सोमवार, 25 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस

0 अनिरुद्ध दुबे

‘’रिश्तों के कई रूप बदलते हैं, नये-नये सांचे में ढलते हैं...’’ ये रबड़ की तरह खींचकर दिखाए गए टीवी सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी का टॉइटल सॉग था। इस सीरियल की मुख्य पात्र स्मृति ईरानी थीं, जो वर्तमान में केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। सीरियल चाहे जैसा रहा हो पर उसका टाइटल सॉग हर क्षेत्र में फिट बैठता है। राजनीति में तो और भी ज़्यादा। पूर्व कांग्रेस विधायक डॉ. शिव कुमार डहरिया के इस बयान से सनसनी फैल गई है कि पिछले महीनों उनकी मां की हत्या जग्गी हत्याकांड जैसी है। जग्गी हत्याकांड रायपुर शहर की पहली बड़ी राजनीतिक हत्या मानी जाती है और इससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि डॉ. डहरिया ने मीडिया के सामने इस तरह की बातें कहकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी एवं उनके बेटे विधायक अमित जोगी पर निशाना साधा है। हालांकि विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने इस घटना की सीबीआई जांच की जो मांग की है उसका अमित जोगी ने समर्थन किया है। ये सर्वविदित है कि डॉ. डहरिया कभी अजीत जोगी के बेहद करीबी हुआ करते थे। 2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे के सामने आने के बाद भाजपा नेता अरुण जेटली अचानक रायपुर आए थे। उन्होंने मीडिया के सामने तथाकथित खरीद फरोख्त वाले एक टेप का भंडाफोड़ किया था। उस टेप के सामने आने से तत्कालीन निवर्तमान मुख्यमंत्री अजीत जोगी निशाने पर आ गए थे। टेप के सामने आने के चंद घंटों बाद कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती अंबिका सोनी ने जोगी को कांग्रेस से निलंबित करने की घोषणा कर दी थी। टेप सामने आने के ठीक दूसरे दिन डॉ. रमन सिंह भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले थे। डॉ. रमन सिंह की शपथ से कुछ घंटे पहले जोगी ने प्रदेश के सरकारी विमान से दिल्ली के लिए उड़ान भर ली थी। जोगी के दिल्ली जाने का मकसद कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखना था। अपने राजनीतिक कैरियर के उस अति कठिन समय में जोगी स्टेट प्लेन से जिस शख्स को साथ लेकर गए थे वो और कोई नहीं डॉ. शिवकुमार डहरिया थे। 2009 के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी मरवाही तथा डॉ. डहरिया पलारी से चुनाव जीते थे। उस कार्यकाल में विधानसभा में ऐसे कई दृश्य उपस्थित होते थे, जब गंभीर मसलों पर डहरिया जोगी की बातों का समर्थन करते नज़र आते थे। लेकिन अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। मां और पिता पर जानलेवा हमले की घटना के बाद से डहरिया पर दुख का पहाड़ टूटा हुआ है। डहरिया व्दारा मीडिया के सामने यह कहने पर कि जोगी शासनकाल में जैसा जग्गी हत्याकांड हुआ था ठीक उसी तरह उनकी मां की हत्या हुई, राजनीतिक जगत में हड़कम्प मच गया है। जोगी एवं डहरिया के बीच के रिश्तों के मायने कैसे बदल गए, इसकी वजह अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित नहीं समझ पा रहे हैं। जोगी खेमे व्दारा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के गठन की घोषणा के बाद प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस तरह घने बादल छाए हुए हैं, उससे आसार तो यही नज़र आ रहे हैं कि आने वाले दिनों में प्रदेश में तूफानी राजनीतिक बारिश होते रहेगी।

सरकार में बैठे लोगों से
ज़्यादा क्या हाथी बुद्धिमान?
सरगुजा, रायगढ़ एवं कोरिया जैसे इलाकों में जंगली हाथियों के कारण लोगों की एक के बाद एक जानें जो जा रही हैं, इस पर विधानसभा के मानसून सत्र में लंबी बहस हुई। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव समेत अन्य कांग्रेस विधायकों ने जंगली हाथियों व्दारा मचाई जा रही तबाही को लेकर सदन में  गहरी चिंता जताई। वन मंत्री महेश गागड़ा विपक्षी विधायकों के सवालों का जवाब देते समय कुछ ऐसा कह गए जिसकी जमकर चर्चा है। गागड़ा ने सदन के भीतर जवाब देते हुए कहा कि हाथियों पर नियंत्रण पाने सरकार ने बड़े-बड़े गड्ढे खोदने समेत और भी बहुत से उपाय किए हैं। लेकिन हाथी बुद्धिमान जानवर है। कोई हाथी गड्ढे में गिर भी जाए तो उसके साथ वाले हाथी मिलकर उसे गड्ढे से बाहर निकाल लाते हैं। गागड़ा के इस जवाब पर नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी थी। विधानसभा के गलियारे में एक विपक्षी विधायक ने चुटकी लेते हुए कहा कि गागड़ा का जो जवाब सामने आया है उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि सरकार में बैठे लोगों की बुद्धि पर हाथियों की बुद्धि भारी पड़ रही है।


कुछ तो बात है भिलाई के पानी में
इस्पात नगरी भिलाई एक बार फिर देश स्तर पर चर्चा में है। भिलाई की बेटी अलीशा बेहुरा एंड टीवी के डॉस रियलिटी शो में विजेता रहीं। उन्होंने देश के कई बेहतरीन डांसरों को पछाड़ते हुए यह प्रतियोगता जीती। जानी-मानी बॉलीवुड एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित ने अलीशा को विजेता ट्राफी प्रदान की। अलीशा के विजेता बनने से भिलाई शहर की शान में और चार चांद लग गए। भिलाई शहर की तासीर कुछ ऐसी है कि वहां से एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली लोग निकलते रहे हैं। भिलाई के पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार नेल्सन के नाम की चर्चा दूर-दूर तक है। मर्डर जैसी फिल्म से बॉलीवुड में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ने वाले फिल्म डायरेक्टर अनुराग बसु भिलाई की देन हैं। वे इस समय रणबीर कपूर एवं कैटरीना कैफ जैसे सितारों को लेकर जग्गा जासूस फिल्म बना रहे हैं। भिलाई में पली-बढ़ी रिन्ही सब्बरवाल मुम्बई में जाने-माने कोरियोग्राफर विष्णु देवा के साथ डॉस स्कूल चला रही हैं। विष्णु देवा साउथ की फिल्मों में कोरियोग्राफी में तहलका मचा चुके कोरियोग्राफर एवं अभिनेता प्रभु देवा के भाई हैं। कुछ वर्षों पहले एक चैनल ने गाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता रखी थी, जिसमें भिलाई के अमित साना ने दूसरे या तीसरे स्थान पर जगह बनाई थी। इस समय कुछ नहीं तो साल में दो से तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म भिलाई के लोग बना रहे हैं। भिलाई के डायरेक्टर पवन गुप्ता की छत्तीसगढ़ी फिल्म तोर खातिर बॉलीवुड की फिल्मों को टक्कर देती नज़र आती है। भिलाई के पानी में कुछ तो बात है।

नक्सली समस्या से निपटने
अब बस्तर बटालियन
खबर यह है कि नक्सलवाद का सामना करने के लिए अब बस्तर बटालियन का गठन होने जा रहा है। इस तरह की बटालियन बनाने का प्रस्ताव सीआरपीएफ की तरफ से दिया गया था, जिस पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से स्वीकृति मिल गई है। बस्तर बटालियन में बस्तर क्षेत्र के ही उन पढ़े लिखे आदिवासियों की भर्ती की जाएगी जो बेरोजगार हैं। बस्तर बटालियन में बस्तर के ही लोगों को लेने का प्रमुख कारण है यह कि वे वहां की नस-नस से वाकिफ हैं। बस्तर में पदस्थ वरिष्ठ पुलिस अफसरों का यह मानना रहा है कि नक्सली समस्या का पूर्ण समाधान तभी निकलेगा जब वहीं के लोग उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। वरिष्ठ पुलिस अफसरों का मानना है कि जब आंध्र प्रदेश में 70 से 80 प्रतिशत तक नक्सलवाद खत्म हो चुका है तो छत्तीसगढ़ में ऐसा हो पाना कोई असंभव नहीं। वैसे छत्तीसगढ़ की सरकार बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक शिवराम प्रसाद कल्लूरी की भूमिका से पूरी तरह संतुष्ट दिख रही है। कल्लूरी के बस्तर में पदस्थ होने के बाद बदलाव यह दिखा कि नक्सलवाद का समर्थन करने वाले कई लोग पुलिस के सामने सरेंडर हुए। कभी ऐसा भी समय हुआ करता था जब बस्तर के कई पुलिस थानों के बाहर के गेट पर रात में ताले लग जाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आए दिन पुलिस व नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रही है। पुलिस कर्मी शहीद हो रहे हैं तो उधर उतनी ही संख्या में नक्सली भी मारे जा रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी बस्तर क्षेत्र नक्सलवाद से पूरी तरह कब मुक्त होगा इसका जवाब तो शायद ऊपर वाले के पास ही हो। वैसे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सली समस्या के निराकरण हेतु कितने उपाय नहीं ढूंढे होंगे। पंजाब को आतंकवाद से पूरी तरह मुक्ति दिलाने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अफसर केपीएस गिल की सेवाएं एक साल तक छत्तीसगढ़ सरकार ने ली थी। गिल ने नक्सली समस्या से निपटने जो फार्मूले दिए थे वह कागजों में ही रह गए। इस बीच कांकेर के पास जंगलवार कॉलेज शुरू हुआ। जंगलवार कॉलेज मतलब ऐसी फैक्ट्री जहां से नक्सलियों से निपटने अधिक से अधिक लड़ाकू तैयार हो सकें। जंगलवार कॉलेज के कितने सार्थक परिणाम निकले वह तो बस्तर में सूरक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग ही बता सकते हैं। नक्सलवाद से निपटने किसी समय केन्द्र सरकार ने नागा बटालियन बस्तर भेजी थी। नागा बटालियन में निडर लोगों की भरमार तो थी, पर इनके आने से विचित्र तरह की परिस्थितयां निर्मित होती दिखीं। बीजापुर एवं बारसुर समेत और भी कई इलाकों में कुत्तों की संख्या तेजी से कम होती चली गई। माना यही जाता है कि यहां के कुत्ते नागा बटालियन के ही हाथों वीर गति को प्राप्त हुए। न जाने कितने ही कुत्ते बेवजह मारे गए। तमिलनाडु के आईपीएस अफसर के. विजय कुमार को कुख्यात चंदन तस्कर बीरप्पन को मार गिराने का श्रेय जाता है। प्रशासनिक क्षेत्र में गहरी दखल रखने वाले लोग बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार नक्सली समस्या से निपटने के. विजय कुमार की सेवाएं लेना चाहती थी, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिर छत्तीसगढ़ सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से केन्द्र सरकार को पत्र गया कि नक्सली समस्या का समाधान निकालने सेना की भागेदारी ज़रूरी है। माना यही जाता है कि केन्द्र में प्रदेश सरकार की बात सुनी गई। अबूझमाड़ में सेना का ट्रेनिंग केम्प खोलने की प्रारंभिक तैयारियां शुरु हो चुकी थीं। स्थान का चयन हो चुका था और केम्प के लिए जंगल झाड़ियां भी काटी गई थीं। बाद में मामला ठंडा पड़ते चले गया। बहरहाल बस्तर बटालियन का नया प्रयोग जो होने जा रहा है उसे लेकर सरकार और बस्तर की सूरक्षा में लगे पुलिस और सैन्य बल दोनों को काफी उम्मीदें हैं।

जमीन के कारोबारियों का बुरा हाल
सन् 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना रायपुर के राजधानी बनने पर यहां मानो कितने ही करोड़पति और अरबपति रियल स्टेट के कारोबार में कूद पड़े। टाटीबंद, मोवा, तेलीबांधा, देवपुरी एवं भनपुरी तक ही कभी रायपुर शहर की सीमा मानी जाती थी। सरकारी एजेन्सी हाउसिंग बोर्ड एवं रायपुर विकास प्राधिकरण से लेकर बिल्डर्स कौम हर दिशाओं में मकान बनाते चली गई और रायपुर शहर का ऐसा विस्तार हुआ कि इसे मिनी मेट्रो कहा जाने लगा। अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण थोक के भाव मिडिल क्लास के लिए मकान बनाने जा रहे हैं। इससे बड़ी बात और क्या होगी जिनके पास कोई मकान नहीं है उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत न सिर्फ सस्ते में मकान उपलब्ध होगा बल्कि सरकार की ओर से डेढ़ से दो लाख की सब्सिडी भी मिलेगी। प्रधानमंत्री आवास योजना के के मकानों के आवेदन बिकने शुरु हो गए हैं। हर दिन हाउसिंग बोर्ड व प्राधिकरण के दफ्तर में आवेदन खरीदने वालों की भारी भीड़ दिखाई देती है। रियल स्टेट से जुड़े कारोबारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें मानो अब और ज्यादा खींची दिखने लगी हैं। कई कारोबारी जो मध्यम वर्ग के लोगों के लिए छह से बारह लाख रुपये तक का फ्लैट बनाकर बेचने की तैयारी में थे, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना आने के बाद मानो और बड़ा झटका लगा है। वीआईपी शब्द से ज्यादा प्रेम करने वाला एक कारोबारी पिछले दस साल से चाहकर भी अपनी मनपसंद साइड के प्लाटों की ठीक तरह से बिक्री नहीं कर पा रहा है। इस कारोबारी को अपनी शख्सियत पर कुछ इस तरह नाज़ रहा है कि उसने मुम्बई जाकर एक फिल्म भी बना डाली। खुद फिल्म का हीरो बन गया। वह फिल्म पूरी बन जाने के बाद अब डिब्बे में बंद पड़ी है। इसी तरह गनमेन लेकर घूमने के लिए ख्यात एक रियल स्टेट कारोबारी रायपुर शहर की उस दिशा में खूबसूरत कॉलोनी बनाने का सपना दिखा रहा है, जहां उद्योगों का भारी प्रदूषण है। राजधानी रायपुर के रियल स्टेट के कारोबार की कहानी अपरम्पार है।   



                                                               

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