शनिवार, 8 सितंबर 2012
डरिये...
शब्दों के कलाबाजों से
हरदम यही तो साबित करने में लगे रहे
ये कलाबाज
इनके शब्दों के भरोसे ही चल रही दुनिया
क्या इतिहास गवाह नहीं
इनकी कारगुजारियों का
शब्दों का बखेड़ा खड़ा करने वालों का
क्यों नहीं किनारे लगा दिए जाते
ये बौद्धिक तानाशाह
क्या बौद्धिक आतंक
किसी खून खराबे से कम है...
0 अनिरुद्ध दुबे
8 सितम्बर 2012 शनिवार
शब्दों के कलाबाजों से
हरदम यही तो साबित करने में लगे रहे
ये कलाबाज
इनके शब्दों के भरोसे ही चल रही दुनिया
क्या इतिहास गवाह नहीं
इनकी कारगुजारियों का
शब्दों का बखेड़ा खड़ा करने वालों का
क्यों नहीं किनारे लगा दिए जाते
ये बौद्धिक तानाशाह
क्या बौद्धिक आतंक
किसी खून खराबे से कम है...
0 अनिरुद्ध दुबे
8 सितम्बर 2012 शनिवार
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