छत्तीसगढ़
एक्सप्रेस
0 अनिरुद्ध दुबे
उत्तर प्रदेश के
पूर्व मुख्यमंत्रियों को सूप्रीम कोर्ट के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। वहां पूर्व
मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर सरकारी बंगला खाली करने का आदेश कोर्ट से हुआ
है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में
फैसला सुनाया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में रहने का कोई अधिकार
नहीं। हालांकि कोर्ट का यह फैसला उत्तरप्रदेश के लिए आया है, लेकिन हलचल सभी
राज्यों में मची हुई है। छत्तीसगढ़ इससे परे नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बने ज्यादा
नहीं 15 साल नौ महीने ही हुए हैं। यहां पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर फिलहाल एक ही
शख्सियत हैं अजीत जोगी। छत्तीसगढ़ में इन दिनों चर्चा घर किए हुए है कि कोर्ट के
फैसले का असर यहां भी दिखेगा और जोगी को सागौन बंगला खाली करना पड़ सकता है। जोगी
ने इस बंगले में शिफ्ट होने के बाद इसे ‘अनुग्रह’ नाम दिया, पर पुराने लोग आज भी इसे सागौन बंगला ही कहते हैं। सागौन बंगला
अपने आप में इतने रहस्य समेटे हुए है कि इस पर एक रोचक उपन्यास लिखा जा सकता है।
रायपुर शहर के बहुत से पुराने लोग जो कुछ-कुछ सागौन बंगले के बारे में जानते हैं
वे यही कहते हैं कि इसमें बड़ा वास्तु दोष है। इस बंगले में रहे कुछ ऐसे नाम हैं
जो हाशिये पर चले गए। बात जुगल किशोर साहू से शुरू होती है, जो वर्तमान वरिष्ठ
कांग्रेस विधायक एवं पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू के छोटे भाई हैं। जब छत्तीसगढ़
राज्य नहीं बना था, जुगल किशोर साहू रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष थे। तब रायपुर जैसे
छोटे शहर में सांसद, विधायक एवं महापौर के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बहुत बड़ी
हस्ती हुआ करती थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद जुगल किशोर साहू को सागौन
बंगला अलॉट हुआ था। तब जुगल किशोर काफी युवा थे और उनकी मित्र मंडली से रात में
सागौन बंगला गुलजार रहा करता था। रात वाली उस महफिल में मीडिया जगत के कुछ लोग भी
हुआ करते थे। जुगल की मीडिया के लोगों से निकटता ही वजह थी कि उस समय रायपुर के
अखबारों में उन्हें काफी स्पेस मिला करता था। राजनीति में जुगल का नाम इतने ऊपर तक
पहुंच गया था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको भाजपा प्रत्याशी रमेश
बैस के खिलाफ मैदान में उतारा। जुगल लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन उस समय उनके
नाम की चर्चा रायपुर से लेकर राजधानी भोपाल तक हुई थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था
कि इस सहज और सरल युवा नेता का राजनीतिक सितारा बहुत जल्दी अस्त हो जाएगा। जिला
पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जुगल सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूर
होते चले गए। जुगल के उस राजनीतिक पतन को देखते हुए कहा जाने लगा कि सागौन बंगले
के साथ कुछ तो ऐसा है कि वहां रहने वाला अच्छा भला आदमी किनारे लग जाता है। इसकी
एक और मिसाल आगे देखने को मिली। सन 2000 में आईएएस अफसर विवेक देवांगन रायपुर नगर
निगम के कमिश्नर होकर आए। उन्हें सागौन बंगला अलाट हुआ। देवांगन ने रायपुर नगर
निगम का चार्ज लेने के कुछ ही हफ्तों के भीतर साबित कर दिखाया था कि उनका विज़न
कितना तगड़ा है। वे नगर निगम में एक तरह से कम्यूटर क्रांति लाने की तैयारी में थे।
साथ ही रायपुर शहर को नया स्वरूप प्रदान करने की परिकल्पना भी उनके पास थी। कुछ
ऐसी परिस्थितियां बनीं कि तत्कालीन महापौर तरुण चटर्जी और शहर के एक-दो अन्य
रसूखदार लोगों ने देवांगन को यहां से हटाने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। देवांगन
विरोधी मुहिम चलाने वाले लोग अपने मंसूबे में कामयाब रहे। साल भर में ही देवांगन को
रायपुर नगर निगम से विदा होना पड़ा। साथ ही सागौन बंगले से भी। देवांगन पर अचानक
तबादले की गाज गिरने के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ ली कि हो न हो सागौन बंगले में
जरूर कोई गड़बड़ है। यही नहीं नंद कुमार साय जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले नेता
प्रतिपक्ष बने तो उन्हें सागौन बंगला देने की बात हुई थी, पर उन्होंने इसका नाम
सुनते ही दूर से ही हाथ जोड़ लिया। दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। अजीत जोगी के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं
रही, डॉ. रमन सिंह प्रदेश के नये मुखिया बने। जोगी मुख्यमंत्री कार्यकाल में उस
बंगले में रहे थे, जहां वे रायपुर कलेक्टर की हैसियत से पहले कभी लंबे समय तक रह
चुके थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जोगी की अपने उसी पुराने बंगले में बने
रहने की इच्छा थी। कई दिनों तक उन्होंने इस बंगले को खाली नहीं किया था और पहली
बार मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह के हिस्से में लंबा इंतजार आया था। अंततः
परिस्थितियां ऐसी बनी कि जोगी को वह बंगला खाली करना पड़ा और डॉ. रमन सिंह वहां
शिफ्ट हुए। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते शासन ने जोगी को सागौन बंगला अलाट
किया। तब राजनीतिक एवं प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का दौर शुरू हो गया था कि यह
सागौन बंगला न जाने जोगी को किस स्तर तक प्रभावित करेगा। बहरहाल जोगी पिछले साढ़े
बारह सालों से सागौन बंगले में हैं। इन साढ़े बारह सालों में उन्होंने न जाने
कितने ही उतार-चढ़ाव देखे। उसके पीछे कारण चाहे जो रहा हो। बहरहाल जोगी ने मीडिया
वालों से यही कहा है कि वे कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। यदि राज्य सरकार
कोर्ट के निर्णय को यहां लागू करती है तो उसका वे पालन करेंगे।
विधानसभा
अध्यक्ष न
रहें बंगला तो
रहेगा
विधानसभा
अध्यक्ष काफी गरिमामय पद है। जो एक बार विधानसभा अध्यक्ष बनता है अगले कार्यकाल
में वह इस पद पर रहे या ना रहे उसके लिए सरकारी बंगला ज़रूर सुरक्षित रहता है।
पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल थे। उनका अध्यक्षीय कार्यकाल
तीन साल का रहा था। वे अध्यक्ष पद पर नहीं थे, तब भी उन्हें सरकारी बंगला मिला हुआ
था। शुक्ल के बाद डॉ. प्रेमप्रकाश पांडे पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे।
2008 का विधानसभा चुनाव डॉ. पांडे हार गए थे। यानी वे विधायक भी नहीं थे। लेकिन
राजधानी के पॉश इलाके शंकर नगर रोड पर उन्हें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से
बंगला अलाट था। डॉ. पांडे के बाद धरमलाल कौशिक पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष
रहे। 2013 के विधानसभा चुनाव में कौशिक को हार का सामना करना पड़ा। पूर्व विधानसभा
अध्यक्ष की हैसियत से उन्हें रायपुर में सरकारी बंगला मिला हुआ है। यानी एक बार
कोई विधानसभा अध्यक्ष बना तो आगे वह इस पद पर रहे या न रहे, सरकारी बंगला पास में
रहना पक्का है।
पैर छूने की
परंपरा पर प्रहार
हाल ही में
चंपारण्य में हुए भाजपा के महाशिविर में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने
अपने संबोधन में काफी वजनदार बात कही कि राजनीतिक स्वार्थवश कोई किसी के पैर न
छुए। कौशिक के इस वचन को काफी दाद मिली। और क्यों न मिले छत्तीसगढ़ की राजनीति में
बरसों से पैर छुने और छुआने का सिलसिला जो चले आ रहा है। किसी समय में छत्तीसगढ़
की राजनीति में पं श्यामाचरण शुक्ल एवं विद्याचरण शुक्ल की तूती बोलती थी। विद्या
भैया का पैर छुने वालों की बहुतायत थी। एक बार मीडिया वालों ने पैर छुने वाली
संस्कृति को लेकर विद्या भैया से सीधे सवाल कर दिया था। इस सवाल पर वे उखड़ गए थे
और उन्होंने कहा था कि मुझे पैर पड़ने वाली संस्कृति से नफरत है। इसे दिलचस्प
संयोग कहें विद्या भैया के इस कथन के कुछ ही दिनों बाद रायपुर के एक सम्मानित
अखबार का वरिष्ठ फोटोग्राफर अपने कैमरे में ऐसी तस्वीर कैद करने में कामयाब रहा,
जिसमें भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाला एक नेता विद्या भैया के पैर छूते नज़र
आ रहा था। विद्या भैया ने फोटोग्राफर को तस्वीर खींचते देख लिया था और उस पर काफी
नाराज़ भी हुए थे। मीडिया वालों के भी अपने कुछ उसूल होते हैं। पैर पड़वाने वाली
वह तस्वीर अखबार में प्रकाशित हुई और उस पर शहर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी।
बहरहाल भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, किसी बड़े नेता की निगाहों में
चढ़ने के लिए पैर छुने की परंपरा आज भी बनी हुई है। धरमलाल कौशिक ने चंपारण्य में
जो बातें कही उस पर हर राजनीतिक पार्टी को विचार ज़रूर करना चाहिए।
डॉ. रमन का
फिल्मी ज्ञान
चंपारण्य में भाजपा के प्रशिक्षण महाशिविर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का नाम लेते
हुए कहा कि यह जोड़ी ‘शोले’ फिल्म की जय और वीरू की जोड़ी की तरह है, जो राज्य में कई तरह के झूठ को सच
प्रचारित करने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री के इस कथन पर राजनीतिक जगत में
भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। कांग्रेस की तरफ से बयान जारी हुआ कि यही
जय और वीरू की जोड़ी गब्बर सिंह के राज्य का खात्मा करेगी। डॉ. रमन सिंह को करीब
से जानने वाले बताते हैं कि बरसों पहले जब उनकी राजनीतिक व्यस्तता नहीं हुआ करती थी
तब फिल्म देखने के लिए वह खूब समय निकाला करते थे। यहां तक कि काफी समय तक डॉ.
साहब के बाल कानों पर ठीक उसी तरह झूलते नज़र आया करते थे जैसे कि जय यानी अमिताभ
बच्चन के आया करते थे। डॉ. साहब के लंबे बालों वाली तस्वीर आज भी कितने ही लोगों
के फेस बुक से इधर से उधर होती रहती है। डॉ. साहब के फिल्मों के प्रति प्रेम की बानगी
हाल ही में रायपुर में हुए एक उस कार्यक्रम में देखने को मिली, जिसमें फिल्म
अभिनेता अमोल पालेकर मौजूद थे। डॉ. साहब ने मंच से कहा कि बरसों पहले पालेकर जी को
मैं फिल्मों जैसे देखा करता था वे आज भी उसी तरह हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव
नहीं आया है। बहरहाल प्रदेश की जनता अब यह अच्छी तरह समझ पा रही है कि डॉक्टर साहब
का फिल्मों के प्रति न सिर्फ गहरा लगाव है बल्कि उनका फिल्मी ज्ञान भी तगड़ा है।
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