शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

रायपुर अजीब मिजाज़ का शहर है। कई बार होता यह है बड़ी से बड़ी बात किनारे लग जाती है और छोटी चीज तिल का ताड़ बन जाती है। पिछले दिनों न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज आई कि राजधानी के कबीर नगर इलाके से 13-14 साल का एक लड़का पांच साल की बच्ची का अपहरण कर ले गया। वहीं अखबारों में सीसी कैमरे से निकली वो फूटेज छपी, जिसमें लड़का सायकल में बिठाकर बच्ची को ले जा रहा है। उस लड़के के नाम से ऐसी हैडिंग लगीं मानो वो लड़का कोई बड़ा पेशेवर अपराधी हो। पुलिस जब एक के बाद एक सीसी कैमरे के फुटेज निकलवाकर उस लड़के के घर तक पहुंची तो कुछ दूसरी ही कहानी सामने आई। पता चला कि लड़का और बच्ची भाई बहन हैं। दोनों का पिता एक है। मां अलग हैं जो अलग जगह पर रहती हैं। लड़की की मां ने पुलिस को यही बताया था कि उसकी बच्ची का अपहरण हो गया है। फिर हर कोई सोच में पड़ गया था कि दिन दहाड़े एक छोटे से लड़के ने बड़ी घटना को अंजाम कैसे दे दिया। बहरहाल इस मामले के सुलझने के बाद अफवाहें जो जोर पकड़ी हुई थीं उन पर विराम लगा। अपहरण समझ लिए गए इस मामले पर से पर्दा उठने में चौबीस घंटे भी नहीं लगे, पर पूर्व में कभी कुछ ऐसे भी वाकये हुए, जिन पर लंबे समय तक सस्पेंस बना रहा था। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो सब कुछ काफी चौंकाने वाला रहा था। रायपुर की एक छात्रा वर्षा दीवान की गायब रहने की खबर करीब दो साल तक मीडिया में बनी रही। इस मामले में मीडिया लगातार पुलिस व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहा था। एक दिन ऐसा आया वर्षा अचानक वापस घर लौट आई और सारी आशंकाओं कुशंकाओं पर विराम लगा। तब लोगों को मालूम हुआ कि वर्षा धर्म और आध्यात्म की तरफ आकृष्ट होकर किसी आश्रम में रहने चली गई थी। इस बीच उसने घर परिवार तक से कोई संपर्क नहीं रखा था, जिससे हर कोई यही मानकर चलते रहा कि वर्षा का अपहरण हो गया। इससे अलग हटकर एक और दिलचस्प किस्सा है। बरसों पहले अखबार के मुख्य पृष्ठ में टॉप पर कलेक्टर का संतरी बना कलेक्टर शीर्षक से एक खबर प्रकाशित हुई। खबर में बताया गया कि दुर्ग जिले के कलेक्टर के यहां संतरी की ड्यूटी करने वाले रामायण साहू ने आईएएस की परीक्षा पास कर ली है। यह सही था कि रामायण ने आईएएस की परीक्षा दिलाई थी पर पता नहीं कैसे यह हवा बन गई कि उसने परीक्षा पास कर ली। अखबार से जुड़े लोगों ने रामायण से संपर्क किया तो उसने भी स्वीकार किया कि वह पास हो गया है। अखबार वाले उत्साह दिखाते हुए रामायण पर तत्कालीन दुर्ग कलेक्टर की प्रतिक्रिया लेने से पीछे नहीं रहे। यहां तक कि एक अखबार का संवाददाता जेल में सजा काट रहे रामायण साहू के पिता से मिलने जा पहुंचा। यह जानने के लिए कि बेटे के कलेक्टर बन जाने पर वह कैसा महसूस कर रहा है। कुछ दिनों के बाद अचानक चौंकाने वाला सच सामने आया कि रामायण ने आईएएएस परीक्षा पास ही नहीं की है। बहरहाल कभी-कभी ऐसी भी चीज सामने आ जाती है, जिस पर लोग सोच कुछ रहे होते हैं और वह आगे जाकर निकलता कुछ और है।

शेर और महेन्द्र बहादुर
प्रदेश में अब तक इस बात को लेकर सस्पेंस कायम है कि सरायपाली राज परिवार के 92 वर्षीय नेता महेंद्र बहादुर सिंह कांग्रेस के साथ हैं या अजीत जोगी की पार्टी के साथ। जब पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं पूर्व विधायक महेन्द्र बहादुर सिंह एक साथ मीडिया के सामने आए तो कांग्रेस के भीतर खलबली मच गई। जोगी ने मीडिया के समक्ष कहा कि पूरे छत्तीसगढ़ में दो ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेर का कलेजा खाया है। मैंने और महेन्द्र बहादुर ने। शेर का कलेजा खाने वाला सौ साल से ज्यादा जीता है। तभी तो महेंद्र बहादुर इस उम्र में भी इतने फिट हैं। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि अजीत जोगी के साथ शेर जाने-अंजाने जुड़ता ही रहा है। जोगी ने अपने जीवन से जुड़े अनुभवों को लेकर स्वर्ण कण जन मेरे प्रेरणा स्रोत नाम से किताब लिखी है- जिसका पहला अध्याय भैरा बैगा है। इस अध्याय की कुछ लाइनें शेर पर हैं। इस अध्याय में एक ऐसा चित्र भी देखने मिलता है जिसमें जोगी अपने पिता के साथ हैं और पीछे शिकार किए गए शेर की मृत देह पड़ी हुई है। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय अखबारों में छपा एक विज्ञापन काफी चर्चा में रहा था। उस विज्ञापन में जोगी के बने स्कैच के नीचे लिखा था कि मैं छत्तीसगढ़ का शेर हूं। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के स्कैच के नीचे लिखा था मैं छत्तीसगढ़ का सेवक हूं। राजनीति की गहरी समझ रखने वालों का मानना है कि इस विज्ञापन का जनमानस पर गहरा असर पड़ा। उस चुनाव के बाद भाजपा जब तीसरी बार सत्ता में आई तो ज्यादातर लोगों ने चुटकी लेते हुए यही कहा था, शेर अपनी जगह पर ही बैठे रहा और सेवक बाजी मार ले गया।

डॉ. देवांगन को चैन नहीं
बिरगांव नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश देवांगन का दस हजार लोगों की भीड़ के बीच पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस में प्रवेश करना अपने आप में बड़ी राजनीतिक खबर रही। बिरगांव अब नगर निगम बन गया है। इसके पहले करीब बारह साल नगर पालिका था। डॉ. देवांगन दो बार बिरगांव पालिका अध्यक्ष रहे। दोनों कार्यकाल में वे काफी सुर्खियों में रहे। उनके कार्यकाल में पालिका में भारी राजनीतिक उठापटक होती रही थी। एक बार जोरदार नाटकीय घटनाक्रम सामने आया। प्रदेश की भाजपा सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे वालों को दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की। वहीं डॉ. देवांगन की तरफ से ऐलान हुआ कि हमारी पालिका गरीबों को एक रुपये किलो चावल देगी। इस अजीबोगरीब फैसले से प्रदेश सरकार को हरकत में आना पड़ा। डॉ. देवांगन सरकार पर गरीबों का हक मारने का आरोप लगाते हुए लाव लश्कर के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निवास का घेराव करने निकल पड़े थे, जिसमें उनकी गिरफ्तारी हुई। इसके बाद ऐसा सरकारी शिकंजा कसा कि आर्थिक अनियमितता के आरोप में देवांगन को जेल तक जाना पड़ा। बिरगांव जब पालिका से निगम बना तो डॉ. देवांगन कांग्रेस की टिकट पर अपनी भतीजा बहू को महापौर चुनाव लड़वाने से पीछे नहीं रहे। बहू को हार का सामना करना पड़ा। बिरगांव क्षेत्र में अब राजनीतिक फिज़ा काफी बदल चुकी है। डॉ. देवांगन कांग्रेस छोड़ जोगी की पार्टी का दामन थाम चुके हैं। माना जा रहा है डॉ. देवांगन और उनकी मंडली ने रायपुर ग्रामीण के कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा को टारगेट में रखा है। निश्चित रूप से सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में शर्मा के सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी।

कौन सा गुनाह कर दिया दीमक ने
खबर यह कि महासमुन्द कलेक्टोरेट के किसी कमरे में रखी पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवानी की आत्मकथा मेरा देश को दीमक खा गई। बताते हैं करीब आठ साल पहले सैकड़ों की संख्या में यह किताब मंगाई गई थी। किताबें जस की तस पड़ी रहीं। खोलकर देखने की फुरसत किसी के पास नहीं थी। प्रदेश में आलम यह है कि किसी के हिस्से में दूध-दही है तो कहीं पर दो पैर वाले गधे डटकर खीर खा रहे हैं। मेवा मिष्ठान खाने से फुरसत मिले तब तो अडवानी जैसे महापुरुष को पढ़ने का समय निकले। जब गधों के हिस्से में खीर आ सकती है तो दीमकों ने पुस्तकों को चाटकर कौन सा बड़ा गुनाह कर दिया।
  



गुरुवार, 8 सितंबर 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में एक होम्योपैथी डॉक्टर अनिरुद्ध चटर्जी की गिरफ्तारी इन दिनों सुर्खियों में है। वह अपने बंगले के तीसरे माले में हथियारों को मॉडिफाई करता था, रिपेयरिंग करता था। उसकी इस गुप्त मॉडिफाई फैक्ट्री में बंदूक के अलावा और भी तरह-तरह के हथियार मिले। राजनीतिक व प्रशासनिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि नेताओं से लेकर पुलिस विभाग के लोग अनिरुद्ध के पास हथियार मॉडिफाई कराने आते थे। पुलिस उससे लगातार पूछताछ कर रही है। हो सकता है आगे कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आएं। बहरहाल अनिरुद्ध के पड़ोसी से लेकर उसके पेशेन्ट और शहर में और भी उसे जानने वाले बहुत से लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि वो ये सब काम कैसे कर सकता है। अनिरुद्ध के गुरू डॉ. बी.सी. गुप्ता स्वयं शहर के जाने माने होम्योपैथी चिकित्सक हैं, जिनकी अपने शिष्य के बारे में यही राय है कि वह एक नेक बंदा है। गलत शौक ने उसे आज ज़िंदगी की इस राह में ला खड़ा किया है। रायपुर शहर से कई ऐसे डॉक्टर निकल चुके हैं, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी। ज्यादा दिन नहीं हुए, जासूसी उपन्यास के जाने-माने लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक एक कार्यक्रम में शिरकत करने रायपुर आए हुए थे। उन्होंने श्रोताओं के बीच खुले मन से कहा कि मुझे इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं कि आज मैं यहां रायपुर के डॉक्टर जावेद अली के कारण जिंदा खड़ा हूं। उन्होंने ही मेरी हार्ट की सर्जरी कर जान बचाई थी। आज भी उन्हें फोन लगाकर डॉक्टरी सलाह लेते रहता हूं। चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष योगदान के कारण रायपुर के जाने-माने डॉक्टर अरुण दाबके को पद्मश्री मिली। इस तरह रायपुर के चिकित्सा जगत का और भी बहुत सा उजला पक्ष सामने आते रहा है, पर कभी कुछ ऐसा भी हुआ कि डॉक्टरी के पेशे से जुड़े लोग कानून के शिकंजे में जा फंसे। बरसों पुरानी बात है जब रायपुर में जाली नोट कांड का बड़ा मामला उजागर हुआ था, जो कि देश भर में सुर्खियों में रहा था। उस कांड में शहर के कुछ बड़े नामी-गिरामी लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, जिसमें दांत का डॉक्टर माकोहब केन भी था। चाइना मूल के इस डॉक्टर की रायपुर में डिस्पेंसरी होती थी और उसकी पहचान मिलनसार व्यक्ति के रूप में थी। डॉ. केन जाली नोट कांड में ऐसा फंसा कि उसके कई साल जेल में गुजरे। रायपुर के एक सघन मोहल्ले में एक डॉक्टर हुआ करता था, जिसकी कई बार नशीला पदार्थ जिंजर बेचने के कारण गिरफ्तारी हुई। जिस रायपुर शहर से चिकित्सा के क्षेत्र में कई नगीने निकले तो कुछ ऐसे डॉक्टर भी हुए जो जाने-अंजाने या कह लें शौक के कारण अपराध की दुनिया के दलदल में जा धंसे।


आतंकवाद पर श्री श्री रविशंकर की चिंता
इस खबर ने कितने ही लोगों का ध्यान खींचा कि हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी बुरहान वानी के पिता मुजफ्फर वानी दो दिन आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के बेंगलुरु आश्रम में रहे। श्री श्री रविशंकर ने ट्विटर पर अपनी और बुरहान के पिता की तस्वीर पोस्ट की और लिखा कि हमने दो दिन कई मसलों पर बातचीत की। दूसरी तरफ मुजफ्फर वानी ने कहा कि मैं किसी बीमारी का इलाज कराने श्री श्री के आश्रम रहा। श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व का एक ये भी पहलू सामने आते रहा है कि वे देश से जुड़े आतंकी मसलों पर बातचीत करने की पहल ज़रूर करते रहे हैं। कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने श्री श्री रविशंकर से पूछा था कि यदि धर्म एवं आध्यात्म क्षेत्र से जुड़े गुरुजन नक्सलियों से बात करें तो क्या समस्या का समाधान निकल सकता है। श्री श्री रविशंकर ने मुख्यमंत्री से कहा था कि यदि नक्सलियों से बातचीत की स्थित बनती है तो इसके लिए वे तैयार रहेंगे। यही नहीं रायपुर में हुए आर्ट ऑफ लिविंग के एक कार्यक्रम में मंच से श्री श्री ने कहा था कि नक्सली हमसे अलग नहीं हैं। हमारे ही भाई बंधु हैं। यदि कोई भटक जाए तो सहानुभति रखते हुए उसे सही रास्ते पर लाया जा सकता है। देश में जो मौजूदा गंभीर हालात हैं उन पर श्री श्री की तरह और भी धर्म तथा आध्यात्म गुरु अपनी राय देते चलें तो हो सकता है कि उसका कहीं ना कहीं असर पड़ते दिखे।


गागड़ा को नक्सली धमकी
छत्तीसगढ़ के वन मंत्री महेश गागड़ा को जान से मारने एक बड़े नक्सली नेता की ओर से पत्र जारी हुआ है, जिसकी चर्चा धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर से लेकर रायपुर तक में है। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार गागड़ा की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतिंत है। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने निशाना साधते हुए कहा है कि गागड़ा इस धमकी का हवाला देकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें अतिरिक्त सूरक्षा मिले और बस्तर जैसे आदिवासी इलाके जहां से वे हैं वहां के लोगों से उनकी दूरी बनी रहे। वहीं जवाब में गागड़ा ने बघेल पर सवाल दागा है कि मुझे मंत्री बनने के बाद से जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है, इससे और बड़ी कोई सुरक्षा मांगी जा सकती है क्या? बहरहाल सच्चाई तो यही है कि गागड़ा जिस बीजापुर क्षेत्र से चुनकर आते हैं वह धुर नक्सली इलाका है। भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल में वे न सिर्फ विधायक बल्कि संसदीय सचिव भी थे। तब भी उन पर नक्सली हमले का भारी खतरा मंडराया रहता था। यहां तक की उस समय उन्हें शासन एवं प्रशासन की तरफ से कहा भी गया था कि अपने क्षेत्र में ज्यादा समय न रहा करें। कभी भी हमला हो सकता है। नक्सलवाद से व्यथित गागड़ा ने कुछ साल पहले राजधानी रायपुर में हुए एक कार्यक्रम में मंच से कहा था कि इस भूलावे में न रहें कि नक्सलवाद बस्तर तक ही सीमित है। वह शहर तक पहुंच गया है। इन दिनों जिस तरह यह खबर हवा में तैर रही है कि रायपुर के एक बड़े अस्पताल में नक्सली इलाज कराने आते रहे हैं, उससे गागड़ा की बात को बल मिलता है।


रायपुर को भी हनी सिंग की ज़रूरत
देश के एक प्रतिष्ठित अखबार में पिछले दिनों यह खबर पढ़ने में आई कि नैनीताल के धारी गांव में किसान जंगली सुअरों से अपनी फसल को बचाने के लिए खेतों में लाउड स्पीकर से हनी सिंग के गाने बजवा रहे हैं। इसका उन्हें फायदा भी मिला है। सुअरों ने खेतों से दूरी बना ली है। राजधानी रायपुर में बरसों से कुत्तों का आतंक तो रहा ही है और अब सुअर भी बढ़ गए हैं। रायपुर के बहुत से जागरुक नागरिक अब मजाकिया लहजे में कहते नज़र आ रहे हैं कि क्यों ना हनी सिंग के गानों वाला फार्मूला यहां भी आजमाया जाए। हो सकता है यहां भी हनी सिंग को सुनकर कुत्ते और सुअर इधर उधर भागते नज़र आएं।


रविवार, 21 अगस्त 2016

प्रिय मित्रों ,
'मिसाल' का नया अंक आप तक पहुंचाना हमारे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। इस बार कवर पेज पर है 2 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही छत्तीसगढ़ी फिल्म 'प्रेम सुमन'। फिल्म का सब्जेक्ट प्रेम कहानी है और यह फैमिली ड्रामा भी है। इसके अलावा आपको पढ़ने मिलेंगे महान फिल्मकार किशोर साहू पर तीन लेख। दो लेख पर गाज़ियाबाद के वरिष्ठ पत्रकार इक़बाल रिज़वी की कलम चली है, वहीं एक मेरा लिखा हुआ है। इस बात को कम लोग जानते हैैं कि 'गाइड' जैसी महान फिल्म में एक्ट्रेस वहीदा रहमान के पति की भूमिका निभाने वाले किशोर साहू हमारे अपने छत्तीसगढ़ के थे। वे न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि सिद्धहस्त डायरेक्टर और ख्यातिप्राप्त लेखक भी थे। मित्रों , आप लोग जिस तरह हौसला अफजाई करते रहे हैं उसी का नतीजा है कि 'मिसाल' के हर अंक में कुछ न कुछ अलग हटकर देने में हम कामयाब रहे हैं। आपका प्रेम सदैव बने रहे, इसी अपेक्षा के साथ...

रविवार, 14 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में फर्जी आईबी अफसर जो पकड़ा गया उस पर चर्चा का दौर अभी थमा नहीं है। इस नकली आईबी अफसर के पुलिस गिरफ्त में आने की खबर सबसे पहले सोशल मीडिया में चली। सोशल मीडिया में यही चलते रहा  कि पकड़ा गया फर्जी आईबी अफसर खुद को मुख्य सचिव विवेक ढांढ का रिश्तेदार बता रहा है। धीरे-धीरे उसकी बहुत सी कहानियां सामने आती चली गईं। छत्तीसगढ़ सरकार के कुछ मंत्रियों के साथ वह फोटो खिंचवा रखा था। नेताओं की नज़रों में खुद को चढ़ाए रखने वह चम्पारण्य में हुए भाजपा के चिंतन शिविर तक में पहुंच गया था। वह कई-कई दिनों तक रायपुर की होटलों में टिके रहता था। फर्जी परिचय पत्र के आधार पर सर्किट हाउस में ठहरा। मंत्रियों के साथ सेल्फी लेना उसका शौक था। उसकी सगाई की पार्टी भी चर्चा में है। इसके अलावा उसकी और भी कहानियां सामने आ रही हैं। हावड़ा का रहने वाला यह युवक रायपुर में कैसे धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमाते चला गया और इसके पीछे कौन लोग हैं पुलिस इसका पता लगाने में जुटी है। बड़े ठगों और जालसाजों से पहले भी रायपुर शहर का पाला पड़ते रहा है। बरसों पहले शहर में श्रीराम सोनी नाम के जालसाज की चर्चा खूब हुआ करती थी। बताते हैं वह कुछ समय तक रायपुर जेल में बंद रहा था। जाली सिग्नेचर में उसकी मास्टरी थी। यहां तक की पुलिस से बचने लिए उसको कार का नंबर तक बदलने में देर नहीं लगती थी। श्रीराम सोनी व्दारा इस्तेमाल की जाने वाली कार काफी समय तक पुलिस लाइन में लोगों के आकर्षण का केन्द्र रही थी। उस कार की नंबर प्लेट पर अलग-अलग नंबर साफ दिख जाया करता था। रुपये को डॉलर में बदलने का झांसा देने वाले नाइजीरिया के ठग किसी समय रायपुर तक पहुंच गए थे और पुलिस के हाथों पकड़े गए थे। मानो ठगों और जालसाजों के लिए रायपुर शहर की जमीन हमेशा से उर्वरा रही हो।

राजधानी और आवारा कुत्ते
राजधानी रायपुर में 9 अगस्त की वह शाम भयावह थी। एक आवारा कुत्ता अचानक खूंखार हो गया और दौड़ा-दौड़ाकर 24 लोगों को काट खाया। बच्चे से लेकर बूढ़े तक उस आवारा कुत्ते के पागलपन के शिकार हुए। इस घटना ने पूरे शहर को सोचने पर मजबूर कर दिया है। रायपुर शहर की पहचान मच्छरों के कारण काफी पहले से होती रही है। अब आवारा कुत्तों के कारण भी होने लगी है। राजधानी ऐसा कोई इलाका नहीं बचा होगा जहां आवारा कुत्तों की भीड़ न हो। रायपुर नगर निगम कोई आज नहीं पिछले करीब चौदह सालों से आवारा कुत्तों की नसबंदी का राग अलाप रहा है। सच्चाई यह है कि पिछले करीब पांच सालों में राजधानी में करीब साढ़े पांच हजार कुत्तों की ही नसबंदी हुई है, जिसे संतोषप्रद नहीं माना जा रहा। नगर निगम रायपुर शहर को आवारा कुत्तों से मुक्ति दिलाने एक और उपाय किया था। इनकी धरपकड़ कर शहर से बहुत दूर छोड़ आने का। यह उपाय ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुआ। उल्टे विधानसभा तक में इस उपाय की आलोचना हुई। महासमुन्द के विधायक डॉ. विमल चोपड़ा ने विधानसभा में कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि रायपुर शहर के आवारा कुत्तों को मेरे विधानसभा क्षेत्र में ले जाकर छोड़ा जा रहा है, जिस पर गहरी आपत्ति है। बहरहाल अवारा कुत्तों ने रायपुर के लोगों का चैन से जीना हराम कर रखा है।

चाचा-भतीजे के बीच ये कैसी दरार
राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां छोटी-छोटी बातें भी बड़ी लगने लगती हैं। ताजा उदाहरण खल्लारी के पूर्व विधायक
परेश बागबाहरा एवं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा का है। परेश कांग्रेस छोड़ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी से जुड़ गए हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के सदस्यता अभियान प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दूसरी तरफ उनके सबसे चहेते भतीजे अंकित बागबाहरा को अचानक बागबाहरा ब्लाक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष का पद दे दिया गया है। यानी एक ही घर में परस्पर दो विरोधी पार्टी के लोग हो गए हैं। बागबाहरा, महासमुन्द से लेकर रायपुर तक इस बात पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है कि चाचा-भतीजे के रास्ते अलग हो सकते हैं। चाचा भतीजे के बीच कितना गहरा प्रेम रहा है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि परेश ने अंकित को लेकर भोला छत्तीसगढ़िहा नाम से छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में खुद परेश ने रोल किया था। रील लाइफ में एक दूसरे के इतने करीब दिखने वाले चाचा-भतीजे रियल लाइफ में कैसे एक दूसरे से इतने दूर नज़र आ रहे हैं, इसे लोग अपने-अपने ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं।

इच्छाधारी नाग से शादी की इच्छा
छत्तीसगढ़ प्रदेश में अजीबोगरीब घटनाएं होना आम बात है। भैयाथान जनपद के ग्राम कसकेला में अनिता नाम की युवती ने घोषणा की थी कि वह इच्छाधारी नाग से विवाह रचाने जा रही है। वह नाग के साथ नाग लोक जाएगी। नाग पंचमी वाले दिन इस भीड़-भाड़ को देखने करीब दस हजार लोग जमा हो गए थे। किसी तरह का चमत्कार नहीं हुआ। अब वह युवती अपनी पढ़ाई में ध्यान देना चाह रही है। प्रदेश में अंधविश्वास फैलाने वाली घटनाओं की कभी कमी नहीं रही। कितने ही उदाहरण सामने आ चुके हैं जब टोनही के शक पर किसी के साथ गाली गलौच से लेकर मारपीट तक के प्रकरण दर्ज होते रहे हैं। भगवान दिखाने के नाम पर लूट जब तब होती रही है।   


रविवार, 7 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सूप्रीम कोर्ट के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। वहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर सरकारी बंगला खाली करने का आदेश कोर्ट से हुआ है।  सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में फैसला सुनाया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में रहने का कोई अधिकार नहीं। हालांकि कोर्ट का यह फैसला उत्तरप्रदेश के लिए आया है, लेकिन हलचल सभी राज्यों में मची हुई है। छत्तीसगढ़ इससे परे नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बने ज्यादा नहीं 15 साल नौ महीने ही हुए हैं। यहां पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर फिलहाल एक ही शख्सियत हैं अजीत जोगी। छत्तीसगढ़ में इन दिनों चर्चा घर किए हुए है कि कोर्ट के फैसले का असर यहां भी दिखेगा और जोगी को सागौन बंगला खाली करना पड़ सकता है। जोगी ने इस बंगले में शिफ्ट होने के बाद इसे अनुग्रह नाम दिया, पर पुराने लोग आज भी इसे सागौन बंगला ही कहते हैं। सागौन बंगला अपने आप में इतने रहस्य समेटे हुए है कि इस पर एक रोचक उपन्यास लिखा जा सकता है। रायपुर शहर के बहुत से पुराने लोग जो कुछ-कुछ सागौन बंगले के बारे में जानते हैं वे यही कहते हैं कि इसमें बड़ा वास्तु दोष है। इस बंगले में रहे कुछ ऐसे नाम हैं जो हाशिये पर चले गए। बात जुगल किशोर साहू से शुरू होती है, जो वर्तमान वरिष्ठ कांग्रेस विधायक एवं पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू के छोटे भाई हैं। जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था, जुगल किशोर साहू रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष थे। तब रायपुर जैसे छोटे शहर में सांसद, विधायक एवं महापौर के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बहुत बड़ी हस्ती हुआ करती थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद जुगल किशोर साहू को सागौन बंगला अलॉट हुआ था। तब जुगल किशोर काफी युवा थे और उनकी मित्र मंडली से रात में सागौन बंगला गुलजार रहा करता था। रात वाली उस महफिल में मीडिया जगत के कुछ लोग भी हुआ करते थे। जुगल की मीडिया के लोगों से निकटता ही वजह थी कि उस समय रायपुर के अखबारों में उन्हें काफी स्पेस मिला करता था। राजनीति में जुगल का नाम इतने ऊपर तक पहुंच गया था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस के खिलाफ मैदान में उतारा। जुगल लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन उस समय उनके नाम की चर्चा रायपुर से लेकर राजधानी भोपाल तक हुई थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस सहज और सरल युवा नेता का राजनीतिक सितारा बहुत जल्दी अस्त हो जाएगा। जिला पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जुगल सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूर होते चले गए। जुगल के उस राजनीतिक पतन को देखते हुए कहा जाने लगा कि सागौन बंगले के साथ कुछ तो ऐसा है कि वहां रहने वाला अच्छा भला आदमी किनारे लग जाता है। इसकी एक और मिसाल आगे देखने को मिली। सन 2000 में आईएएस अफसर विवेक देवांगन रायपुर नगर निगम के कमिश्नर होकर आए। उन्हें सागौन बंगला अलाट हुआ। देवांगन ने रायपुर नगर निगम का चार्ज लेने के कुछ ही हफ्तों के भीतर साबित कर दिखाया था कि उनका विज़न कितना तगड़ा है। वे नगर निगम में एक तरह से कम्यूटर क्रांति लाने की तैयारी में थे। साथ ही रायपुर शहर को नया स्वरूप प्रदान करने की परिकल्पना भी उनके पास थी। कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि तत्कालीन महापौर तरुण चटर्जी और शहर के एक-दो अन्य रसूखदार लोगों ने देवांगन को यहां से हटाने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। देवांगन विरोधी मुहिम चलाने वाले लोग अपने मंसूबे में कामयाब रहे। साल भर में ही देवांगन को रायपुर नगर निगम से विदा होना पड़ा। साथ ही सागौन बंगले से भी। देवांगन पर अचानक तबादले की गाज गिरने के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ ली कि हो न हो सागौन बंगले में जरूर कोई गड़बड़ है। यही नहीं नंद कुमार साय जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले नेता प्रतिपक्ष बने तो उन्हें सागौन बंगला देने की बात हुई थी, पर उन्होंने इसका नाम सुनते ही दूर से ही हाथ जोड़ लिया। दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। अजीत जोगी के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं रही, डॉ. रमन सिंह प्रदेश के नये मुखिया बने। जोगी मुख्यमंत्री कार्यकाल में उस बंगले में रहे थे, जहां वे रायपुर कलेक्टर की हैसियत से पहले कभी लंबे समय तक रह चुके थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जोगी की अपने उसी पुराने बंगले में बने रहने की इच्छा थी। कई दिनों तक उन्होंने इस बंगले को खाली नहीं किया था और पहली बार मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह के हिस्से में लंबा इंतजार आया था। अंततः परिस्थितियां ऐसी बनी कि जोगी को वह बंगला खाली करना पड़ा और डॉ. रमन सिंह वहां शिफ्ट हुए। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते शासन ने जोगी को सागौन बंगला अलाट किया। तब राजनीतिक एवं प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का दौर शुरू हो गया था कि यह सागौन बंगला न जाने जोगी को किस स्तर तक प्रभावित करेगा। बहरहाल जोगी पिछले साढ़े बारह सालों से सागौन बंगले में हैं। इन साढ़े बारह सालों में उन्होंने न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव देखे। उसके पीछे कारण चाहे जो रहा हो। बहरहाल जोगी ने मीडिया वालों से यही कहा है कि वे कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। यदि राज्य सरकार कोर्ट के निर्णय को यहां लागू करती है तो उसका वे पालन करेंगे।

विधानसभा अध्यक्ष न
रहें बंगला तो रहेगा
विधानसभा अध्यक्ष काफी गरिमामय पद है। जो एक बार विधानसभा अध्यक्ष बनता है अगले कार्यकाल में वह इस पद पर रहे या ना रहे उसके लिए सरकारी बंगला ज़रूर सुरक्षित रहता है। पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल थे। उनका अध्यक्षीय कार्यकाल तीन साल का रहा था। वे अध्यक्ष पद पर नहीं थे, तब भी उन्हें सरकारी बंगला मिला हुआ था। शुक्ल के बाद डॉ. प्रेमप्रकाश पांडे पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ. पांडे हार गए थे। यानी वे विधायक भी नहीं थे। लेकिन राजधानी के पॉश इलाके शंकर नगर रोड पर उन्हें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से बंगला अलाट था। डॉ. पांडे के बाद धरमलाल कौशिक पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2013 के विधानसभा चुनाव में कौशिक को हार का सामना करना पड़ा। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से उन्हें रायपुर में सरकारी बंगला मिला हुआ है। यानी एक बार कोई विधानसभा अध्यक्ष बना तो आगे वह इस पद पर रहे या न रहे, सरकारी बंगला पास में रहना पक्का है।

पैर छूने की परंपरा पर प्रहार
हाल ही में चंपारण्य में हुए भाजपा के महाशिविर में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने अपने संबोधन में काफी वजनदार बात कही कि राजनीतिक स्वार्थवश कोई किसी के पैर न छुए। कौशिक के इस वचन को काफी दाद मिली। और क्यों न मिले छत्तीसगढ़ की राजनीति में बरसों से पैर छुने और छुआने का सिलसिला जो चले आ रहा है। किसी समय में छत्तीसगढ़ की राजनीति में पं श्यामाचरण शुक्ल एवं विद्याचरण शुक्ल की तूती बोलती थी। विद्या भैया का पैर छुने वालों की बहुतायत थी। एक बार मीडिया वालों ने पैर छुने वाली संस्कृति को लेकर विद्या भैया से सीधे सवाल कर दिया था। इस सवाल पर वे उखड़ गए थे और उन्होंने कहा था कि मुझे पैर पड़ने वाली संस्कृति से नफरत है। इसे दिलचस्प संयोग कहें विद्या भैया के इस कथन के कुछ ही दिनों बाद रायपुर के एक सम्मानित अखबार का वरिष्ठ फोटोग्राफर अपने कैमरे में ऐसी तस्वीर कैद करने में कामयाब रहा, जिसमें भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाला एक नेता विद्या भैया के पैर छूते नज़र आ रहा था। विद्या भैया ने फोटोग्राफर को तस्वीर खींचते देख लिया था और उस पर काफी नाराज़ भी हुए थे। मीडिया वालों के भी अपने कुछ उसूल होते हैं। पैर पड़वाने वाली वह तस्वीर अखबार में प्रकाशित हुई और उस पर शहर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। बहरहाल भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, किसी बड़े नेता की निगाहों में चढ़ने के लिए पैर छुने की परंपरा आज भी बनी हुई है। धरमलाल कौशिक ने चंपारण्य में जो बातें कही उस पर हर राजनीतिक पार्टी को विचार ज़रूर करना चाहिए।

डॉ. रमन का फिल्मी ज्ञान
चंपारण्य में भाजपा के प्रशिक्षण महाशिविर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का नाम लेते हुए कहा कि यह जोड़ी शोले फिल्म की जय और वीरू की जोड़ी की तरह है, जो राज्य में कई तरह के झूठ को सच प्रचारित करने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री के इस कथन पर राजनीतिक जगत में भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। कांग्रेस की तरफ से बयान जारी हुआ कि यही जय और वीरू की जोड़ी गब्बर सिंह के राज्य का खात्मा करेगी। डॉ. रमन सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि बरसों पहले जब उनकी राजनीतिक व्यस्तता नहीं हुआ करती थी तब फिल्म देखने के लिए वह खूब समय निकाला करते थे। यहां तक कि काफी समय तक डॉ. साहब के बाल कानों पर ठीक उसी तरह झूलते नज़र आया करते थे जैसे कि जय यानी अमिताभ बच्चन के आया करते थे। डॉ. साहब के लंबे बालों वाली तस्वीर आज भी कितने ही लोगों के फेस बुक से इधर से उधर होती रहती है। डॉ. साहब के फिल्मों के प्रति प्रेम की बानगी हाल ही में रायपुर में हुए एक उस कार्यक्रम में देखने को मिली, जिसमें फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर मौजूद थे। डॉ. साहब ने मंच से कहा कि बरसों पहले पालेकर जी को मैं फिल्मों जैसे देखा करता था वे आज भी उसी तरह हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। बहरहाल प्रदेश की जनता अब यह अच्छी तरह समझ पा रही है कि डॉक्टर साहब का फिल्मों के प्रति न सिर्फ गहरा लगाव है बल्कि उनका फिल्मी ज्ञान भी तगड़ा है।


मंगलवार, 2 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

अनिरुद्ध दुबे

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी उथल-पुथल मची हुई है तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं। ये तो होना ही था। जोगी के साथ कौन बड़े लोग हैं, पत्ते धीरे­-धीरे खुलने शुरू हो गए।  लोगों में सबसे ज्यादा अचरज इस बात को लेकर हुआ, जब एक बड़े कार्यक्रम में पाटन के पूर्व विधायक विजय बघेल ने अजीत जोगी के साथ मंच साझा किया। विजय बघेल के बारे में माना जाता है कि वे औरों से काफी अलग हटकर हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में वे वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल व्दारा खड़ी की गई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। उस समय बहुत से राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि विजय बघेल चुनाव जीत सकते हैं। पर उस चुनाव में जीत मिली थी कांग्रेस के भूपेश बघेल को। बाद में विजय बघेल राकांपा छोड़कर भाजपा में आए। 2008 के चुनाव में भाजपा ने उनको पाटन से टिकट दी और वे भूपेश बघेल को हराकर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। वे 2008 से 2013 तक विधायक रहे और उन पांच वर्षों में उनकी न सिर्फ राजनीतिक बल्कि और भी खूबियां सामने आईं। विधानसभा में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शादी की पार्टियों तक में लोगों ने विजय बघेल को फिल्म गाइड का गाना ‘’तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं…’’ उसी दौर में गाते सुना था। उसी दौर में उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्म माटी के लाल और मोर मन के मीत में काम किया। उस कार्यकाल में गृह मंत्री ननकीराम कंवर थे। विधानसभा सत्र के दौरान बड़ी अपराधिक घटनाओं पर जब विपक्ष की ओर से सरकार पर हमला होता तो संसदीय सचिव की हैसियत से विजय बघेल ही प्रायः जवाब देने के लिए खड़े होते थे। 2013 का चुनाव उनके लिए लकी नहीं रहा। कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल ने उनको हरा दिया। बहरहाल अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा जब वे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनकी सरकार पर निशाना नहीं साध रहे हों। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के कभी प्रिय पात्र रहे विजय बघेल यदि जोगी के साथ किसी कार्यक्रम में मंच साझा करें तो वह बड़ी खबर तो बन ही जाती है।

ये बायोडीजल है कि
पीछा ही नहीं छोड़ता
बायोडीजल ऐसा मुद्दा बन गया है जो प्रदेश की भाजपा सरकार का पीछा ही नहीं छोड़ता। 2003 में डॉ. रमन सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, उन्होंने बायोडीजल की खूब वकालत की थी। तब यह घोषणा हुई थी कि मुख्यमंत्री की गाड़ी बायोडीजल से चला करेगी। उस समय ऐसा माहौल बन गया था मानो प्रदेश में बायोडीजल क्रांति आ गई हो। सरकार की ओर से कुछ समय तक बायोडीजल की बात बढ़-चढ़कर की जाती रही, फिर आगे जाकर न जाने कैसे मामला टॉय-टॉय फिस्स हो गया। अब विपक्षी कांग्रेस दल के बड़े नेता समय-समय पर बायोडीजल के मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। पिछले दिनों विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस विधायक मोतीलाल देवांगन का लिखित में सवाल था कि वित्तीय वर्ष 2014 से लेकर 31 मई 2016 तक बायोडीजल के निर्माण में कितनी राशि खर्च की गई और कितनी राशि के बायोडीजल का उत्पादन हुआ। इस सवाल का लिखित में जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बताया कि इस अवधि तक की स्थिति में बायोडीजल के निर्माण में 59 लाख 6 हजार 674 रुपये व्यय किए गए। 88 लाख 53 हजार 278 रुपये का बायोडीजल उत्पादित हुआ। इस अवधि में बायोडीजल के निर्माण हेतु कच्चा माल प्राप्त करने किसी भी किस्म का पौधारोपण नहीं किया गया। इस अवधि में बायोडीजल निर्माण के कोई संयंत्र नहीं लगाए गए हैं।
कभी बायोडीजल का खूब संदेश फैलाने वाली सरकार ने अपनी इस महती योजना से बाद में कदम पीछे क्यों हटा लिए, इस सवाल का जवाब न सिर्फ विपक्षी नेतागण बल्कि मीडिया वाले भी लगातार खोज रहे पर हैं, पर जवाब कहीं मिलता ही नहीं।

फिर विवादों में मेनन
आईएएस अफसर एलेक्स पाल मेनन एक बार फिर सुर्खियों में हैं। न्याय पालिका पर टिप्पणी करने के चलते उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी कर किया है। ये नोटिस सोशल मीडिया में उनके व्दारा की गई टिप्पणी को लेकर है। उन्होंने फेस बुक पर राष्ट्रदोह का आरोप झेल रहे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का समर्थन किया। इसके अलावा फेस बुक पर यह भी पोस्ट आई थी कि फांसी की सजा पाने वालों में 94 फीसदी दलित और मुसलमान होते हैं। मेनन और विवाद का मानो चोली दामन का साथ रहा है। वे पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब रायपुर विकास प्राधिकरण में सीईओ पद पर उनकी पोस्टिंग हुई थी। वे उस समय दो हफ्ते भी राविप्रा के सीईओ पद पर नहीं रह पाए थे और उनका तबादला हो गया था। यह बात अलग है कि बाद में उसी राविप्रा में वे फिर से सीईओ बनकर आए। तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष सुनील सोनी से उनकी कभी नहीं जमी। मेनन ने अपनी ही जिद्द पर राविप्रा दफ्तर को पुरानी जगह से नई जगह शिफ्ट कराया। इस शिफ्टिंग से न राविप्रा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष लोग खुश थे और न ही वहां के अन्य अधिकारी-कर्मचारी। मेनन जब सुकमा कलेक्टर थे अप्रैल 2012 में नक्सलियों ने उनका अपहरण कर लिया था। काफी मशक्कतों के बाद प्रदेश सरकार मेनन को नक्सलियों से छुड़ा पाई थी। किस समझौते के तहत नक्सलियों ने मेनन को छोड़ा था उस पर आज भी रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है। मेनन सबसे ज्यादा विवादों में उस समय रहे जब वे बलरामपुर के कलेक्टर थे। वहां के कांग्रेस विधायक वृहस्पत सिंह ने विधानसभा में खुला आरोप लगाया कि मेनन की नक्सलियों से सांठगांठ है और वे उनके साथ पार्टी भी कर चुके हैं। वृहस्पत सिंह ने मेनन के खिलाफ आंदोलन चलाए रखा था। जब सरकार ने मेनन को बलरामपुर से हटाया तब कहीं जाकर वृहस्पत सिंह ठंडे पड़े। मेनन वर्तमान में सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा चिप्स के सीईओ हैं। कारण बताओ नोटिस पर सरकार को उनके जवाब का इंतज़ार है।

फिल्म निगमः एक अनार सौ बीमार
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की इस घोषणा के बाद कि फिल्म विकास निगम की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी और कस्बाई व ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे सिनेमाघर बनाए जाएंगे, प्रशासनिक क्षेत्र से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत तक में हलचल तेज हो गई है। फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद की दौड़ में आईएएस-आईपीएस अफसरों से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा के डायरेक्टरों व अभिनेताओं के नामों तक की चर्चा है। खुलकर कोई कहता नज़र नहीं आ रहा कि वह अध्यक्ष पद की दौड़ में है, लेकिन भीतर ही भीतर कई लोगों ने फील्डिंग शुरू कर दी है। एक आईपीएस अफसर अपने बेहद करीबी लोगों से कहते रहे हैं कि फिल्म विकास निगम बने इसके लिए मैंने अपने स्तर पर किस हद तक पहल की, वह  मैं ही जानता हूं। वहीं एक प्रशासनिक अधिकारी जो फिल्म समारोह कराने के नाम पर काफी लोकप्रियता बटोर चुके हैं उनके करीबी लोग उनके नाम को उपयुक्त ठहराते आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त कर चुके एक अभिनेता का कहना है कि यह सुखद संयोग ही है कि जिस दिन फिल्म विकास निगम की ज़रूरत पर अखबार में मेरा आर्टिकल पब्लिश हुआ उसी शाम मुख्यमंत्री जी की तरफ से निगम की घोषणा हो गई। बताते हैं कभी भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले इस सुपर अभिनेता की भी इच्छा शक्ति फिल्म निगम अध्यक्ष पद के लिए हिलोरें मार रही है। कोई कहता है मोर छंइहा भुंइया फेम डायरेक्टर सतीश जैन को अध्यक्ष बना देना चाहिए तो किसी की राय है कहि देबे संदेस जैसी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने वाले मनु नायक से बेहतर अध्यक्ष पद के लिए दूसरा कोई और हो नहीं सकता। कभी समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे फिल्म डायरेक्टर जो इन दिनों अपनी लंबी चोटी के लिए विख्यात हैं भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ी सिनेमा के एक खलनायक जिन्होंने हाल ही में छॉलीवुड के नाम पर एक संगठन खड़ा किया है वे खुले तौर पर कह रहे हैं हां मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हूं। अध्यक्ष पद की महत्वाकांक्षा पाले हुए कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जन्म दिन या किसी खास त्यौहार पर सीएम हाउस तथा अन्य मंत्रियों के बंगलों के आसपास बधाई संदेश वाला बोर्ड टांगने की परंपरा निभाने से पीछे नहीं रहे हैं। बहरहाल फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद को लेकर यही कहावत चरितार्थ हो रही है- ‘’एक अनार सौ बीमार’’




सोमवार, 25 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

‘’रिश्तों के कई रूप बदलते हैं, नये-नये सांचे में ढलते हैं...’’ ये रबड़ की तरह खींचकर दिखाए गए टीवी सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी का टॉइटल सॉग था। इस सीरियल की मुख्य पात्र स्मृति ईरानी थीं, जो वर्तमान में केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। सीरियल चाहे जैसा रहा हो पर उसका टाइटल सॉग हर क्षेत्र में फिट बैठता है। राजनीति में तो और भी ज़्यादा। पूर्व कांग्रेस विधायक डॉ. शिव कुमार डहरिया के इस बयान से सनसनी फैल गई है कि पिछले महीनों उनकी मां की हत्या जग्गी हत्याकांड जैसी है। जग्गी हत्याकांड रायपुर शहर की पहली बड़ी राजनीतिक हत्या मानी जाती है और इससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि डॉ. डहरिया ने मीडिया के सामने इस तरह की बातें कहकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं उनके बेटे विधायक अमित जोगी पर निशाना साधा है। हालांकि विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने इस घटना की सीबीआई जांच की जो मांग की है उसका अमित जोगी ने समर्थन किया है। ये सर्वविदित है कि डॉ. डहरिया कभी अजीत जोगी के बेहद करीबी हुआ करते थे। 2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे के सामने आने के बाद भाजपा नेता अरुण जेटली अचानक रायपुर आए थे। उन्होंने मीडिया के सामने तथाकथित खरीद फरोख्त वाले एक टेप का भंडाफोड़ किया था। उस टेप के सामने आने से तत्कालीन निवर्तमान मुख्यमंत्री अजीत जोगी निशाने पर आ गए थे। टेप के सामने आने के चंद घंटों बाद कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती अंबिका सोनी ने जोगी को कांग्रेस से निलंबित करने की घोषणा कर दी थी। टेप सामने आने के ठीक दूसरे दिन डॉ. रमन सिंह भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले थे। डॉ. रमन सिंह की शपथ से कुछ घंटे पहले जोगी ने प्रदेश के सरकारी विमान से दिल्ली के लिए उड़ान भर ली थी। जोगी के दिल्ली जाने का मकसद कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखना था। अपने राजनीतिक कैरियर के उस अति कठिन समय में जोगी स्टेट प्लेन से जिस शख्स को साथ लेकर गए थे वो और कोई नहीं डॉ. शिवकुमार डहरिया थे। 2009 के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी मरवाही तथा डॉ. डहरिया पलारी से चुनाव जीते थे। उस कार्यकाल में विधानसभा में ऐसे कई दृश्य उपस्थित होते थे, जब गंभीर मसलों पर डहरिया जोगी की बातों का समर्थन करते नज़र आते थे। लेकिन अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। मां और पिता पर जानलेवा हमले की घटना के बाद से डहरिया पर दुख का पहाड़ टूटा हुआ है। डहरिया व्दारा मीडिया के सामने यह कहने पर कि जोगी शासनकाल में जैसा जग्गी हत्याकांड हुआ था ठीक उसी तरह उनकी मां की हत्या हुई, राजनीतिक जगत में हड़कम्प मच गया है। जोगी एवं डहरिया के बीच के रिश्तों के मायने कैसे बदल गए, इसकी वजह अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित नहीं समझ पा रहे हैं। जोगी खेमे व्दारा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के गठन की घोषणा के बाद प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस तरह घने बादल छाए हुए हैं, उससे आसार तो यही नज़र आ रहे हैं कि आने वाले दिनों में प्रदेश में तूफानी राजनीतिक बारिश होते रहेगी।

सरकार में बैठे लोगों से
ज़्यादा क्या हाथी बुद्धिमान?
सरगुजा, रायगढ़ एवं कोरिया जैसे इलाकों में जंगली हाथियों के कारण लोगों की एक के बाद एक जानें जो जा रही हैं, इस पर विधानसभा के मानसून सत्र में लंबी बहस हुई। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव समेत अन्य कांग्रेस विधायकों ने जंगली हाथियों व्दारा मचाई जा रही तबाही को लेकर सदन में  गहरी चिंता जताई। वन मंत्री महेश गागड़ा विपक्षी विधायकों के सवालों का जवाब देते समय कुछ ऐसा कह गए जिसकी जमकर चर्चा है। गागड़ा ने सदन के भीतर जवाब देते हुए कहा कि हाथियों पर नियंत्रण पाने सरकार ने बड़े-बड़े गड्ढे खोदने समेत और भी बहुत से उपाय किए हैं। लेकिन हाथी बुद्धिमान जानवर है। कोई हाथी गड्ढे में गिर भी जाए तो उसके साथ वाले हाथी मिलकर उसे गड्ढे से बाहर निकाल लाते हैं। गागड़ा के इस जवाब पर नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी थी। विधानसभा के गलियारे में एक विपक्षी विधायक ने चुटकी लेते हुए कहा कि गागड़ा का जो जवाब सामने आया है उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि सरकार में बैठे लोगों की बुद्धि पर हाथियों की बुद्धि भारी पड़ रही है।


कुछ तो बात है भिलाई के पानी में
इस्पात नगरी भिलाई एक बार फिर देश स्तर पर चर्चा में है। भिलाई की बेटी अलीशा बेहुरा एंड टीवी के डॉस रियलिटी शो में विजेता रहीं। उन्होंने देश के कई बेहतरीन डांसरों को पछाड़ते हुए यह प्रतियोगता जीती। जानी-मानी बॉलीवुड एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित ने अलीशा को विजेता ट्राफी प्रदान की। अलीशा के विजेता बनने से भिलाई शहर की शान में और चार चांद लग गए। भिलाई शहर की तासीर कुछ ऐसी है कि वहां से एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली लोग निकलते रहे हैं। भिलाई के पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार नेल्सन के नाम की चर्चा दूर-दूर तक है। मर्डर जैसी फिल्म से बॉलीवुड में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ने वाले फिल्म डायरेक्टर अनुराग बसु भिलाई की देन हैं। वे इस समय रणबीर कपूर एवं कैटरीना कैफ जैसे सितारों को लेकर जग्गा जासूस फिल्म बना रहे हैं। भिलाई में पली-बढ़ी रिन्ही सब्बरवाल मुम्बई में जाने-माने कोरियोग्राफर विष्णु देवा के साथ डॉस स्कूल चला रही हैं। विष्णु देवा साउथ की फिल्मों में कोरियोग्राफी में तहलका मचा चुके कोरियोग्राफर एवं अभिनेता प्रभु देवा के भाई हैं। कुछ वर्षों पहले एक चैनल ने गाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता रखी थी, जिसमें भिलाई के अमित साना ने दूसरे या तीसरे स्थान पर जगह बनाई थी। इस समय कुछ नहीं तो साल में दो से तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म भिलाई के लोग बना रहे हैं। भिलाई के डायरेक्टर पवन गुप्ता की छत्तीसगढ़ी फिल्म तोर खातिर बॉलीवुड की फिल्मों को टक्कर देती नज़र आती है। भिलाई के पानी में कुछ तो बात है।

नक्सली समस्या से निपटने
अब बस्तर बटालियन
खबर यह है कि नक्सलवाद का सामना करने के लिए अब बस्तर बटालियन का गठन होने जा रहा है। इस तरह की बटालियन बनाने का प्रस्ताव सीआरपीएफ की तरफ से दिया गया था, जिस पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से स्वीकृति मिल गई है। बस्तर बटालियन में बस्तर क्षेत्र के ही उन पढ़े लिखे आदिवासियों की भर्ती की जाएगी जो बेरोजगार हैं। बस्तर बटालियन में बस्तर के ही लोगों को लेने का प्रमुख कारण है यह कि वे वहां की नस-नस से वाकिफ हैं। बस्तर में पदस्थ वरिष्ठ पुलिस अफसरों का यह मानना रहा है कि नक्सली समस्या का पूर्ण समाधान तभी निकलेगा जब वहीं के लोग उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। वरिष्ठ पुलिस अफसरों का मानना है कि जब आंध्र प्रदेश में 70 से 80 प्रतिशत तक नक्सलवाद खत्म हो चुका है तो छत्तीसगढ़ में ऐसा हो पाना कोई असंभव नहीं। वैसे छत्तीसगढ़ की सरकार बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक शिवराम प्रसाद कल्लूरी की भूमिका से पूरी तरह संतुष्ट दिख रही है। कल्लूरी के बस्तर में पदस्थ होने के बाद बदलाव यह दिखा कि नक्सलवाद का समर्थन करने वाले कई लोग पुलिस के सामने सरेंडर हुए। कभी ऐसा भी समय हुआ करता था जब बस्तर के कई पुलिस थानों के बाहर के गेट पर रात में ताले लग जाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आए दिन पुलिस व नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रही है। पुलिस कर्मी शहीद हो रहे हैं तो उधर उतनी ही संख्या में नक्सली भी मारे जा रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी बस्तर क्षेत्र नक्सलवाद से पूरी तरह कब मुक्त होगा इसका जवाब तो शायद ऊपर वाले के पास ही हो। वैसे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सली समस्या के निराकरण हेतु कितने उपाय नहीं ढूंढे होंगे। पंजाब को आतंकवाद से पूरी तरह मुक्ति दिलाने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अफसर केपीएस गिल की सेवाएं एक साल तक छत्तीसगढ़ सरकार ने ली थी। गिल ने नक्सली समस्या से निपटने जो फार्मूले दिए थे वह कागजों में ही रह गए। इस बीच कांकेर के पास जंगलवार कॉलेज शुरू हुआ। जंगलवार कॉलेज मतलब ऐसी फैक्ट्री जहां से नक्सलियों से निपटने अधिक से अधिक लड़ाकू तैयार हो सकें। जंगलवार कॉलेज के कितने सार्थक परिणाम निकले वह तो बस्तर में सूरक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग ही बता सकते हैं। नक्सलवाद से निपटने किसी समय केन्द्र सरकार ने नागा बटालियन बस्तर भेजी थी। नागा बटालियन में निडर लोगों की भरमार तो थी, पर इनके आने से विचित्र तरह की परिस्थितयां निर्मित होती दिखीं। बीजापुर एवं बारसुर समेत और भी कई इलाकों में कुत्तों की संख्या तेजी से कम होती चली गई। माना यही जाता है कि यहां के कुत्ते नागा बटालियन के ही हाथों वीर गति को प्राप्त हुए। न जाने कितने ही कुत्ते बेवजह मारे गए। तमिलनाडु के आईपीएस अफसर के. विजय कुमार को कुख्यात चंदन तस्कर बीरप्पन को मार गिराने का श्रेय जाता है। प्रशासनिक क्षेत्र में गहरी दखल रखने वाले लोग बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार नक्सली समस्या से निपटने के. विजय कुमार की सेवाएं लेना चाहती थी, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिर छत्तीसगढ़ सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से केन्द्र सरकार को पत्र गया कि नक्सली समस्या का समाधान निकालने सेना की भागेदारी ज़रूरी है। माना यही जाता है कि केन्द्र में प्रदेश सरकार की बात सुनी गई। अबूझमाड़ में सेना का ट्रेनिंग केम्प खोलने की प्रारंभिक तैयारियां शुरु हो चुकी थीं। स्थान का चयन हो चुका था और केम्प के लिए जंगल झाड़ियां भी काटी गई थीं। बाद में मामला ठंडा पड़ते चले गया। बहरहाल बस्तर बटालियन का नया प्रयोग जो होने जा रहा है उसे लेकर सरकार और बस्तर की सूरक्षा में लगे पुलिस और सैन्य बल दोनों को काफी उम्मीदें हैं।

जमीन के कारोबारियों का बुरा हाल
सन् 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना रायपुर के राजधानी बनने पर यहां मानो कितने ही करोड़पति और अरबपति रियल स्टेट के कारोबार में कूद पड़े। टाटीबंद, मोवा, तेलीबांधा, देवपुरी एवं भनपुरी तक ही कभी रायपुर शहर की सीमा मानी जाती थी। सरकारी एजेन्सी हाउसिंग बोर्ड एवं रायपुर विकास प्राधिकरण से लेकर बिल्डर्स कौम हर दिशाओं में मकान बनाते चली गई और रायपुर शहर का ऐसा विस्तार हुआ कि इसे मिनी मेट्रो कहा जाने लगा। अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण थोक के भाव मिडिल क्लास के लिए मकान बनाने जा रहे हैं। इससे बड़ी बात और क्या होगी जिनके पास कोई मकान नहीं है उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत न सिर्फ सस्ते में मकान उपलब्ध होगा बल्कि सरकार की ओर से डेढ़ से दो लाख की सब्सिडी भी मिलेगी। प्रधानमंत्री आवास योजना के के मकानों के आवेदन बिकने शुरु हो गए हैं। हर दिन हाउसिंग बोर्ड व प्राधिकरण के दफ्तर में आवेदन खरीदने वालों की भारी भीड़ दिखाई देती है। रियल स्टेट से जुड़े कारोबारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें मानो अब और ज्यादा खींची दिखने लगी हैं। कई कारोबारी जो मध्यम वर्ग के लोगों के लिए छह से बारह लाख रुपये तक का फ्लैट बनाकर बेचने की तैयारी में थे, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना आने के बाद मानो और बड़ा झटका लगा है। वीआईपी शब्द से ज्यादा प्रेम करने वाला एक कारोबारी पिछले दस साल से चाहकर भी अपनी मनपसंद साइड के प्लाटों की ठीक तरह से बिक्री नहीं कर पा रहा है। इस कारोबारी को अपनी शख्सियत पर कुछ इस तरह नाज़ रहा है कि उसने मुम्बई जाकर एक फिल्म भी बना डाली। खुद फिल्म का हीरो बन गया। वह फिल्म पूरी बन जाने के बाद अब डिब्बे में बंद पड़ी है। इसी तरह गनमेन लेकर घूमने के लिए ख्यात एक रियल स्टेट कारोबारी रायपुर शहर की उस दिशा में खूबसूरत कॉलोनी बनाने का सपना दिखा रहा है, जहां उद्योगों का भारी प्रदूषण है। राजधानी रायपुर के रियल स्टेट के कारोबार की कहानी अपरम्पार है।   



                                                               

रविवार, 10 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे
विधानसभा का मानसून सत्र 11 जुलाई से शुरु होने जा रहा है। विपक्षी कांग्रेस दल के पास जहां सरकार पर हमला बोलने के लिए पर्याप्त मुद्दे हैं, वहीं सत्ता पक्ष के पास विपक्ष के सामने चलाने कई फुलझड़ियां हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद विधानसभा का यह पहला सत्र है। स्वाभाविक है कि मंत्रीगण व सत्ता पक्ष के विधायक  छेड़ने वाले अंदाज में विपक्ष से एक के बाद एक कई सवाल करते दिखेंगे। हो सकता है कि मंत्री अजय चंद्राकर चुटीले अंदाज में विपक्ष से पूछ बैठें कि यह तो बताएं कि भाभी जी (श्रीमती रेणु जोगी) किस तरफ हैं। वैसे श्रीमती जोगी पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे कांग्रेस के साथ हैं। वहीं कांग्रेस विधायक आर.के. राय हर कदम पर अजीत जोगी के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। राय की भूमिका पर भी सत्ता पक्ष मजाकिया लहजे में सवाल करने से शायद ही पीछे रहे। दूसरी तरफ इस पावस सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने अपनी तरफ से पूरी एक्सरसाइज कर रखी है। बस्तर में हाल ही में जो रेप की घटना हुई उसे सदन में जोरों से उठाने विपक्ष ने पर्याप्त तैयारी कर रखी है। अमृत दूध के सेवन से दो बच्चों की मौत और कई के बीमार पड़ने का मुद्दा सदन में जोरों से उठेगा इसके पूरे आसार नज़र आ रहे हैं। विपक्षी सदस्यों ने अगस्ता हैलीकाप्टर घोटाले को प्रमुखता से उठाने इससे जुड़े तथ्यों का गंभीरता से अध्ययन किया है। जो हो, इस बार के मानसून सत्र में विपक्ष यह जताने की कोशिश ज़रूर करेगा कि कांग्रेस से चाहे कितना भी बड़ा आदमी क्यों न चले जाए, पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

कैसे हो पूर्ण शराबबंदी
विधानसभा के मानसून सत्र में शराबखोरी का मुद्दा भी छाया रहेगा। महासमुंद के निर्दलीय विधायक डॉ. विमल चोपड़ा पिछले ढाई साल से शराब के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं। अब बसपा विधायक केशव चंद्रा भी उनके साथ हो गए हैं। दोनों विधायकों ने ऐलान कर दिया है कि विधानसभा में पूरे दमखम के साथ प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की मांग उठाएंगे। मानसून सत्र के दौरान हर दिन विधानसभा परिसर में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने पूर्ण शराबबंदी को लेकर मौन व्रत रखेंगे। पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार जॉन मार्टिन नेल्सन व्दारा विधानसभा में बनाई गई प्रतिमा काफी अद्भुत है। ऐसा कई बार हुआ है कि विपक्षी विधायक सरकार की नीतियों पर असहमत होते हैं तो गांधी जी की प्रतिमा के पास धरना देकर बैठ जाते हैं। डॉ. विमल चोपड़ा एवं केशव चंद्रा ने यही सोचा कि शराब जैसे गंभीर मुद्दे पर विरोध दर्ज कराने बापू की प्रतिमा स्थल जैसा दूसरा कोई और गरिमामय स्थान  नहीं हो सकता। इसी विधानसभा में पूर्व में कभी कांग्रेस विधायक श्रीमती रेणु जोगी ने भी शराब के मुद्दे को उठाया था। श्रीमती जोगी ने गहरी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि तीर्थ स्थल रतनपुर में देवी के मंदिर से थोड़ी दूर पर धड़ल्ले से शराब दुकान चल रही है, जिसे हटाया जाए। श्रीमती जोगी ने जिस गंभीरता के साथ इस मुद्दे को उठाया था, आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल से जवाब देते नहीं बना था। शराब से होने वाली बरबादी को राजधानी रायपुर के मशहूर शायर रज़ा हैदरी ने शायद बेहतर तरीके से महसूस किया था। अजीज़ नाज़ा की एक कव्वाली है- झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम...। रज़ा हैदरी ने इस कव्वाली के बोल को बिल्कुल उल्टा करते हुए लिख दिया था- छोड़ दे पीना छोड़ शराबी, छोड़ दे पीना छोड़...। हैदरी की इस कव्वाली के आगे के हिस्से में शराब से होने वाली बरबादी का बखूबी वर्णण था। लेकिन इस पर सोचने की फुरसत भला किसके पास। राजधानी रायपुर में मंत्रियों के बंगले से थोड़े कदमों की दूरी पर ऐसी जगह शराब दुकान है जिसके ठीक सामने किडनी का हास्पीटल है और बगल में स्कूल। मंत्रियों के बंगले के आसपास जब ये आलम है तो प्रदेश के बाकी स्थानों का तो भगवान ही मालिक है।

कोई जोगी भक्त, तो
कोई कांग्रेस के साथ
छत्तीसगढ़ की राजनीति इस समय काफी दिलचस्प दौर से गुजर रही है। कोंटा के विधायक कवासी लखमा कांग्रेस में हैं तो उनके बेटे हरीश लखमा अजीत जोगी के साथ। डौंडीलोहारा विधायक श्रीमती अनिला भेंड़िया कांग्रेस में हैं तो उनके जेठ डोमेंद्र भेंडिया जोगी खेमे में। पूर्व विधायक परेश बागबाहरा जहां जोगी जी के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं, वहीं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा सबसे यही कह रहे हैं कि मैं कांग्रेस से अलग नहीं। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। जिस तरह बहुत से कांग्रेसी छिटककर जोगी खेमे की तरफ जा रहे हैं उस पर एक दिग्गज कांग्रेस नेता का मानना है कि कोई कहीं जाए हमारी पार्टी कमजोर नहीं होने वाली। उनका कहना है कि एक ही परिवार के दो लोगों के अलग-अलग पार्टियों में रहने का इतिहास पुराना है। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया भाजपा में थीं तो उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस की शान थे। गांधी परिवार के ही मेनका गांधी और वरुण गांधी भाजपा में चले गए तो कौन सा कांग्रेस में तूफान आ गया था। इसके और पहले इमर्जेन्सी हटने के बाद कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई थी तो पंडित जवाहरलाल नेहरु की बहन विजयलक्ष्मी पंडित अपनी ही भतीजी श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ सभाएं करती नज़र आई थीं। इस सब के बाद भी इंदिरा जी सत्ता में लौटकर आई थीं। आना और जाना ये तो राजनीति का बहुत पुराना खेल है। कांग्रेस का आज भी जनता के साथ वही पुराना मेल है।

स्वाभिमान मंच फिर बिखरा
कभी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथा सांसद रहे ताराचंद साहू ने जिन संकल्पों को लेकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की स्थापना की थी उसमें पहले से पड़ी हुई दरार मानो अब और ज्यादा चौड़ी हो गई है। मंच के केन्द्रीय अध्यक्ष मन्नूलाल परगनिहा व और भी बहुत से पदाधिकारियों ने अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस में जाने की घोषणा कर दी। साथ में यह भी ऐलान कर दिया कि स्वाभिमान मंच का जोगी की पार्टी में विलय हो गया है। वहीं स्वाभिमान मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष राजकुमार गुप्ता एवं कुछ और पदाधिकारियों ने दावा किया है कि मंच का कहीं कोई विलय नहीं हुआ, वह अब भी अस्तित्व में है। जब तक ताराचंद साहू जीवित थे तब मंच लगातार ताकतवर होता नज़र आया था। उनके निधन के बाद मानो सब कुछ छिन्न-भिन्न होते चला गया। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू स्वाभिमान मंच की कमान सम्हाले हुए थे। विधानसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले दिल्ली में दीपक साहू की कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से जो गोपनीय मुलाकात हुई थी, उसकी चर्चा आज भी राजनीति के गलियारे में होती है। उस विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद दीपक साहू भाजपा में चले गए और पुरस्कार स्वरुप उन्हें छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड अध्यक्ष का पद मिला। उनके भाजपा में जाने के बाद भी स्वाभिमान मंच बने रहा। स्वाभिमान मंच तो अब भी बना हुआ है लेकिन उसकी ताकत कितनी घट चुकी है, वो तो वे ही लोग अच्छी तरह जान पा रहे होंगे जो कि उसे ऑक्सीजन पर रखे हुए हैं।


अपने ही शहर में अग्नि परीक्षा
इसके पहले विपक्ष को लगातार आवाज़ उठाने का मौका मिलता सरकार ने पुलिस विभाग में बड़ी सर्जरी कर दी। एक महिला कांस्टेबल के आरोपों से घिरे पवन देव को बिलासपुर आईजी पद से हटाकर पीएचक्यू आईजीसीआईडी भेज दिया गया। दूसरा राजधानी रायपुर में पखवाड़े भर के भीतर गोली चलाने की तीन बड़ी घटनाएं जो हुई उस पर कड़ा निर्णय लेते हुए सरकार ने बी.एन. मीणा को रायपुर एसपी से हटाकर रायगढ़ एसपी पद पर भेजा। रायगढ़ एसपी रहे संजीव शुक्ला को रायपुर एसपी की कमान सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर एसपी के रूप में मुकेश गुप्ता एवं दीपांशु काबरा का कार्यकाल ही ऐसा रहा, जब राजधानी में कानून व्यवस्था नाम की चीज नज़र आती थी। बाकी और किसी आईपीएस में यह बात देखने में नहीं आई के कि शहर में अपराधों पर नियंत्रण रखने के नाम पर वह छाप छोड़ पाया हो। संजीव शुक्ला सरकार के काफी विश्वसनीय अफसर माने जाते हैं। पूरे भरोसे के साथ सरकार ने उनको राजधानी रायपुर में बिठाया है। रायपुर में बरसों से रह रहे लोग जानते हैं कि इस शहर की सदर बाजार, बूढ़ापारा एवं नयापारा की गलियों में खेलते हुए संजीव शुक्ला का बचपन बीता। उनकी कॉलेज की पढ़ाई रायपुर के ही दुर्गा कॉलेज में पूरी हुई। पुलिस के बड़े पद पर पहुंचने का असर यह रहा उनके व्यक्तित्व में पहले से कहीं ज्यादा गंभीरता आ गई। अमिताभ बच्चन की तरह ऊंचे पूरे संजीव शुक्ला से सरकार ही नहीं उनके अपने रायपुर के लोगों के बीच भी बहुत सी अपेक्षाएं हैं। शुक्ला के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि उनके अपने ही शहर में बुरी तरह ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था के साथ वह कितना न्याय कर पाते हैं।