रविवार, 21 अगस्त 2016

प्रिय मित्रों ,
'मिसाल' का नया अंक आप तक पहुंचाना हमारे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। इस बार कवर पेज पर है 2 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही छत्तीसगढ़ी फिल्म 'प्रेम सुमन'। फिल्म का सब्जेक्ट प्रेम कहानी है और यह फैमिली ड्रामा भी है। इसके अलावा आपको पढ़ने मिलेंगे महान फिल्मकार किशोर साहू पर तीन लेख। दो लेख पर गाज़ियाबाद के वरिष्ठ पत्रकार इक़बाल रिज़वी की कलम चली है, वहीं एक मेरा लिखा हुआ है। इस बात को कम लोग जानते हैैं कि 'गाइड' जैसी महान फिल्म में एक्ट्रेस वहीदा रहमान के पति की भूमिका निभाने वाले किशोर साहू हमारे अपने छत्तीसगढ़ के थे। वे न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि सिद्धहस्त डायरेक्टर और ख्यातिप्राप्त लेखक भी थे। मित्रों , आप लोग जिस तरह हौसला अफजाई करते रहे हैं उसी का नतीजा है कि 'मिसाल' के हर अंक में कुछ न कुछ अलग हटकर देने में हम कामयाब रहे हैं। आपका प्रेम सदैव बने रहे, इसी अपेक्षा के साथ...

रविवार, 14 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में फर्जी आईबी अफसर जो पकड़ा गया उस पर चर्चा का दौर अभी थमा नहीं है। इस नकली आईबी अफसर के पुलिस गिरफ्त में आने की खबर सबसे पहले सोशल मीडिया में चली। सोशल मीडिया में यही चलते रहा  कि पकड़ा गया फर्जी आईबी अफसर खुद को मुख्य सचिव विवेक ढांढ का रिश्तेदार बता रहा है। धीरे-धीरे उसकी बहुत सी कहानियां सामने आती चली गईं। छत्तीसगढ़ सरकार के कुछ मंत्रियों के साथ वह फोटो खिंचवा रखा था। नेताओं की नज़रों में खुद को चढ़ाए रखने वह चम्पारण्य में हुए भाजपा के चिंतन शिविर तक में पहुंच गया था। वह कई-कई दिनों तक रायपुर की होटलों में टिके रहता था। फर्जी परिचय पत्र के आधार पर सर्किट हाउस में ठहरा। मंत्रियों के साथ सेल्फी लेना उसका शौक था। उसकी सगाई की पार्टी भी चर्चा में है। इसके अलावा उसकी और भी कहानियां सामने आ रही हैं। हावड़ा का रहने वाला यह युवक रायपुर में कैसे धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमाते चला गया और इसके पीछे कौन लोग हैं पुलिस इसका पता लगाने में जुटी है। बड़े ठगों और जालसाजों से पहले भी रायपुर शहर का पाला पड़ते रहा है। बरसों पहले शहर में श्रीराम सोनी नाम के जालसाज की चर्चा खूब हुआ करती थी। बताते हैं वह कुछ समय तक रायपुर जेल में बंद रहा था। जाली सिग्नेचर में उसकी मास्टरी थी। यहां तक की पुलिस से बचने लिए उसको कार का नंबर तक बदलने में देर नहीं लगती थी। श्रीराम सोनी व्दारा इस्तेमाल की जाने वाली कार काफी समय तक पुलिस लाइन में लोगों के आकर्षण का केन्द्र रही थी। उस कार की नंबर प्लेट पर अलग-अलग नंबर साफ दिख जाया करता था। रुपये को डॉलर में बदलने का झांसा देने वाले नाइजीरिया के ठग किसी समय रायपुर तक पहुंच गए थे और पुलिस के हाथों पकड़े गए थे। मानो ठगों और जालसाजों के लिए रायपुर शहर की जमीन हमेशा से उर्वरा रही हो।

राजधानी और आवारा कुत्ते
राजधानी रायपुर में 9 अगस्त की वह शाम भयावह थी। एक आवारा कुत्ता अचानक खूंखार हो गया और दौड़ा-दौड़ाकर 24 लोगों को काट खाया। बच्चे से लेकर बूढ़े तक उस आवारा कुत्ते के पागलपन के शिकार हुए। इस घटना ने पूरे शहर को सोचने पर मजबूर कर दिया है। रायपुर शहर की पहचान मच्छरों के कारण काफी पहले से होती रही है। अब आवारा कुत्तों के कारण भी होने लगी है। राजधानी ऐसा कोई इलाका नहीं बचा होगा जहां आवारा कुत्तों की भीड़ न हो। रायपुर नगर निगम कोई आज नहीं पिछले करीब चौदह सालों से आवारा कुत्तों की नसबंदी का राग अलाप रहा है। सच्चाई यह है कि पिछले करीब पांच सालों में राजधानी में करीब साढ़े पांच हजार कुत्तों की ही नसबंदी हुई है, जिसे संतोषप्रद नहीं माना जा रहा। नगर निगम रायपुर शहर को आवारा कुत्तों से मुक्ति दिलाने एक और उपाय किया था। इनकी धरपकड़ कर शहर से बहुत दूर छोड़ आने का। यह उपाय ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुआ। उल्टे विधानसभा तक में इस उपाय की आलोचना हुई। महासमुन्द के विधायक डॉ. विमल चोपड़ा ने विधानसभा में कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि रायपुर शहर के आवारा कुत्तों को मेरे विधानसभा क्षेत्र में ले जाकर छोड़ा जा रहा है, जिस पर गहरी आपत्ति है। बहरहाल अवारा कुत्तों ने रायपुर के लोगों का चैन से जीना हराम कर रखा है।

चाचा-भतीजे के बीच ये कैसी दरार
राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां छोटी-छोटी बातें भी बड़ी लगने लगती हैं। ताजा उदाहरण खल्लारी के पूर्व विधायक
परेश बागबाहरा एवं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा का है। परेश कांग्रेस छोड़ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी से जुड़ गए हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के सदस्यता अभियान प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दूसरी तरफ उनके सबसे चहेते भतीजे अंकित बागबाहरा को अचानक बागबाहरा ब्लाक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष का पद दे दिया गया है। यानी एक ही घर में परस्पर दो विरोधी पार्टी के लोग हो गए हैं। बागबाहरा, महासमुन्द से लेकर रायपुर तक इस बात पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है कि चाचा-भतीजे के रास्ते अलग हो सकते हैं। चाचा भतीजे के बीच कितना गहरा प्रेम रहा है, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि परेश ने अंकित को लेकर भोला छत्तीसगढ़िहा नाम से छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में खुद परेश ने रोल किया था। रील लाइफ में एक दूसरे के इतने करीब दिखने वाले चाचा-भतीजे रियल लाइफ में कैसे एक दूसरे से इतने दूर नज़र आ रहे हैं, इसे लोग अपने-अपने ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं।

इच्छाधारी नाग से शादी की इच्छा
छत्तीसगढ़ प्रदेश में अजीबोगरीब घटनाएं होना आम बात है। भैयाथान जनपद के ग्राम कसकेला में अनिता नाम की युवती ने घोषणा की थी कि वह इच्छाधारी नाग से विवाह रचाने जा रही है। वह नाग के साथ नाग लोक जाएगी। नाग पंचमी वाले दिन इस भीड़-भाड़ को देखने करीब दस हजार लोग जमा हो गए थे। किसी तरह का चमत्कार नहीं हुआ। अब वह युवती अपनी पढ़ाई में ध्यान देना चाह रही है। प्रदेश में अंधविश्वास फैलाने वाली घटनाओं की कभी कमी नहीं रही। कितने ही उदाहरण सामने आ चुके हैं जब टोनही के शक पर किसी के साथ गाली गलौच से लेकर मारपीट तक के प्रकरण दर्ज होते रहे हैं। भगवान दिखाने के नाम पर लूट जब तब होती रही है।   


रविवार, 7 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सूप्रीम कोर्ट के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। वहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को दो महीने के भीतर सरकारी बंगला खाली करने का आदेश कोर्ट से हुआ है।  सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में फैसला सुनाया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में रहने का कोई अधिकार नहीं। हालांकि कोर्ट का यह फैसला उत्तरप्रदेश के लिए आया है, लेकिन हलचल सभी राज्यों में मची हुई है। छत्तीसगढ़ इससे परे नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य बने ज्यादा नहीं 15 साल नौ महीने ही हुए हैं। यहां पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर फिलहाल एक ही शख्सियत हैं अजीत जोगी। छत्तीसगढ़ में इन दिनों चर्चा घर किए हुए है कि कोर्ट के फैसले का असर यहां भी दिखेगा और जोगी को सागौन बंगला खाली करना पड़ सकता है। जोगी ने इस बंगले में शिफ्ट होने के बाद इसे अनुग्रह नाम दिया, पर पुराने लोग आज भी इसे सागौन बंगला ही कहते हैं। सागौन बंगला अपने आप में इतने रहस्य समेटे हुए है कि इस पर एक रोचक उपन्यास लिखा जा सकता है। रायपुर शहर के बहुत से पुराने लोग जो कुछ-कुछ सागौन बंगले के बारे में जानते हैं वे यही कहते हैं कि इसमें बड़ा वास्तु दोष है। इस बंगले में रहे कुछ ऐसे नाम हैं जो हाशिये पर चले गए। बात जुगल किशोर साहू से शुरू होती है, जो वर्तमान वरिष्ठ कांग्रेस विधायक एवं पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू के छोटे भाई हैं। जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था, जुगल किशोर साहू रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष थे। तब रायपुर जैसे छोटे शहर में सांसद, विधायक एवं महापौर के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बहुत बड़ी हस्ती हुआ करती थी। जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद जुगल किशोर साहू को सागौन बंगला अलॉट हुआ था। तब जुगल किशोर काफी युवा थे और उनकी मित्र मंडली से रात में सागौन बंगला गुलजार रहा करता था। रात वाली उस महफिल में मीडिया जगत के कुछ लोग भी हुआ करते थे। जुगल की मीडिया के लोगों से निकटता ही वजह थी कि उस समय रायपुर के अखबारों में उन्हें काफी स्पेस मिला करता था। राजनीति में जुगल का नाम इतने ऊपर तक पहुंच गया था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस के खिलाफ मैदान में उतारा। जुगल लोकसभा चुनाव हार गए, लेकिन उस समय उनके नाम की चर्चा रायपुर से लेकर राजधानी भोपाल तक हुई थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस सहज और सरल युवा नेता का राजनीतिक सितारा बहुत जल्दी अस्त हो जाएगा। जिला पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जुगल सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूर होते चले गए। जुगल के उस राजनीतिक पतन को देखते हुए कहा जाने लगा कि सागौन बंगले के साथ कुछ तो ऐसा है कि वहां रहने वाला अच्छा भला आदमी किनारे लग जाता है। इसकी एक और मिसाल आगे देखने को मिली। सन 2000 में आईएएस अफसर विवेक देवांगन रायपुर नगर निगम के कमिश्नर होकर आए। उन्हें सागौन बंगला अलाट हुआ। देवांगन ने रायपुर नगर निगम का चार्ज लेने के कुछ ही हफ्तों के भीतर साबित कर दिखाया था कि उनका विज़न कितना तगड़ा है। वे नगर निगम में एक तरह से कम्यूटर क्रांति लाने की तैयारी में थे। साथ ही रायपुर शहर को नया स्वरूप प्रदान करने की परिकल्पना भी उनके पास थी। कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि तत्कालीन महापौर तरुण चटर्जी और शहर के एक-दो अन्य रसूखदार लोगों ने देवांगन को यहां से हटाने एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। देवांगन विरोधी मुहिम चलाने वाले लोग अपने मंसूबे में कामयाब रहे। साल भर में ही देवांगन को रायपुर नगर निगम से विदा होना पड़ा। साथ ही सागौन बंगले से भी। देवांगन पर अचानक तबादले की गाज गिरने के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ ली कि हो न हो सागौन बंगले में जरूर कोई गड़बड़ है। यही नहीं नंद कुमार साय जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले नेता प्रतिपक्ष बने तो उन्हें सागौन बंगला देने की बात हुई थी, पर उन्होंने इसका नाम सुनते ही दूर से ही हाथ जोड़ लिया। दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। अजीत जोगी के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं रही, डॉ. रमन सिंह प्रदेश के नये मुखिया बने। जोगी मुख्यमंत्री कार्यकाल में उस बंगले में रहे थे, जहां वे रायपुर कलेक्टर की हैसियत से पहले कभी लंबे समय तक रह चुके थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जोगी की अपने उसी पुराने बंगले में बने रहने की इच्छा थी। कई दिनों तक उन्होंने इस बंगले को खाली नहीं किया था और पहली बार मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह के हिस्से में लंबा इंतजार आया था। अंततः परिस्थितियां ऐसी बनी कि जोगी को वह बंगला खाली करना पड़ा और डॉ. रमन सिंह वहां शिफ्ट हुए। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते शासन ने जोगी को सागौन बंगला अलाट किया। तब राजनीतिक एवं प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का दौर शुरू हो गया था कि यह सागौन बंगला न जाने जोगी को किस स्तर तक प्रभावित करेगा। बहरहाल जोगी पिछले साढ़े बारह सालों से सागौन बंगले में हैं। इन साढ़े बारह सालों में उन्होंने न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव देखे। उसके पीछे कारण चाहे जो रहा हो। बहरहाल जोगी ने मीडिया वालों से यही कहा है कि वे कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। यदि राज्य सरकार कोर्ट के निर्णय को यहां लागू करती है तो उसका वे पालन करेंगे।

विधानसभा अध्यक्ष न
रहें बंगला तो रहेगा
विधानसभा अध्यक्ष काफी गरिमामय पद है। जो एक बार विधानसभा अध्यक्ष बनता है अगले कार्यकाल में वह इस पद पर रहे या ना रहे उसके लिए सरकारी बंगला ज़रूर सुरक्षित रहता है। पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल थे। उनका अध्यक्षीय कार्यकाल तीन साल का रहा था। वे अध्यक्ष पद पर नहीं थे, तब भी उन्हें सरकारी बंगला मिला हुआ था। शुक्ल के बाद डॉ. प्रेमप्रकाश पांडे पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ. पांडे हार गए थे। यानी वे विधायक भी नहीं थे। लेकिन राजधानी के पॉश इलाके शंकर नगर रोड पर उन्हें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से बंगला अलाट था। डॉ. पांडे के बाद धरमलाल कौशिक पांच वर्षों तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। 2013 के विधानसभा चुनाव में कौशिक को हार का सामना करना पड़ा। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से उन्हें रायपुर में सरकारी बंगला मिला हुआ है। यानी एक बार कोई विधानसभा अध्यक्ष बना तो आगे वह इस पद पर रहे या न रहे, सरकारी बंगला पास में रहना पक्का है।

पैर छूने की परंपरा पर प्रहार
हाल ही में चंपारण्य में हुए भाजपा के महाशिविर में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने अपने संबोधन में काफी वजनदार बात कही कि राजनीतिक स्वार्थवश कोई किसी के पैर न छुए। कौशिक के इस वचन को काफी दाद मिली। और क्यों न मिले छत्तीसगढ़ की राजनीति में बरसों से पैर छुने और छुआने का सिलसिला जो चले आ रहा है। किसी समय में छत्तीसगढ़ की राजनीति में पं श्यामाचरण शुक्ल एवं विद्याचरण शुक्ल की तूती बोलती थी। विद्या भैया का पैर छुने वालों की बहुतायत थी। एक बार मीडिया वालों ने पैर छुने वाली संस्कृति को लेकर विद्या भैया से सीधे सवाल कर दिया था। इस सवाल पर वे उखड़ गए थे और उन्होंने कहा था कि मुझे पैर पड़ने वाली संस्कृति से नफरत है। इसे दिलचस्प संयोग कहें विद्या भैया के इस कथन के कुछ ही दिनों बाद रायपुर के एक सम्मानित अखबार का वरिष्ठ फोटोग्राफर अपने कैमरे में ऐसी तस्वीर कैद करने में कामयाब रहा, जिसमें भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाला एक नेता विद्या भैया के पैर छूते नज़र आ रहा था। विद्या भैया ने फोटोग्राफर को तस्वीर खींचते देख लिया था और उस पर काफी नाराज़ भी हुए थे। मीडिया वालों के भी अपने कुछ उसूल होते हैं। पैर पड़वाने वाली वह तस्वीर अखबार में प्रकाशित हुई और उस पर शहर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। बहरहाल भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई और पार्टी, किसी बड़े नेता की निगाहों में चढ़ने के लिए पैर छुने की परंपरा आज भी बनी हुई है। धरमलाल कौशिक ने चंपारण्य में जो बातें कही उस पर हर राजनीतिक पार्टी को विचार ज़रूर करना चाहिए।

डॉ. रमन का फिल्मी ज्ञान
चंपारण्य में भाजपा के प्रशिक्षण महाशिविर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का नाम लेते हुए कहा कि यह जोड़ी शोले फिल्म की जय और वीरू की जोड़ी की तरह है, जो राज्य में कई तरह के झूठ को सच प्रचारित करने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री के इस कथन पर राजनीतिक जगत में भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। कांग्रेस की तरफ से बयान जारी हुआ कि यही जय और वीरू की जोड़ी गब्बर सिंह के राज्य का खात्मा करेगी। डॉ. रमन सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि बरसों पहले जब उनकी राजनीतिक व्यस्तता नहीं हुआ करती थी तब फिल्म देखने के लिए वह खूब समय निकाला करते थे। यहां तक कि काफी समय तक डॉ. साहब के बाल कानों पर ठीक उसी तरह झूलते नज़र आया करते थे जैसे कि जय यानी अमिताभ बच्चन के आया करते थे। डॉ. साहब के लंबे बालों वाली तस्वीर आज भी कितने ही लोगों के फेस बुक से इधर से उधर होती रहती है। डॉ. साहब के फिल्मों के प्रति प्रेम की बानगी हाल ही में रायपुर में हुए एक उस कार्यक्रम में देखने को मिली, जिसमें फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर मौजूद थे। डॉ. साहब ने मंच से कहा कि बरसों पहले पालेकर जी को मैं फिल्मों जैसे देखा करता था वे आज भी उसी तरह हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। बहरहाल प्रदेश की जनता अब यह अच्छी तरह समझ पा रही है कि डॉक्टर साहब का फिल्मों के प्रति न सिर्फ गहरा लगाव है बल्कि उनका फिल्मी ज्ञान भी तगड़ा है।


मंगलवार, 2 अगस्त 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

अनिरुद्ध दुबे

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी उथल-पुथल मची हुई है तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं। ये तो होना ही था। जोगी के साथ कौन बड़े लोग हैं, पत्ते धीरे­-धीरे खुलने शुरू हो गए।  लोगों में सबसे ज्यादा अचरज इस बात को लेकर हुआ, जब एक बड़े कार्यक्रम में पाटन के पूर्व विधायक विजय बघेल ने अजीत जोगी के साथ मंच साझा किया। विजय बघेल के बारे में माना जाता है कि वे औरों से काफी अलग हटकर हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में वे वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल व्दारा खड़ी की गई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। उस समय बहुत से राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि विजय बघेल चुनाव जीत सकते हैं। पर उस चुनाव में जीत मिली थी कांग्रेस के भूपेश बघेल को। बाद में विजय बघेल राकांपा छोड़कर भाजपा में आए। 2008 के चुनाव में भाजपा ने उनको पाटन से टिकट दी और वे भूपेश बघेल को हराकर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। वे 2008 से 2013 तक विधायक रहे और उन पांच वर्षों में उनकी न सिर्फ राजनीतिक बल्कि और भी खूबियां सामने आईं। विधानसभा में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शादी की पार्टियों तक में लोगों ने विजय बघेल को फिल्म गाइड का गाना ‘’तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं…’’ उसी दौर में गाते सुना था। उसी दौर में उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्म माटी के लाल और मोर मन के मीत में काम किया। उस कार्यकाल में गृह मंत्री ननकीराम कंवर थे। विधानसभा सत्र के दौरान बड़ी अपराधिक घटनाओं पर जब विपक्ष की ओर से सरकार पर हमला होता तो संसदीय सचिव की हैसियत से विजय बघेल ही प्रायः जवाब देने के लिए खड़े होते थे। 2013 का चुनाव उनके लिए लकी नहीं रहा। कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल ने उनको हरा दिया। बहरहाल अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा जब वे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनकी सरकार पर निशाना नहीं साध रहे हों। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के कभी प्रिय पात्र रहे विजय बघेल यदि जोगी के साथ किसी कार्यक्रम में मंच साझा करें तो वह बड़ी खबर तो बन ही जाती है।

ये बायोडीजल है कि
पीछा ही नहीं छोड़ता
बायोडीजल ऐसा मुद्दा बन गया है जो प्रदेश की भाजपा सरकार का पीछा ही नहीं छोड़ता। 2003 में डॉ. रमन सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, उन्होंने बायोडीजल की खूब वकालत की थी। तब यह घोषणा हुई थी कि मुख्यमंत्री की गाड़ी बायोडीजल से चला करेगी। उस समय ऐसा माहौल बन गया था मानो प्रदेश में बायोडीजल क्रांति आ गई हो। सरकार की ओर से कुछ समय तक बायोडीजल की बात बढ़-चढ़कर की जाती रही, फिर आगे जाकर न जाने कैसे मामला टॉय-टॉय फिस्स हो गया। अब विपक्षी कांग्रेस दल के बड़े नेता समय-समय पर बायोडीजल के मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। पिछले दिनों विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस विधायक मोतीलाल देवांगन का लिखित में सवाल था कि वित्तीय वर्ष 2014 से लेकर 31 मई 2016 तक बायोडीजल के निर्माण में कितनी राशि खर्च की गई और कितनी राशि के बायोडीजल का उत्पादन हुआ। इस सवाल का लिखित में जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बताया कि इस अवधि तक की स्थिति में बायोडीजल के निर्माण में 59 लाख 6 हजार 674 रुपये व्यय किए गए। 88 लाख 53 हजार 278 रुपये का बायोडीजल उत्पादित हुआ। इस अवधि में बायोडीजल के निर्माण हेतु कच्चा माल प्राप्त करने किसी भी किस्म का पौधारोपण नहीं किया गया। इस अवधि में बायोडीजल निर्माण के कोई संयंत्र नहीं लगाए गए हैं।
कभी बायोडीजल का खूब संदेश फैलाने वाली सरकार ने अपनी इस महती योजना से बाद में कदम पीछे क्यों हटा लिए, इस सवाल का जवाब न सिर्फ विपक्षी नेतागण बल्कि मीडिया वाले भी लगातार खोज रहे पर हैं, पर जवाब कहीं मिलता ही नहीं।

फिर विवादों में मेनन
आईएएस अफसर एलेक्स पाल मेनन एक बार फिर सुर्खियों में हैं। न्याय पालिका पर टिप्पणी करने के चलते उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी कर किया है। ये नोटिस सोशल मीडिया में उनके व्दारा की गई टिप्पणी को लेकर है। उन्होंने फेस बुक पर राष्ट्रदोह का आरोप झेल रहे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का समर्थन किया। इसके अलावा फेस बुक पर यह भी पोस्ट आई थी कि फांसी की सजा पाने वालों में 94 फीसदी दलित और मुसलमान होते हैं। मेनन और विवाद का मानो चोली दामन का साथ रहा है। वे पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब रायपुर विकास प्राधिकरण में सीईओ पद पर उनकी पोस्टिंग हुई थी। वे उस समय दो हफ्ते भी राविप्रा के सीईओ पद पर नहीं रह पाए थे और उनका तबादला हो गया था। यह बात अलग है कि बाद में उसी राविप्रा में वे फिर से सीईओ बनकर आए। तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष सुनील सोनी से उनकी कभी नहीं जमी। मेनन ने अपनी ही जिद्द पर राविप्रा दफ्तर को पुरानी जगह से नई जगह शिफ्ट कराया। इस शिफ्टिंग से न राविप्रा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष लोग खुश थे और न ही वहां के अन्य अधिकारी-कर्मचारी। मेनन जब सुकमा कलेक्टर थे अप्रैल 2012 में नक्सलियों ने उनका अपहरण कर लिया था। काफी मशक्कतों के बाद प्रदेश सरकार मेनन को नक्सलियों से छुड़ा पाई थी। किस समझौते के तहत नक्सलियों ने मेनन को छोड़ा था उस पर आज भी रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है। मेनन सबसे ज्यादा विवादों में उस समय रहे जब वे बलरामपुर के कलेक्टर थे। वहां के कांग्रेस विधायक वृहस्पत सिंह ने विधानसभा में खुला आरोप लगाया कि मेनन की नक्सलियों से सांठगांठ है और वे उनके साथ पार्टी भी कर चुके हैं। वृहस्पत सिंह ने मेनन के खिलाफ आंदोलन चलाए रखा था। जब सरकार ने मेनन को बलरामपुर से हटाया तब कहीं जाकर वृहस्पत सिंह ठंडे पड़े। मेनन वर्तमान में सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा चिप्स के सीईओ हैं। कारण बताओ नोटिस पर सरकार को उनके जवाब का इंतज़ार है।

फिल्म निगमः एक अनार सौ बीमार
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की इस घोषणा के बाद कि फिल्म विकास निगम की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी और कस्बाई व ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे सिनेमाघर बनाए जाएंगे, प्रशासनिक क्षेत्र से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत तक में हलचल तेज हो गई है। फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद की दौड़ में आईएएस-आईपीएस अफसरों से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा के डायरेक्टरों व अभिनेताओं के नामों तक की चर्चा है। खुलकर कोई कहता नज़र नहीं आ रहा कि वह अध्यक्ष पद की दौड़ में है, लेकिन भीतर ही भीतर कई लोगों ने फील्डिंग शुरू कर दी है। एक आईपीएस अफसर अपने बेहद करीबी लोगों से कहते रहे हैं कि फिल्म विकास निगम बने इसके लिए मैंने अपने स्तर पर किस हद तक पहल की, वह  मैं ही जानता हूं। वहीं एक प्रशासनिक अधिकारी जो फिल्म समारोह कराने के नाम पर काफी लोकप्रियता बटोर चुके हैं उनके करीबी लोग उनके नाम को उपयुक्त ठहराते आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त कर चुके एक अभिनेता का कहना है कि यह सुखद संयोग ही है कि जिस दिन फिल्म विकास निगम की ज़रूरत पर अखबार में मेरा आर्टिकल पब्लिश हुआ उसी शाम मुख्यमंत्री जी की तरफ से निगम की घोषणा हो गई। बताते हैं कभी भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले इस सुपर अभिनेता की भी इच्छा शक्ति फिल्म निगम अध्यक्ष पद के लिए हिलोरें मार रही है। कोई कहता है मोर छंइहा भुंइया फेम डायरेक्टर सतीश जैन को अध्यक्ष बना देना चाहिए तो किसी की राय है कहि देबे संदेस जैसी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने वाले मनु नायक से बेहतर अध्यक्ष पद के लिए दूसरा कोई और हो नहीं सकता। कभी समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे फिल्म डायरेक्टर जो इन दिनों अपनी लंबी चोटी के लिए विख्यात हैं भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ी सिनेमा के एक खलनायक जिन्होंने हाल ही में छॉलीवुड के नाम पर एक संगठन खड़ा किया है वे खुले तौर पर कह रहे हैं हां मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हूं। अध्यक्ष पद की महत्वाकांक्षा पाले हुए कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जन्म दिन या किसी खास त्यौहार पर सीएम हाउस तथा अन्य मंत्रियों के बंगलों के आसपास बधाई संदेश वाला बोर्ड टांगने की परंपरा निभाने से पीछे नहीं रहे हैं। बहरहाल फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद को लेकर यही कहावत चरितार्थ हो रही है- ‘’एक अनार सौ बीमार’’