सोमवार, 25 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

‘’रिश्तों के कई रूप बदलते हैं, नये-नये सांचे में ढलते हैं...’’ ये रबड़ की तरह खींचकर दिखाए गए टीवी सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी का टॉइटल सॉग था। इस सीरियल की मुख्य पात्र स्मृति ईरानी थीं, जो वर्तमान में केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। सीरियल चाहे जैसा रहा हो पर उसका टाइटल सॉग हर क्षेत्र में फिट बैठता है। राजनीति में तो और भी ज़्यादा। पूर्व कांग्रेस विधायक डॉ. शिव कुमार डहरिया के इस बयान से सनसनी फैल गई है कि पिछले महीनों उनकी मां की हत्या जग्गी हत्याकांड जैसी है। जग्गी हत्याकांड रायपुर शहर की पहली बड़ी राजनीतिक हत्या मानी जाती है और इससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि डॉ. डहरिया ने मीडिया के सामने इस तरह की बातें कहकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं उनके बेटे विधायक अमित जोगी पर निशाना साधा है। हालांकि विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने इस घटना की सीबीआई जांच की जो मांग की है उसका अमित जोगी ने समर्थन किया है। ये सर्वविदित है कि डॉ. डहरिया कभी अजीत जोगी के बेहद करीबी हुआ करते थे। 2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे के सामने आने के बाद भाजपा नेता अरुण जेटली अचानक रायपुर आए थे। उन्होंने मीडिया के सामने तथाकथित खरीद फरोख्त वाले एक टेप का भंडाफोड़ किया था। उस टेप के सामने आने से तत्कालीन निवर्तमान मुख्यमंत्री अजीत जोगी निशाने पर आ गए थे। टेप के सामने आने के चंद घंटों बाद कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती अंबिका सोनी ने जोगी को कांग्रेस से निलंबित करने की घोषणा कर दी थी। टेप सामने आने के ठीक दूसरे दिन डॉ. रमन सिंह भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले थे। डॉ. रमन सिंह की शपथ से कुछ घंटे पहले जोगी ने प्रदेश के सरकारी विमान से दिल्ली के लिए उड़ान भर ली थी। जोगी के दिल्ली जाने का मकसद कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखना था। अपने राजनीतिक कैरियर के उस अति कठिन समय में जोगी स्टेट प्लेन से जिस शख्स को साथ लेकर गए थे वो और कोई नहीं डॉ. शिवकुमार डहरिया थे। 2009 के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी मरवाही तथा डॉ. डहरिया पलारी से चुनाव जीते थे। उस कार्यकाल में विधानसभा में ऐसे कई दृश्य उपस्थित होते थे, जब गंभीर मसलों पर डहरिया जोगी की बातों का समर्थन करते नज़र आते थे। लेकिन अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। मां और पिता पर जानलेवा हमले की घटना के बाद से डहरिया पर दुख का पहाड़ टूटा हुआ है। डहरिया व्दारा मीडिया के सामने यह कहने पर कि जोगी शासनकाल में जैसा जग्गी हत्याकांड हुआ था ठीक उसी तरह उनकी मां की हत्या हुई, राजनीतिक जगत में हड़कम्प मच गया है। जोगी एवं डहरिया के बीच के रिश्तों के मायने कैसे बदल गए, इसकी वजह अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित नहीं समझ पा रहे हैं। जोगी खेमे व्दारा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के गठन की घोषणा के बाद प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस तरह घने बादल छाए हुए हैं, उससे आसार तो यही नज़र आ रहे हैं कि आने वाले दिनों में प्रदेश में तूफानी राजनीतिक बारिश होते रहेगी।

सरकार में बैठे लोगों से
ज़्यादा क्या हाथी बुद्धिमान?
सरगुजा, रायगढ़ एवं कोरिया जैसे इलाकों में जंगली हाथियों के कारण लोगों की एक के बाद एक जानें जो जा रही हैं, इस पर विधानसभा के मानसून सत्र में लंबी बहस हुई। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव समेत अन्य कांग्रेस विधायकों ने जंगली हाथियों व्दारा मचाई जा रही तबाही को लेकर सदन में  गहरी चिंता जताई। वन मंत्री महेश गागड़ा विपक्षी विधायकों के सवालों का जवाब देते समय कुछ ऐसा कह गए जिसकी जमकर चर्चा है। गागड़ा ने सदन के भीतर जवाब देते हुए कहा कि हाथियों पर नियंत्रण पाने सरकार ने बड़े-बड़े गड्ढे खोदने समेत और भी बहुत से उपाय किए हैं। लेकिन हाथी बुद्धिमान जानवर है। कोई हाथी गड्ढे में गिर भी जाए तो उसके साथ वाले हाथी मिलकर उसे गड्ढे से बाहर निकाल लाते हैं। गागड़ा के इस जवाब पर नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी थी। विधानसभा के गलियारे में एक विपक्षी विधायक ने चुटकी लेते हुए कहा कि गागड़ा का जो जवाब सामने आया है उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि सरकार में बैठे लोगों की बुद्धि पर हाथियों की बुद्धि भारी पड़ रही है।


कुछ तो बात है भिलाई के पानी में
इस्पात नगरी भिलाई एक बार फिर देश स्तर पर चर्चा में है। भिलाई की बेटी अलीशा बेहुरा एंड टीवी के डॉस रियलिटी शो में विजेता रहीं। उन्होंने देश के कई बेहतरीन डांसरों को पछाड़ते हुए यह प्रतियोगता जीती। जानी-मानी बॉलीवुड एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित ने अलीशा को विजेता ट्राफी प्रदान की। अलीशा के विजेता बनने से भिलाई शहर की शान में और चार चांद लग गए। भिलाई शहर की तासीर कुछ ऐसी है कि वहां से एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली लोग निकलते रहे हैं। भिलाई के पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार नेल्सन के नाम की चर्चा दूर-दूर तक है। मर्डर जैसी फिल्म से बॉलीवुड में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ने वाले फिल्म डायरेक्टर अनुराग बसु भिलाई की देन हैं। वे इस समय रणबीर कपूर एवं कैटरीना कैफ जैसे सितारों को लेकर जग्गा जासूस फिल्म बना रहे हैं। भिलाई में पली-बढ़ी रिन्ही सब्बरवाल मुम्बई में जाने-माने कोरियोग्राफर विष्णु देवा के साथ डॉस स्कूल चला रही हैं। विष्णु देवा साउथ की फिल्मों में कोरियोग्राफी में तहलका मचा चुके कोरियोग्राफर एवं अभिनेता प्रभु देवा के भाई हैं। कुछ वर्षों पहले एक चैनल ने गाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता रखी थी, जिसमें भिलाई के अमित साना ने दूसरे या तीसरे स्थान पर जगह बनाई थी। इस समय कुछ नहीं तो साल में दो से तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म भिलाई के लोग बना रहे हैं। भिलाई के डायरेक्टर पवन गुप्ता की छत्तीसगढ़ी फिल्म तोर खातिर बॉलीवुड की फिल्मों को टक्कर देती नज़र आती है। भिलाई के पानी में कुछ तो बात है।

नक्सली समस्या से निपटने
अब बस्तर बटालियन
खबर यह है कि नक्सलवाद का सामना करने के लिए अब बस्तर बटालियन का गठन होने जा रहा है। इस तरह की बटालियन बनाने का प्रस्ताव सीआरपीएफ की तरफ से दिया गया था, जिस पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से स्वीकृति मिल गई है। बस्तर बटालियन में बस्तर क्षेत्र के ही उन पढ़े लिखे आदिवासियों की भर्ती की जाएगी जो बेरोजगार हैं। बस्तर बटालियन में बस्तर के ही लोगों को लेने का प्रमुख कारण है यह कि वे वहां की नस-नस से वाकिफ हैं। बस्तर में पदस्थ वरिष्ठ पुलिस अफसरों का यह मानना रहा है कि नक्सली समस्या का पूर्ण समाधान तभी निकलेगा जब वहीं के लोग उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। वरिष्ठ पुलिस अफसरों का मानना है कि जब आंध्र प्रदेश में 70 से 80 प्रतिशत तक नक्सलवाद खत्म हो चुका है तो छत्तीसगढ़ में ऐसा हो पाना कोई असंभव नहीं। वैसे छत्तीसगढ़ की सरकार बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक शिवराम प्रसाद कल्लूरी की भूमिका से पूरी तरह संतुष्ट दिख रही है। कल्लूरी के बस्तर में पदस्थ होने के बाद बदलाव यह दिखा कि नक्सलवाद का समर्थन करने वाले कई लोग पुलिस के सामने सरेंडर हुए। कभी ऐसा भी समय हुआ करता था जब बस्तर के कई पुलिस थानों के बाहर के गेट पर रात में ताले लग जाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आए दिन पुलिस व नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रही है। पुलिस कर्मी शहीद हो रहे हैं तो उधर उतनी ही संख्या में नक्सली भी मारे जा रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी बस्तर क्षेत्र नक्सलवाद से पूरी तरह कब मुक्त होगा इसका जवाब तो शायद ऊपर वाले के पास ही हो। वैसे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सली समस्या के निराकरण हेतु कितने उपाय नहीं ढूंढे होंगे। पंजाब को आतंकवाद से पूरी तरह मुक्ति दिलाने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अफसर केपीएस गिल की सेवाएं एक साल तक छत्तीसगढ़ सरकार ने ली थी। गिल ने नक्सली समस्या से निपटने जो फार्मूले दिए थे वह कागजों में ही रह गए। इस बीच कांकेर के पास जंगलवार कॉलेज शुरू हुआ। जंगलवार कॉलेज मतलब ऐसी फैक्ट्री जहां से नक्सलियों से निपटने अधिक से अधिक लड़ाकू तैयार हो सकें। जंगलवार कॉलेज के कितने सार्थक परिणाम निकले वह तो बस्तर में सूरक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग ही बता सकते हैं। नक्सलवाद से निपटने किसी समय केन्द्र सरकार ने नागा बटालियन बस्तर भेजी थी। नागा बटालियन में निडर लोगों की भरमार तो थी, पर इनके आने से विचित्र तरह की परिस्थितयां निर्मित होती दिखीं। बीजापुर एवं बारसुर समेत और भी कई इलाकों में कुत्तों की संख्या तेजी से कम होती चली गई। माना यही जाता है कि यहां के कुत्ते नागा बटालियन के ही हाथों वीर गति को प्राप्त हुए। न जाने कितने ही कुत्ते बेवजह मारे गए। तमिलनाडु के आईपीएस अफसर के. विजय कुमार को कुख्यात चंदन तस्कर बीरप्पन को मार गिराने का श्रेय जाता है। प्रशासनिक क्षेत्र में गहरी दखल रखने वाले लोग बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार नक्सली समस्या से निपटने के. विजय कुमार की सेवाएं लेना चाहती थी, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिर छत्तीसगढ़ सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से केन्द्र सरकार को पत्र गया कि नक्सली समस्या का समाधान निकालने सेना की भागेदारी ज़रूरी है। माना यही जाता है कि केन्द्र में प्रदेश सरकार की बात सुनी गई। अबूझमाड़ में सेना का ट्रेनिंग केम्प खोलने की प्रारंभिक तैयारियां शुरु हो चुकी थीं। स्थान का चयन हो चुका था और केम्प के लिए जंगल झाड़ियां भी काटी गई थीं। बाद में मामला ठंडा पड़ते चले गया। बहरहाल बस्तर बटालियन का नया प्रयोग जो होने जा रहा है उसे लेकर सरकार और बस्तर की सूरक्षा में लगे पुलिस और सैन्य बल दोनों को काफी उम्मीदें हैं।

जमीन के कारोबारियों का बुरा हाल
सन् 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना रायपुर के राजधानी बनने पर यहां मानो कितने ही करोड़पति और अरबपति रियल स्टेट के कारोबार में कूद पड़े। टाटीबंद, मोवा, तेलीबांधा, देवपुरी एवं भनपुरी तक ही कभी रायपुर शहर की सीमा मानी जाती थी। सरकारी एजेन्सी हाउसिंग बोर्ड एवं रायपुर विकास प्राधिकरण से लेकर बिल्डर्स कौम हर दिशाओं में मकान बनाते चली गई और रायपुर शहर का ऐसा विस्तार हुआ कि इसे मिनी मेट्रो कहा जाने लगा। अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण थोक के भाव मिडिल क्लास के लिए मकान बनाने जा रहे हैं। इससे बड़ी बात और क्या होगी जिनके पास कोई मकान नहीं है उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत न सिर्फ सस्ते में मकान उपलब्ध होगा बल्कि सरकार की ओर से डेढ़ से दो लाख की सब्सिडी भी मिलेगी। प्रधानमंत्री आवास योजना के के मकानों के आवेदन बिकने शुरु हो गए हैं। हर दिन हाउसिंग बोर्ड व प्राधिकरण के दफ्तर में आवेदन खरीदने वालों की भारी भीड़ दिखाई देती है। रियल स्टेट से जुड़े कारोबारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें मानो अब और ज्यादा खींची दिखने लगी हैं। कई कारोबारी जो मध्यम वर्ग के लोगों के लिए छह से बारह लाख रुपये तक का फ्लैट बनाकर बेचने की तैयारी में थे, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना आने के बाद मानो और बड़ा झटका लगा है। वीआईपी शब्द से ज्यादा प्रेम करने वाला एक कारोबारी पिछले दस साल से चाहकर भी अपनी मनपसंद साइड के प्लाटों की ठीक तरह से बिक्री नहीं कर पा रहा है। इस कारोबारी को अपनी शख्सियत पर कुछ इस तरह नाज़ रहा है कि उसने मुम्बई जाकर एक फिल्म भी बना डाली। खुद फिल्म का हीरो बन गया। वह फिल्म पूरी बन जाने के बाद अब डिब्बे में बंद पड़ी है। इसी तरह गनमेन लेकर घूमने के लिए ख्यात एक रियल स्टेट कारोबारी रायपुर शहर की उस दिशा में खूबसूरत कॉलोनी बनाने का सपना दिखा रहा है, जहां उद्योगों का भारी प्रदूषण है। राजधानी रायपुर के रियल स्टेट के कारोबार की कहानी अपरम्पार है।   



                                                               

रविवार, 10 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे
विधानसभा का मानसून सत्र 11 जुलाई से शुरु होने जा रहा है। विपक्षी कांग्रेस दल के पास जहां सरकार पर हमला बोलने के लिए पर्याप्त मुद्दे हैं, वहीं सत्ता पक्ष के पास विपक्ष के सामने चलाने कई फुलझड़ियां हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद विधानसभा का यह पहला सत्र है। स्वाभाविक है कि मंत्रीगण व सत्ता पक्ष के विधायक  छेड़ने वाले अंदाज में विपक्ष से एक के बाद एक कई सवाल करते दिखेंगे। हो सकता है कि मंत्री अजय चंद्राकर चुटीले अंदाज में विपक्ष से पूछ बैठें कि यह तो बताएं कि भाभी जी (श्रीमती रेणु जोगी) किस तरफ हैं। वैसे श्रीमती जोगी पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे कांग्रेस के साथ हैं। वहीं कांग्रेस विधायक आर.के. राय हर कदम पर अजीत जोगी के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। राय की भूमिका पर भी सत्ता पक्ष मजाकिया लहजे में सवाल करने से शायद ही पीछे रहे। दूसरी तरफ इस पावस सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने अपनी तरफ से पूरी एक्सरसाइज कर रखी है। बस्तर में हाल ही में जो रेप की घटना हुई उसे सदन में जोरों से उठाने विपक्ष ने पर्याप्त तैयारी कर रखी है। अमृत दूध के सेवन से दो बच्चों की मौत और कई के बीमार पड़ने का मुद्दा सदन में जोरों से उठेगा इसके पूरे आसार नज़र आ रहे हैं। विपक्षी सदस्यों ने अगस्ता हैलीकाप्टर घोटाले को प्रमुखता से उठाने इससे जुड़े तथ्यों का गंभीरता से अध्ययन किया है। जो हो, इस बार के मानसून सत्र में विपक्ष यह जताने की कोशिश ज़रूर करेगा कि कांग्रेस से चाहे कितना भी बड़ा आदमी क्यों न चले जाए, पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

कैसे हो पूर्ण शराबबंदी
विधानसभा के मानसून सत्र में शराबखोरी का मुद्दा भी छाया रहेगा। महासमुंद के निर्दलीय विधायक डॉ. विमल चोपड़ा पिछले ढाई साल से शराब के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं। अब बसपा विधायक केशव चंद्रा भी उनके साथ हो गए हैं। दोनों विधायकों ने ऐलान कर दिया है कि विधानसभा में पूरे दमखम के साथ प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की मांग उठाएंगे। मानसून सत्र के दौरान हर दिन विधानसभा परिसर में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने पूर्ण शराबबंदी को लेकर मौन व्रत रखेंगे। पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार जॉन मार्टिन नेल्सन व्दारा विधानसभा में बनाई गई प्रतिमा काफी अद्भुत है। ऐसा कई बार हुआ है कि विपक्षी विधायक सरकार की नीतियों पर असहमत होते हैं तो गांधी जी की प्रतिमा के पास धरना देकर बैठ जाते हैं। डॉ. विमल चोपड़ा एवं केशव चंद्रा ने यही सोचा कि शराब जैसे गंभीर मुद्दे पर विरोध दर्ज कराने बापू की प्रतिमा स्थल जैसा दूसरा कोई और गरिमामय स्थान  नहीं हो सकता। इसी विधानसभा में पूर्व में कभी कांग्रेस विधायक श्रीमती रेणु जोगी ने भी शराब के मुद्दे को उठाया था। श्रीमती जोगी ने गहरी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि तीर्थ स्थल रतनपुर में देवी के मंदिर से थोड़ी दूर पर धड़ल्ले से शराब दुकान चल रही है, जिसे हटाया जाए। श्रीमती जोगी ने जिस गंभीरता के साथ इस मुद्दे को उठाया था, आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल से जवाब देते नहीं बना था। शराब से होने वाली बरबादी को राजधानी रायपुर के मशहूर शायर रज़ा हैदरी ने शायद बेहतर तरीके से महसूस किया था। अजीज़ नाज़ा की एक कव्वाली है- झूम बराबर झूम शराबी, झूम बराबर झूम...। रज़ा हैदरी ने इस कव्वाली के बोल को बिल्कुल उल्टा करते हुए लिख दिया था- छोड़ दे पीना छोड़ शराबी, छोड़ दे पीना छोड़...। हैदरी की इस कव्वाली के आगे के हिस्से में शराब से होने वाली बरबादी का बखूबी वर्णण था। लेकिन इस पर सोचने की फुरसत भला किसके पास। राजधानी रायपुर में मंत्रियों के बंगले से थोड़े कदमों की दूरी पर ऐसी जगह शराब दुकान है जिसके ठीक सामने किडनी का हास्पीटल है और बगल में स्कूल। मंत्रियों के बंगले के आसपास जब ये आलम है तो प्रदेश के बाकी स्थानों का तो भगवान ही मालिक है।

कोई जोगी भक्त, तो
कोई कांग्रेस के साथ
छत्तीसगढ़ की राजनीति इस समय काफी दिलचस्प दौर से गुजर रही है। कोंटा के विधायक कवासी लखमा कांग्रेस में हैं तो उनके बेटे हरीश लखमा अजीत जोगी के साथ। डौंडीलोहारा विधायक श्रीमती अनिला भेंड़िया कांग्रेस में हैं तो उनके जेठ डोमेंद्र भेंडिया जोगी खेमे में। पूर्व विधायक परेश बागबाहरा जहां जोगी जी के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं, वहीं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा सबसे यही कह रहे हैं कि मैं कांग्रेस से अलग नहीं। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। जिस तरह बहुत से कांग्रेसी छिटककर जोगी खेमे की तरफ जा रहे हैं उस पर एक दिग्गज कांग्रेस नेता का मानना है कि कोई कहीं जाए हमारी पार्टी कमजोर नहीं होने वाली। उनका कहना है कि एक ही परिवार के दो लोगों के अलग-अलग पार्टियों में रहने का इतिहास पुराना है। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया भाजपा में थीं तो उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस की शान थे। गांधी परिवार के ही मेनका गांधी और वरुण गांधी भाजपा में चले गए तो कौन सा कांग्रेस में तूफान आ गया था। इसके और पहले इमर्जेन्सी हटने के बाद कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई थी तो पंडित जवाहरलाल नेहरु की बहन विजयलक्ष्मी पंडित अपनी ही भतीजी श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ सभाएं करती नज़र आई थीं। इस सब के बाद भी इंदिरा जी सत्ता में लौटकर आई थीं। आना और जाना ये तो राजनीति का बहुत पुराना खेल है। कांग्रेस का आज भी जनता के साथ वही पुराना मेल है।

स्वाभिमान मंच फिर बिखरा
कभी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथा सांसद रहे ताराचंद साहू ने जिन संकल्पों को लेकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की स्थापना की थी उसमें पहले से पड़ी हुई दरार मानो अब और ज्यादा चौड़ी हो गई है। मंच के केन्द्रीय अध्यक्ष मन्नूलाल परगनिहा व और भी बहुत से पदाधिकारियों ने अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस में जाने की घोषणा कर दी। साथ में यह भी ऐलान कर दिया कि स्वाभिमान मंच का जोगी की पार्टी में विलय हो गया है। वहीं स्वाभिमान मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष राजकुमार गुप्ता एवं कुछ और पदाधिकारियों ने दावा किया है कि मंच का कहीं कोई विलय नहीं हुआ, वह अब भी अस्तित्व में है। जब तक ताराचंद साहू जीवित थे तब मंच लगातार ताकतवर होता नज़र आया था। उनके निधन के बाद मानो सब कुछ छिन्न-भिन्न होते चला गया। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू स्वाभिमान मंच की कमान सम्हाले हुए थे। विधानसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले दिल्ली में दीपक साहू की कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से जो गोपनीय मुलाकात हुई थी, उसकी चर्चा आज भी राजनीति के गलियारे में होती है। उस विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद दीपक साहू भाजपा में चले गए और पुरस्कार स्वरुप उन्हें छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड अध्यक्ष का पद मिला। उनके भाजपा में जाने के बाद भी स्वाभिमान मंच बने रहा। स्वाभिमान मंच तो अब भी बना हुआ है लेकिन उसकी ताकत कितनी घट चुकी है, वो तो वे ही लोग अच्छी तरह जान पा रहे होंगे जो कि उसे ऑक्सीजन पर रखे हुए हैं।


अपने ही शहर में अग्नि परीक्षा
इसके पहले विपक्ष को लगातार आवाज़ उठाने का मौका मिलता सरकार ने पुलिस विभाग में बड़ी सर्जरी कर दी। एक महिला कांस्टेबल के आरोपों से घिरे पवन देव को बिलासपुर आईजी पद से हटाकर पीएचक्यू आईजीसीआईडी भेज दिया गया। दूसरा राजधानी रायपुर में पखवाड़े भर के भीतर गोली चलाने की तीन बड़ी घटनाएं जो हुई उस पर कड़ा निर्णय लेते हुए सरकार ने बी.एन. मीणा को रायपुर एसपी से हटाकर रायगढ़ एसपी पद पर भेजा। रायगढ़ एसपी रहे संजीव शुक्ला को रायपुर एसपी की कमान सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर एसपी के रूप में मुकेश गुप्ता एवं दीपांशु काबरा का कार्यकाल ही ऐसा रहा, जब राजधानी में कानून व्यवस्था नाम की चीज नज़र आती थी। बाकी और किसी आईपीएस में यह बात देखने में नहीं आई के कि शहर में अपराधों पर नियंत्रण रखने के नाम पर वह छाप छोड़ पाया हो। संजीव शुक्ला सरकार के काफी विश्वसनीय अफसर माने जाते हैं। पूरे भरोसे के साथ सरकार ने उनको राजधानी रायपुर में बिठाया है। रायपुर में बरसों से रह रहे लोग जानते हैं कि इस शहर की सदर बाजार, बूढ़ापारा एवं नयापारा की गलियों में खेलते हुए संजीव शुक्ला का बचपन बीता। उनकी कॉलेज की पढ़ाई रायपुर के ही दुर्गा कॉलेज में पूरी हुई। पुलिस के बड़े पद पर पहुंचने का असर यह रहा उनके व्यक्तित्व में पहले से कहीं ज्यादा गंभीरता आ गई। अमिताभ बच्चन की तरह ऊंचे पूरे संजीव शुक्ला से सरकार ही नहीं उनके अपने रायपुर के लोगों के बीच भी बहुत सी अपेक्षाएं हैं। शुक्ला के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि उनके अपने ही शहर में बुरी तरह ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था के साथ वह कितना न्याय कर पाते हैं।


रविवार, 3 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ में बारिश के साथ आसमानी मौसम तो बदला ही है, राजनीतिक फिज़ां भी बदली-बदली सी नज़र आ रही है। पहले राजनीतिक खबरें भाजपा-कांग्रेस पर केन्द्रित रहा करती थीं अब एक और नया दल छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) सुर्खियों में है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी यदि कोई नई राजनीतिक इबारत गढ़ेंगे, वह सुर्खियों में तो रहेगी ही। जोगी के इस नये संगठन पर भाजपा एवं कांग्रेस के कद्दावर लोग अपने-अपने ढंग से सोच रहे हैं। हाल ही में भाजपा के बारनवापारा अभ्यारण्य में हुए चिंतन शिविर में बड़े नेताओं को चाय पानी के लिए जब-जब थोड़ा वक्त मिला, चर्चा में यह बात ज़रूर आई कि जोगी के नया संगठन खड़ा करने पर  किसकी सेहत पर कितना असर पड़ेगा। राजनीति पर गहन चिंतन करने वाले कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि 2018 के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी और उनका नया राजनीतिक दल केवल कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होगा, जहां ज़रूरत महसूस होगी उन सीटों पर जोगी खेमा भाजपा के उम्मीदवारों को भी नुकसान पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। यदि जोगी का दल पांच-छह सीट भी जीत ले आया तो सरकार बनाने के समीकरण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका तो हो ही जाएगी। बहरहाल श्रीमती रेणु जोगी को लेकर जो सस्पेंस बरकरार था उस पर से धुंध छंट चुकी है। कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल होकर श्रीमती जोगी ने संकेत दे दिया कि वे विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस विधायक दल की उपनेता वाली जगह पर ही बैठेंगी।

जोगी तेरी लीला न्यारी...
सावन का महीना लगने में अब ज्यादा वक्त नहीं। सावन के महीने में मंदिरों में खूब भजन कीर्तन चलता है। भगवान शंकर के बहुत से मंदिरों में यह पॉपुलर भजन सुना जा सकता है- जोगी तेरी लीला न्यारी, बम बम बम बम बम भोला...। अजीत जोगी की कार्य शैली पर गौर करें तो क्या वह कम न्यारी है। जोगी अलग-अलग समय पर जो राय बनाते रहे उस पर उन्हें बदलते देखा गया। जोगी जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि नेताओं को साठ साल के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। यह अलग बात है कि आज वे सत्तर के करीब पहुंच रहे हैं और राजनीति के क्षेत्र में अब भी पूरा जी जान लगाए हुए हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव के समय जब उनका जबर्दस्त एक्सीडेंट हुआ, तब महीने भर इलाज के लिए लंदन में थे। वहां उन्होंने एक आर्टिकल लिखा जो कि अखबारों में पब्लिश हुआ था। जोगी ने लेख में अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा था कि अब मैं नये तरीके का जीवन जीयूंगा। आगे चलकर उनके तरीकों में कौन सा बदलाव आया उसे समझने की कोशिश में  आज भी कई लोग लगे हुए हैं। 2013 में बेटे अमित जोगी के चुनाव जीत जाने के बाद जोगी जी ने कहा था कि साल भर सक्रिय राजनीति से दूर रहूंगा। खूब पढ़ूंगा-लिखूंगा तथा धर्म और अध्यात्म को और करीब से समझूंगा। इस काम के लिए उन्होंने अपने बंगले के खाली पड़े हिस्से में एक बड़े हाल का निर्माण करवाया। वहां पर एक बार पद्मश्री ख्याति प्राप्त भारती बंधु का भजन भी हुआ, जिसमें जोगी और उनके करीबी समर्थक झुमते नज़र आए थे। बाद में ना जाने हालात कैसे बदलते चले गए धर्म और अध्यात्म का सिलसिला बीच में ही थम गया और जोगी 2014 का लोकसभा चुनाव महासमुंद सीट से लड़ गए, जिसमें उन्हें भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू के हाथों पराजय मिली। ये वही अनोखा लोकसभा चुनाव था जिसमें भाजपा प्रत्याशी को मिलाकर दर्जन भर चंदूलाल महासमुन्द सीट से चुनावी मैदान में थे जिसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। जो हो, जोगी अभी न तो राजनीति से रिटायर होने वाले हैं और न ही उन्हें अभी धर्म और अध्यात्म के लिए समय मिल पाएगा। नई जनता कांग्रेस की जमीन मजबूत करने दिन रात लगे जो रहना पड़ेगा।

सुर्खिंयों में राय
आर. के. राय वो शख्स हैं जो ढाई साल के विधायक कार्यकाल में लगातार सुर्खियों में हैं। इस कार्यकाल में शायद ही कोई दूसरा नया विधायक हो, जिसकी चर्चा मीडिया में इतनी होती रही हो। राय पुलिस अफसर की नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में आए। काफी विरोध होने के बाद भी न सिर्फ कांग्रेस की टिकट लेने में कामयाब रहे, बल्कि विधायक चुनाव भी जीते। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का ब्लाइंड सपोर्टर माना जाता है। राय को जब लगता है तो वे बड़े नेताओं पर निशाना साधने से भी नहीं चूकते। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के समय कांग्रेस आलाकमान के सबसे ज्यादा विश्वसनीय माने जाने वाले मोतीलाल वोरा जैसे नेता पर राय गंभीर आरोप लगाने से पीछे नहीं रहे थे, जिसके कारण वे कुछ समय कांग्रेस से निलंबित भी रहे। अब वे खुले तौर पर यह कहते नज़र आ रहे हैं- हां मैं अजीत जोगी के साथ हूं, जिसे जो करना है कर ले। बताते हैं राय व्दारा कही गई यह बात कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद के कानों तक पहुंच चुकी है। राय को लेकर करना क्या है, बड़े नेता अभी इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं। राय दावे के साथ कहते हैं- मैं जो भी कहता हूं या करता हूं पूरे होश हवाश के साथ करता हूं। अध्ययन में जुटे रहना मेरी प्रवृत्ति है। विधानसभा चुनाव कैसे नये अंदाज में लड़ा जाए इस पर चिंतन मनन करने मैंने राजस्थान की यात्रा की थी। राजस्थान जाकर समझने की कोशिश की कि वहां के राजे-महाराजे कौन सी रणनीतियों पर चलते हुए अपने शत्रुओं को निपटाते थे। राजस्थान में हासिल किए गए अनुभव मुझे छत्तीसगढ़ में काम आ रहे हैं।

रायपुर एयरपोर्ट अब नहीं नंबर वन
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा कई बार देखने में आया है कि बड़ी घोषणाएं, बड़े काम या बड़ी उपलब्धि ज्यादा समय तक टिके नहीं रह पाती। कुछ दिनों पहले जो रायपुर एयरपोर्ट सुविधाओं में नंबर वन था खिसककर नंबर दो पर आ गया। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ताजा सर्वे रिपोर्ट तो कुछ ऐसा ही बयां कर रही हैं। ये वही रायपुर एयरपोर्ट है जहां पिछले अप्रैल महीने में विमान से उतरने के बाद एक्ट्रेस दीपा सही ने कहा था वॉव... ऐसा एयरपोर्ट तो गोवा का भी नहीं है। उस दौरान दीपा के फिल्म डायरेक्टर पति केतन मेहता भी साथ थे। कभी बायो-डीजल (रतनजोत) के इस्तेमाल पर शासन की ओर से बढ़-चढ़कर घोषणाएं हुई थीं। आगे जाकर यह काम पिछड़ गया। घोषणा तो यहां तक हुई थी कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कार बायो-डीजल से चलेगी। कुछ दिन चली, फिर बंद हो गई। इसी तरह आंशिक शराब बंदी में भी प्रदेश पिछड़ गया। सरकार ने घोषणा की थी कि पूर्ण तो नहीं पर आंशिक शराब बंदी की तरफ हमारे कदम बढ़ रहे हैं। कदम कहां तक बढ़े थे ये तो पता नहीं, गांव-गांव हर शाम जाम ज़रूर छलक रहे हैं।

बार और चीतल रेस्टॉरेंट
भाजपा के चिंतन शिविर के कारण बारनवापारा अभ्यारण्य पिछले दिनों लगातार चर्चा में रहा। इस अभ्यारण्य के साथ कुछ अलग ही तरह की बातें जुड़ी हुई हैं। शिकार पर प्रतिबंध होने के बावजूद आए दिन बारनवापारा अभ्यारण्य में चीतल व भालुओं के शिकार की खबरें सामने आती रहती हैं। इंटरनेट के इस युग में आजकल नाम से लेकर काम तक शार्ट में होने लगा है, इसलिए बारनवापारा बार कहलाने लगा है। बारनवापारा में पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटन विभाग ने एक रेस्टॉरेन्ट भी खोल रखा है, जिसका नाम भी पता नहीं किस बुद्धिमान ने चीतल रेस्टॉरेन्ट रख दिया है। चीतल रेस्टॉरेन्ट यह नाम कानों में पड़ता है तो पर्यटकों के मन में कुछ अजीब सा बोध होता है। यहां तक कि चीतल रेस्टॉरेन्ट का पूरा स्टाफ भी इस नाम को लेकर खुश नहीं है। लेकिन अफसरों के आगे इसे गलत ठहराकर कौन अपनी नौकरी खतरे में डाले। बार और चीतल रेस्टॉरेन्ट ये दोनों शब्द कितने ही पर्यटकों की नापसंदगी बने हुए हैं।
  


राजधानी में दनादन गोलियां
राजधानी रायपुर में पंद्रह दिनों के भीतर तीन लोगों पर बंदूक से प्राणघातक हमला हुआ। एक बाल-बाल बचा और दो लोगों की जान चली गई। राजधानी में कानून व्यवस्था की तो मानो लगातार धज्जियां उड़ रही हैं। पुलिस का डर भय रहा नहीं। कोई दिन में गोली चला रहा है तो कोई शाम में। घर लौट रहे व्यापारी की रात में गोली मारकर हत्या की गई उस समय भी कोई ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। चौराहे में लगे ट्रैफिक सिग्नल पर पुलिस वाले सिर्फ टाइम पास करते दिखते हैं। गौरव पथ और एयरपोर्ट जाने वाले वीआईपी रोड पर खुले आम यातायात कानून का उल्लंघन होते रहता है। व्यस्ततम ट्रैफिक के समय में भी बीच रास्तों पर रईस घरों की बिगड़ैल औलादें बाइक रेस करते नज़र आ जाती हैं। यहां तक कि शंकर नगर मार्ग जहां मंत्रियों के बंगले हैं और पुलिस महानिरीक्षक का दफ्तर है वहां भी बाइक रेस का नज़ारा सुबह शाम दिख जाता है। जहां सरकार बैठी है उस शहर का जब ये हाल है फिर बाकी का तो भगवान ही मालिक है।