता ही रहा है। जोगी ने अपने जीवन से जुड़े अनुभवों को लेकर स्वर्ण कण जन मेरे प्रेरणा स्रोत नाम से किताब लिखी है- जिसका पहला अध्याय भैरा बैगा है। इस अध्याय की कुछ लाइनें शेर पर हैं। इस अध्याय में एक ऐसा चित्र भी देखने मिलता है जिसमें जोगी अपने पिता के साथ हैं और पीछे शिकार किए गए शेर की मृत देह पड़ी हुई है। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय अखबारों में छपा एक विज्ञापन काफी चर्चा में रहा था। उस विज्ञापन में जोगी के बने स्कैच के नीचे लिखा था कि मैं छत्तीसगढ़ का शेर हूं। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के स्कैच के नीचे लिखा था मैं छत्तीसगढ़ का सेवक हूं। राजनीति की गहरी समझ रखने वालों का मानना है कि इस विज्ञापन का जनमानस पर गहरा असर पड़ा। उस चुनाव के बाद भाजपा जब तीसरी बार सत्ता में आई तो ज्यादातर लोगों ने चुटकी लेते हुए यही कहा था, शेर अपनी जगह पर ही बैठे रहा और सेवक बाजी मार ले गया।

डॉ. देवांगन को चैन नहीं
बिरगांव नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश देवांगन का दस हजार लोगों की भीड़ के बीच पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस में प्रवेश करना अपने आप में बड़ी राजनीतिक खबर रही। बिरगांव अब नगर निगम बन गया है। इसके पहले करीब बारह साल नगर पालिका था। डॉ. देवांगन दो बार बिरगांव पालिका अध्यक्ष रहे। दोनों कार्यकाल में वे काफी सुर्खियों में रहे। उनके कार्यकाल में पालिका में भारी राजनीतिक उठापटक होती रही थी। एक बार जोरदार नाटकीय घटनाक्रम सामने आया। प्रदेश की भाजपा सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे वालों को दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की। वहीं डॉ. देवांगन की तरफ से ऐलान हुआ कि हमारी पालिका गरीबों को एक रुपये किलो चावल देगी। इस अजीबोगरीब फैसले से प्रदेश सरकार को हरकत में आना पड़ा। डॉ. देवांगन सरकार पर गरीबों का हक मारने का आरोप लगाते हुए लाव लश्कर के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निवास का घेराव करने निकल पड़े थे, जिसमें उनकी गिरफ्तारी हुई। इसके बाद ऐसा सरकारी शिकंजा कसा कि आर्थिक अनियमितता के आरोप में देवांगन को जेल तक जाना पड़ा। बिरगांव जब पालिका से निगम बना तो डॉ. देवांगन कांग्रेस की टिकट पर अपनी भतीजा बहू को महापौर चुनाव लड़वाने से पीछे नहीं रहे। बहू को हार का सामना करना पड़ा। बिरगांव क्षेत्र में अब राजनीतिक फिज़ा काफी बदल चुकी है। डॉ. देवांगन कांग्रेस छोड़ जोगी की पार्टी का दामन थाम चुके हैं। माना जा रहा है डॉ. देवांगन और उनकी मंडली ने रायपुर ग्रामीण के कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा को टारगेट में रखा है। निश्चित रूप से सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में शर्मा के सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी।

कौन सा गुनाह कर दिया दीमक ने
खबर यह कि महासमुन्द कलेक्टोरेट के किसी कमरे में रखी पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवानी की आत्मकथा मेरा देश को दीमक खा गई। बताते हैं करीब आठ साल पहले सैकड़ों की संख्या में यह किताब मंगाई गई थी। किताबें जस की तस पड़ी रहीं। खोलकर देखने की फुरसत किसी के पास नहीं थी। प्रदेश में आलम यह है कि किसी के हिस्से में दूध-दही है तो कहीं पर दो पैर वाले गधे डटकर खीर खा रहे हैं। मेवा मिष्ठान खाने से फुरसत मिले तब तो अडवानी जैसे महापुरुष को पढ़ने का समय निकले। जब गधों के हिस्से में खीर आ सकती है तो दीमकों ने पुस्तकों को चाटकर कौन सा बड़ा गुनाह कर दिया।
  



गुरुवार, 8 सितंबर 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में एक होम्योपैथी डॉक्टर अनिरुद्ध चटर्जी की गिरफ्तारी इन दिनों सुर्खियों में है। वह अपने बंगले के तीसरे माले में हथियारों को मॉडिफाई करता था, रिपेयरिंग करता था। उसकी इस गुप्त मॉडिफाई फैक्ट्री में बंदूक के अलावा और भी तरह-तरह के हथियार मिले। राजनीतिक व प्रशासनिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि नेताओं से लेकर पुलिस विभाग के लोग अनिरुद्ध के पास हथियार मॉडिफाई कराने आते थे। पुलिस उससे लगातार पूछताछ कर रही है। हो सकता है आगे कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आएं। बहरहाल अनिरुद्ध के पड़ोसी से लेकर उसके पेशेन्ट और शहर में और भी उसे जानने वाले बहुत से लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि वो ये सब काम कैसे कर सकता है। अनिरुद्ध के गुरू डॉ. बी.सी. गुप्ता स्वयं शहर के जाने माने होम्योपैथी चिकित्सक हैं, जिनकी अपने शिष्य के बारे में यही राय है कि वह एक नेक बंदा है। गलत शौक ने उसे आज ज़िंदगी की इस राह में ला खड़ा किया है। रायपुर शहर से कई ऐसे डॉक्टर निकल चुके हैं, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी। ज्यादा दिन नहीं हुए, जासूसी उपन्यास के जाने-माने लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक एक कार्यक्रम में शिरकत करने रायपुर आए हुए थे। उन्होंने श्रोताओं के बीच खुले मन से कहा कि मुझे इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं कि आज मैं यहां रायपुर के डॉक्टर जावेद अली के कारण जिंदा खड़ा हूं। उन्होंने ही मेरी हार्ट की सर्जरी कर जान बचाई थी। आज भी उन्हें फोन लगाकर डॉक्टरी सलाह लेते रहता हूं। चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष योगदान के कारण रायपुर के जाने-माने डॉक्टर अरुण दाबके को पद्मश्री मिली। इस तरह रायपुर के चिकित्सा जगत का और भी बहुत सा उजला पक्ष सामने आते रहा है, पर कभी कुछ ऐसा भी हुआ कि डॉक्टरी के पेशे से जुड़े लोग कानून के शिकंजे में जा फंसे। बरसों पुरानी बात है जब रायपुर में जाली नोट कांड का बड़ा मामला उजागर हुआ था, जो कि देश भर में सुर्खियों में रहा था। उस कांड में शहर के कुछ बड़े नामी-गिरामी लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, जिसमें दांत का डॉक्टर माकोहब केन भी था। चाइना मूल के इस डॉक्टर की रायपुर में डिस्पेंसरी होती थी और उसकी पहचान मिलनसार व्यक्ति के रूप में थी। डॉ. केन जाली नोट कांड में ऐसा फंसा कि उसके कई साल जेल में गुजरे। रायपुर के एक सघन मोहल्ले में एक डॉक्टर हुआ करता था, जिसकी कई बार नशीला पदार्थ जिंजर बेचने के कारण गिरफ्तारी हुई। जिस रायपुर शहर से चिकित्सा के क्षेत्र में कई नगीने निकले तो कुछ ऐसे डॉक्टर भी हुए जो जाने-अंजाने या कह लें शौक के कारण अपराध की दुनिया के दलदल में जा धंसे।


आतंकवाद पर श्री श्री रविशंकर की चिंता
इस खबर ने कितने ही लोगों का ध्यान खींचा कि हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी बुरहान वानी के पिता मुजफ्फर वानी दो दिन आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के बेंगलुरु आश्रम में रहे। श्री श्री रविशंकर ने ट्विटर पर अपनी और बुरहान के पिता की तस्वीर पोस्ट की और लिखा कि हमने दो दिन कई मसलों पर बातचीत की। दूसरी तरफ मुजफ्फर वानी ने कहा कि मैं किसी बीमारी का इलाज कराने श्री श्री के आश्रम रहा। श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व का एक ये भी पहलू सामने आते रहा है कि वे देश से जुड़े आतंकी मसलों पर बातचीत करने की पहल ज़रूर करते रहे हैं। कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने श्री श्री रविशंकर से पूछा था कि यदि धर्म एवं आध्यात्म क्षेत्र से जुड़े गुरुजन नक्सलियों से बात करें तो क्या समस्या का समाधान निकल सकता है। श्री श्री रविशंकर ने मुख्यमंत्री से कहा था कि यदि नक्सलियों से बातचीत की स्थित बनती है तो इसके लिए वे तैयार रहेंगे। यही नहीं रायपुर में हुए आर्ट ऑफ लिविंग के एक कार्यक्रम में मंच से श्री श्री ने कहा था कि नक्सली हमसे अलग नहीं हैं। हमारे ही भाई बंधु हैं। यदि कोई भटक जाए तो सहानुभति रखते हुए उसे सही रास्ते पर लाया जा सकता है। देश में जो मौजूदा गंभीर हालात हैं उन पर श्री श्री की तरह और भी धर्म तथा आध्यात्म गुरु अपनी राय देते चलें तो हो सकता है कि उसका कहीं ना कहीं असर पड़ते दिखे।


गागड़ा को नक्सली धमकी
छत्तीसगढ़ के वन मंत्री महेश गागड़ा को जान से मारने एक बड़े नक्सली नेता की ओर से पत्र जारी हुआ है, जिसकी चर्चा धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर से लेकर रायपुर तक में है। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार गागड़ा की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतिंत है। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने निशाना साधते हुए कहा है कि गागड़ा इस धमकी का हवाला देकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें अतिरिक्त सूरक्षा मिले और बस्तर जैसे आदिवासी इलाके जहां से वे हैं वहां के लोगों से उनकी दूरी बनी रहे। वहीं जवाब में गागड़ा ने बघेल पर सवाल दागा है कि मुझे मंत्री बनने के बाद से जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है, इससे और बड़ी कोई सुरक्षा मांगी जा सकती है क्या? बहरहाल सच्चाई तो यही है कि गागड़ा जिस बीजापुर क्षेत्र से चुनकर आते हैं वह धुर नक्सली इलाका है। भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल में वे न सिर्फ विधायक बल्कि संसदीय सचिव भी थे। तब भी उन पर नक्सली हमले का भारी खतरा मंडराया रहता था। यहां तक की उस समय उन्हें शासन एवं प्रशासन की तरफ से कहा भी गया था कि अपने क्षेत्र में ज्यादा समय न रहा करें। कभी भी हमला हो सकता है। नक्सलवाद से व्यथित गागड़ा ने कुछ साल पहले राजधानी रायपुर में हुए एक कार्यक्रम में मंच से कहा था कि इस भूलावे में न रहें कि नक्सलवाद बस्तर तक ही सीमित है। वह शहर तक पहुंच गया है। इन दिनों जिस तरह यह खबर हवा में तैर रही है कि रायपुर के एक बड़े अस्पताल में नक्सली इलाज कराने आते रहे हैं, उससे गागड़ा की बात को बल मिलता है।


रायपुर को भी हनी सिंग की ज़रूरत
देश के एक प्रतिष्ठित अखबार में पिछले दिनों यह खबर पढ़ने में आई कि नैनीताल के धारी गांव में किसान जंगली सुअरों से अपनी फसल को बचाने के लिए खेतों में लाउड स्पीकर से हनी सिंग के गाने बजवा रहे हैं। इसका उन्हें फायदा भी मिला है। सुअरों ने खेतों से दूरी बना ली है। राजधानी रायपुर में बरसों से कुत्तों का आतंक तो रहा ही है और अब सुअर भी बढ़ गए हैं। रायपुर के बहुत से जागरुक नागरिक अब मजाकिया लहजे में कहते नज़र आ रहे हैं कि क्यों ना हनी सिंग के गानों वाला फार्मूला यहां भी आजमाया जाए। हो सकता है यहां भी हनी सिंग को सुनकर कुत्ते और सुअर इधर उधर भागते नज़र आएं।


रविवार, 21 अगस्त 2016

प्रिय मित्रों ,
'मिसाल' का नया अंक आप तक पहुंचाना हमारे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। इस बार कवर पेज पर है 2 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही छत्तीसगढ़ी फिल्म 'प्रेम सुमन'। फिल्म का सब्जेक्ट प्रेम कहानी है और यह फैमिली ड्रामा भी है। इसके अलावा आपको पढ़ने मिलेंगे महान फिल्मकार किशोर साहू पर तीन लेख। दो लेख पर गाज़ियाबाद के वरिष्ठ पत्रकार इक़बाल रिज़वी की कलम चली है, वहीं एक मेरा लिखा हुआ है। इस बात को कम लोग जानते हैैं कि 'गाइड' जैसी महान फिल्म में एक्ट्रेस वहीदा रहमान के पति की भूमिका निभाने वाले किशोर साहू हमारे अपने छत्तीसगढ़ के थे। वे न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि सिद्धहस्त डायरेक्टर और ख्यातिप्राप्त लेखक भी थे। मित्रों , आप लोग जिस तरह हौसला अफजाई करते रहे हैं उसी का नतीजा है कि 'मिसाल' के हर अंक में कुछ न कुछ अलग हटकर देने में हम कामयाब रहे हैं। आपका प्रेम सदैव बने रहे, इसी अपेक्षा के साथ...

रविवार, 14 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में फर्जी आईबी अफसर जो पकड़ा गया उस पर चर्चा का दौर अभी थमा नहीं है। इस नकली आईबी अफसर के पुलिस गिरफ्त में आने की खबर सबसे पहले सोशल मीडिया में चली। सोशल मीडिया में यही चलते रहा  कि पकड़ा गया फर्जी आईबी अफसर खुद को मुख्य सचिव विवेक ढांढ का रिश्तेदार बता रहा है। धीरे-धीरे उसकी बहुत सी कहानियां सामने आती चली गईं। छत्तीसगढ़ सरकार के कुछ मंत्रियों के साथ वह फोटो खिंचवा रखा था। नेताओं की नज़रों में खुद को चढ़ाए रखने वह चम्पारण्य में हुए भाजपा के चिंतन शिविर तक में पहुंच गया था। वह कई-कई दिनों तक रायपुर की होटलों में टिके रहता था। फर्जी परिचय पत्र के आधार पर सर्किट हाउस में ठहरा। मंत्रियों के साथ सेल्फी लेना उसका शौक था। उसकी सगाई की पार्टी भी चर्चा में है। इसके अलावा उसकी और भी कहानियां सामने आ रही हैं। हावड़ा का रहने वाला यह युवक रायपुर में कैसे धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमाते चला गया और इसके पीछे कौन लोग हैं पुलिस इसका पता लगाने में जुटी है। बड़े ठगों और जालसाजों से पहले भी रायपुर शहर का पाला पड़ते रहा है। बरसों पहले शहर में श्रीराम सोनी नाम के जालसाज की चर्चा खूब हुआ करती थी। बताते हैं वह कुछ समय तक रायपुर जेल में बंद रहा था। जाली सिग्नेचर में उसकी मास्टरी थी। यहां तक की पुलिस से बचने लिए उसको कार का नंबर तक बदलने में देर नहीं लगती थी। श्रीराम सोनी व्दारा इस्तेमाल की जाने वाली कार काफी समय तक पुलिस लाइन में लोगों के आकर्षण का केन्द्र रही थी। उस कार की नंबर प्लेट पर अलग-अलग नंबर साफ दिख जाया करता था। रुपये को डॉलर में बदलने का झांसा देने वाले नाइजीरिया के ठग किसी समय रायपुर तक पहुंच गए थे और पुलिस के हाथों पकड़े गए थे। मानो ठगों और जालसाजों के लिए रायपुर शहर की जमीन हमेशा से उर्वरा रही हो।

राजधानी और आवारा कुत्ते
राजधानी रायपुर में 9 अगस्त की वह शाम भयावह थी। एक आवारा कुत्ता अचानक खूंखार हो गया और दौड़ा-दौड़ाकर 24 लोगों को काट खाया। बच्चे से लेकर बूढ़े तक उस आवारा कुत्ते के पागलपन के शिकार हुए। इस घटना ने पूरे शहर को सोचने पर मजबूर कर दिया है। रायपुर शहर की पहचान मच्छरों के कारण काफी पहले से होती रही है। अब आवारा कुत्तों के कारण भी होने लगी है। राजधानी ऐसा कोई इलाका नहीं बचा होगा जहां आवारा कुत्तों की भीड़ न हो। रायपुर नगर निगम कोई आज नहीं पिछले करीब चौदह सालों से आवारा कुत्तों की नसबंदी का राग अलाप रहा है। सच्चाई यह है कि पिछले करीब पांच सालों में राजधानी में करीब साढ़े पांच हजार कुत्तों की ही नसबंदी हुई है, जिसे संतोषप्रद नहीं माना जा रहा। नगर निगम रायपुर शहर को आवारा कुत्तों से मुक्ति दिलाने एक और उपाय किया था। इनकी धरपकड़ कर शहर से बहुत दूर छोड़ आने का। यह उपाय ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुआ। उल्टे विधानसभा तक में इस उपाय की आलोचना हुई। महासमुन्द के विधायक डॉ. विमल चोपड़ा ने विधानसभा में कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि रायपुर शहर के आवारा कुत्तों को मेरे विधानसभा क्षेत्र में ले जाकर छोड़ा जा रहा है, जिस पर गहरी आपत्ति है। बहरहाल अवारा कुत्तों ने रायपुर के लोगों का चैन से जीना हराम कर रखा है।

चाचा-भतीजे के बीच ये कैसी दरार
राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां छोटी-छोटी बातें भी बड़ी लगने लगती हैं। ताजा उदाहरण खल्लारी के पूर्व विधायक
परेश बागबाहरा एवं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा का है। परेश कांग्रेस छोड़ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी से जुड़ गए हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के सदस्यता अभियान प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दूसरी तरफ उनके सबसे चहेते भतीजे अंकित बागबाहरा को अचानक बागबाहरा ब्लाक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष का पद दे दिया गया है। यानी एक ही घर में परस्पर दो विरोधी पार्टी के लोग हो गए हैं। बागबाहरा, महासमुन्द से लेकर रायपुर तक इस बात पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है कि चाचा-भतीजे के रास्ते अलग हो सकते हैं। चाचा भतीजे के बीच कितना गहरा प्रेम रहा है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि परेश ने अंकित को लेकर भोला छत्तीसगढ़िहा नाम से छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में खुद परेश ने रोल किया था। रील लाइफ में एक दूसरे के इतने करीब दिखने वाले चाचा-भतीजे रियल लाइफ में कैसे एक दूसरे से इतने दूर नज़र आ रहे हैं, इसे लोग अपने-अपने ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं।

इच्छाधारी नाग से शादी की इच्छा
छत्तीसगढ़ प्रदेश में अजीबोगरीब घटनाएं होना आम बात है। भैयाथान जनपद के ग्राम कसकेला में अनिता नाम की युवती ने घोषणा की थी कि वह इच्छाधारी नाग से विवाह रचाने जा रही है। वह नाग के साथ नाग लोक जाएगी। नाग पंचमी वाले दिन इस भीड़-भाड़ को देखने करीब दस हजार लोग जमा हो गए थे। किसी तरह का चमत्कार नहीं हुआ। अब वह युवती अपनी पढ़ाई में ध्यान देना चाह रही है। प्रदेश में अंधविश्वास फैलाने वाली घटनाओं की कभी कमी नहीं रही। कितने ही उदाहरण सामने आ चुके हैं जब टोनही के शक पर किसी के साथ गाली गलौच से लेकर मारपीट तक के प्रकरण दर्ज होते रहे हैं। भगवान दिखाने के नाम पर लूट जब तब होती रही है।   


रविवार, 7 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सूप्रीम कोर्ट के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। वहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर सरकारी बंगला खाली करने का आदेश कोर्ट से हुआ है।  सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में फैसला सुनाया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में रहने का कोई अधिकार नहीं। हालांकि कोर्ट का यह फैसला उत्तरप्रदेश के लिए आया है, लेकिन हलचल सभी राज्यों में मची हुई है। छत्तीसगढ़ इससे परे नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बने ज्यादा नहीं 15 साल नौ महीने ही हुए हैं। यहां पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर फिलहाल एक ही शख्सियत हैं अजीत जोगी। छत्तीसगढ़ में इन दिनों चर्चा घर किए हुए है कि कोर्ट के फैसले का असर यहां भी दिखेगा और जोगी को सागौन बंगला खाली करना पड़ सकता है। जोगी ने इस बंगले में शिफ्ट होने के बाद इसे अनुग्रह नाम दिया, पर पुराने लोग आज भी इसे सागौन बंगला ही कहते हैं। सागौन बंगला अपने आप में इतने रहस्य समेटे हुए है कि इस पर एक रोचक उपन्यास लिखा जा सकता है। रायपुर शहर के बहुत से पुराने लोग जो कुछ-कुछ सागौन बंगले के बारे में जानते हैं वे यही कहते हैं कि इसमें बड़ा वास्तु दोष है। इस बंगले में रहे कुछ ऐसे नाम हैं जो हाशिये पर चले गए। बात जुगल किशोर साहू से शुरू होती है, जो वर्तमान वरिष्ठ कांग्रेस विधायक एवं पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू के छोटे भाई हैं। जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था, जुगल किशोर साहू रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष थे। तब रायपुर जैसे छोटे शहर में सांसद, विधायक एवं महापौर के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बहुत बड़ी हस्ती हुआ करती थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद जुगल किशोर साहू को सागौन बंगला अलॉट हुआ था। तब जुगल किशोर काफी युवा थे और उनकी मित्र मंडली से रात में सागौन बंगला गुलजार रहा करता था। रात वाली उस महफिल में मीडिया जगत के कुछ लोग भी हुआ करते थे। जुगल की मीडिया के लोगों से निकटता ही वजह थी कि उस समय रायपुर के अखबारों में उन्हें काफी स्पेस मिला करता था। राजनीति में जुगल का नाम इतने ऊपर तक पहुंच गया था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस के खिलाफ मैदान में उतारा। जुगल लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन उस समय उनके नाम की चर्चा रायपुर से लेकर राजधानी भोपाल तक हुई थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस सहज और सरल युवा नेता का राजनीतिक सितारा बहुत जल्दी अस्त हो जाएगा। जिला पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जुगल सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूर होते चले गए। जुगल के उस राजनीतिक पतन को देखते हुए कहा जाने लगा कि सागौन बंगले के साथ कुछ तो ऐसा है कि वहां रहने वाला अच्छा भला आदमी किनारे लग जाता है। इसकी एक और मिसाल आगे देखने को मिली। सन 2000 में आईएएस अफसर विवेक देवांगन रायपुर नगर निगम के कमिश्नर होकर आए। उन्हें सागौन बंगला अलाट हुआ। देवांगन ने रायपुर नगर निगम का चार्ज लेने के कुछ ही हफ्तों के भीतर साबित कर दिखाया था कि उनका विज़न कितना तगड़ा है। वे नगर निगम में एक तरह से कम्यूटर क्रांति लाने की तैयारी में थे। साथ ही रायपुर शहर को नया स्वरूप प्रदान करने की परिकल्पना भी उनके पास थी। कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि तत्कालीन महापौर तरुण चटर्जी और शहर के एक-दो अन्य रसूखदार लोगों ने देवांगन को यहां से हटाने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। देवांगन विरोधी मुहिम चलाने वाले लोग अपने मंसूबे में कामयाब रहे। साल भर में ही देवांगन को रायपुर नगर निगम से विदा होना पड़ा। साथ ही सागौन बंगले से भी। देवांगन पर अचानक तबादले की गाज गिरने के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ ली कि हो न हो सागौन बंगले में जरूर कोई गड़बड़ है। यही नहीं नंद कुमार साय जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले नेता प्रतिपक्ष बने तो उन्हें सागौन बंगला देने की बात हुई थी, पर उन्होंने इसका नाम सुनते ही दूर से ही हाथ जोड़ लिया। दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। अजीत जोगी के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं रही, डॉ. रमन सिंह प्रदेश के नये मुखिया बने। जोगी मुख्यमंत्री कार्यकाल में उस बंगले में रहे थे, जहां वे रायपुर कलेक्टर की हैसियत से पहले कभी लंबे समय तक रह चुके थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जोगी की अपने उसी पुराने बंगले में बने रहने की इच्छा थी। कई दिनों तक उन्होंने इस बंगले को खाली नहीं किया था और पहली बार मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह के हिस्से में लंबा इंतजार आया था। अंततः परिस्थितियां ऐसी बनी कि जोगी को वह बंगला खाली करना पड़ा और डॉ. रमन सिंह वहां शिफ्ट हुए। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते शासन ने जोगी को सागौन बंगला अलाट किया। तब राजनीतिक एवं प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का दौर शुरू हो गया था कि यह सागौन बंगला न जाने जोगी को किस स्तर तक प्रभावित करेगा। बहरहाल जोगी पिछले साढ़े बारह सालों से सागौन बंगले में हैं। इन साढ़े बारह सालों में उन्होंने न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव देखे। उसके पीछे कारण चाहे जो रहा हो। बहरहाल जोगी ने मीडिया वालों से यही कहा है कि वे कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। यदि राज्य सरकार कोर्ट के निर्णय को यहां लागू करती है तो उसका वे पालन करेंगे।

विधानसभा अध्यक्ष न
रहें बंगला तो रहेगा
विधानसभा अध्यक्ष काफी गरिमामय पद है। जो एक बार विधानसभा अध्यक्ष बनता है अगले कार्यकाल में वह इस पद पर रहे या ना रहे उसके लिए सरकारी बंगला ज़रूर सुरक्षित रहता है। पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल थे। उनका अध्यक्षीय कार्यकाल तीन साल का रहा था। वे अध्यक्ष पद पर नहीं थे, तब भी उन्हें सरकारी बंगला मिला हुआ था। शुक्ल के बाद डॉ. प्रेमप्रकाश पांडे पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ. पांडे हार गए थे। यानी वे विधायक भी नहीं थे। लेकिन राजधानी के पॉश इलाके शंकर नगर रोड पर उन्हें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से बंगला अलाट था। डॉ. पांडे के बाद धरमलाल कौशिक पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2013 के विधानसभा चुनाव में कौशिक को हार का सामना करना पड़ा। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से उन्हें रायपुर में सरकारी बंगला मिला हुआ है। यानी एक बार कोई विधानसभा अध्यक्ष बना तो आगे वह इस पद पर रहे या न रहे, सरकारी बंगला पास में रहना पक्का है।

पैर छूने की परंपरा पर प्रहार
हाल ही में चंपारण्य में हुए भाजपा के महाशिविर में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने अपने संबोधन में काफी वजनदार बात कही कि राजनीतिक स्वार्थवश कोई किसी के पैर न छुए। कौशिक के इस वचन को काफी दाद मिली। और क्यों न मिले छत्तीसगढ़ की राजनीति में बरसों से पैर छुने और छुआने का सिलसिला जो चले आ रहा है। किसी समय में छत्तीसगढ़ की राजनीति में पं श्यामाचरण शुक्ल एवं विद्याचरण शुक्ल की तूती बोलती थी। विद्या भैया का पैर छुने वालों की बहुतायत थी। एक बार मीडिया वालों ने पैर छुने वाली संस्कृति को लेकर विद्या भैया से सीधे सवाल कर दिया था। इस सवाल पर वे उखड़ गए थे और उन्होंने कहा था कि मुझे पैर पड़ने वाली संस्कृति से नफरत है। इसे दिलचस्प संयोग कहें विद्या भैया के इस कथन के कुछ ही दिनों बाद रायपुर के एक सम्मानित अखबार का वरिष्ठ फोटोग्राफर अपने कैमरे में ऐसी तस्वीर कैद करने में कामयाब रहा, जिसमें भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाला एक नेता विद्या भैया के पैर छूते नज़र आ रहा था। विद्या भैया ने फोटोग्राफर को तस्वीर खींचते देख लिया था और उस पर काफी नाराज़ भी हुए थे। मीडिया वालों के भी अपने कुछ उसूल होते हैं। पैर पड़वाने वाली वह तस्वीर अखबार में प्रकाशित हुई और उस पर शहर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। बहरहाल भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, किसी बड़े नेता की निगाहों में चढ़ने के लिए पैर छुने की परंपरा आज भी बनी हुई है। धरमलाल कौशिक ने चंपारण्य में जो बातें कही उस पर हर राजनीतिक पार्टी को विचार ज़रूर करना चाहिए।

डॉ. रमन का फिल्मी ज्ञान
चंपारण्य में भाजपा के प्रशिक्षण महाशिविर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का नाम लेते हुए कहा कि यह जोड़ी शोले फिल्म की जय और वीरू की जोड़ी की तरह है, जो राज्य में कई तरह के झूठ को सच प्रचारित करने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री के इस कथन पर राजनीतिक जगत में भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। कांग्रेस की तरफ से बयान जारी हुआ कि यही जय और वीरू की जोड़ी गब्बर सिंह के राज्य का खात्मा करेगी। डॉ. रमन सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि बरसों पहले जब उनकी राजनीतिक व्यस्तता नहीं हुआ करती थी तब फिल्म देखने के लिए वह खूब समय निकाला करते थे। यहां तक कि काफी समय तक डॉ. साहब के बाल कानों पर ठीक उसी तरह झूलते नज़र आया करते थे जैसे कि जय यानी अमिताभ बच्चन के आया करते थे। डॉ. साहब के लंबे बालों वाली तस्वीर आज भी कितने ही लोगों के फेस बुक से इधर से उधर होती रहती है। डॉ. साहब के फिल्मों के प्रति प्रेम की बानगी हाल ही में रायपुर में हुए एक उस कार्यक्रम में देखने को मिली, जिसमें फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर मौजूद थे। डॉ. साहब ने मंच से कहा कि बरसों पहले पालेकर जी को मैं फिल्मों जैसे देखा करता था वे आज भी उसी तरह हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। बहरहाल प्रदेश की जनता अब यह अच्छी तरह समझ पा रही है कि डॉक्टर साहब का फिल्मों के प्रति न सिर्फ गहरा लगाव है बल्कि उनका फिल्मी ज्ञान भी तगड़ा है।