छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
0 अनिरुद्ध दुबे
विधानसभा का मानसून सत्र 11 जुलाई से शुरु होने जा रहा है। विपक्षी कांग्रेस
दल के पास जहां सरकार पर हमला बोलने के लिए पर्याप्त मुद्दे हैं, वहीं सत्ता पक्ष के
पास विपक्ष के सामने चलाने कई फुलझड़ियां हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के
कांग्रेस से अलग होने के बाद विधानसभा का यह पहला सत्र है। स्वाभाविक है कि मंत्रीगण
व सत्ता पक्ष के विधायक छेड़ने वाले अंदाज
में विपक्ष से एक के बाद एक कई सवाल करते दिखेंगे। हो सकता है कि मंत्री अजय
चंद्राकर चुटीले अंदाज में विपक्ष से पूछ बैठें कि यह तो बताएं कि भाभी जी (श्रीमती
रेणु जोगी) किस तरफ हैं। वैसे श्रीमती जोगी पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे
कांग्रेस के साथ हैं। वहीं कांग्रेस विधायक आर.के. राय हर कदम पर अजीत जोगी के साथ
खड़े नज़र आ रहे हैं। राय की भूमिका पर भी सत्ता पक्ष मजाकिया लहजे में सवाल करने
से शायद ही पीछे रहे। दूसरी तरफ इस पावस सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने अपनी
तरफ से पूरी एक्सरसाइज कर रखी है। बस्तर में हाल ही में जो रेप की घटना हुई उसे
सदन में जोरों से उठाने विपक्ष ने पर्याप्त तैयारी कर रखी है। अमृत दूध के सेवन से
दो बच्चों की मौत और कई के बीमार पड़ने का मुद्दा सदन में जोरों से उठेगा इसके
पूरे आसार नज़र आ रहे हैं। विपक्षी सदस्यों ने अगस्ता हैलीकाप्टर घोटाले को
प्रमुखता से उठाने इससे जुड़े तथ्यों का गंभीरता से अध्ययन किया है। जो हो, इस बार
के मानसून सत्र में विपक्ष यह जताने की कोशिश ज़रूर करेगा कि कांग्रेस से चाहे
कितना भी बड़ा आदमी क्यों न चले जाए, पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
कैसे हो पूर्ण शराबबंदी
विधानसभा के मानसून सत्र में शराबखोरी का मुद्दा
भी छाया रहेगा। महासमुंद के निर्दलीय विधायक डॉ. विमल चोपड़ा पिछले ढाई साल से
शराब के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं। अब बसपा विधायक केशव चंद्रा भी उनके साथ हो गए
हैं। दोनों विधायकों ने ऐलान कर दिया है कि विधानसभा में पूरे दमखम के साथ प्रदेश
में पूर्ण शराबबंदी की मांग उठाएंगे। मानसून सत्र के दौरान हर दिन विधानसभा परिसर
में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने पूर्ण शराबबंदी को लेकर मौन व्रत
रखेंगे। पद्मश्री ख्याति प्राप्त मूर्तिकार जॉन मार्टिन नेल्सन व्दारा विधानसभा
में बनाई गई प्रतिमा काफी अद्भुत है। ऐसा कई बार हुआ है कि विपक्षी विधायक सरकार
की नीतियों पर असहमत होते हैं तो गांधी जी की प्रतिमा के पास धरना देकर बैठ जाते
हैं। डॉ. विमल चोपड़ा एवं केशव चंद्रा ने यही सोचा कि शराब जैसे गंभीर मुद्दे पर
विरोध दर्ज कराने बापू की प्रतिमा स्थल जैसा दूसरा कोई और गरिमामय स्थान नहीं हो सकता। इसी विधानसभा में पूर्व में कभी कांग्रेस
विधायक श्रीमती रेणु जोगी ने भी शराब के मुद्दे को उठाया था। श्रीमती जोगी ने गहरी
आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि तीर्थ स्थल रतनपुर में देवी के मंदिर से थोड़ी
दूर पर धड़ल्ले से शराब दुकान चल रही है, जिसे हटाया जाए। श्रीमती जोगी ने जिस गंभीरता
के साथ इस मुद्दे को उठाया था, आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल से जवाब देते नहीं बना
था। शराब से होने वाली बरबादी को राजधानी रायपुर के मशहूर शायर रज़ा हैदरी ने शायद
बेहतर तरीके से महसूस किया था। अजीज़ नाज़ा की एक कव्वाली है- “झूम बराबर झूम शराबी, झूम
बराबर झूम...”। रज़ा हैदरी ने इस कव्वाली के बोल को बिल्कुल उल्टा करते हुए लिख दिया था- “छोड़ दे पीना छोड़ शराबी,
छोड़ दे पीना छोड़...”। हैदरी की इस कव्वाली के आगे के हिस्से में शराब से होने
वाली बरबादी का बखूबी वर्णण था। लेकिन इस पर सोचने की फुरसत भला किसके पास।
राजधानी रायपुर में मंत्रियों के बंगले से थोड़े कदमों की दूरी पर ऐसी जगह शराब
दुकान है जिसके ठीक सामने किडनी का हास्पीटल है और बगल में स्कूल। मंत्रियों के
बंगले के आसपास जब ये आलम है तो प्रदेश के बाकी स्थानों का तो भगवान ही मालिक है।
कोई जोगी भक्त, तो
कोई कांग्रेस के साथ
छत्तीसगढ़ की राजनीति इस समय काफी दिलचस्प दौर
से गुजर रही है। कोंटा के विधायक कवासी लखमा कांग्रेस में हैं तो उनके बेटे हरीश
लखमा अजीत जोगी के साथ। डौंडीलोहारा विधायक श्रीमती अनिला भेंड़िया कांग्रेस में
हैं तो उनके जेठ डोमेंद्र भेंडिया जोगी खेमे में। पूर्व विधायक परेश बागबाहरा जहां
जोगी जी के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं, वहीं उनके भतीजे अंकित बागबाहरा
सबसे यही कह रहे हैं कि मैं कांग्रेस से अलग नहीं। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। जिस
तरह बहुत से कांग्रेसी छिटककर जोगी खेमे की तरफ जा रहे हैं उस पर एक दिग्गज
कांग्रेस नेता का मानना है कि कोई कहीं जाए हमारी पार्टी कमजोर नहीं होने वाली। उनका
कहना है कि एक ही परिवार के दो लोगों के अलग-अलग पार्टियों में रहने का इतिहास पुराना
है। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया भाजपा में थीं तो उनके बेटे
माधवराव सिंधिया कांग्रेस की शान थे। गांधी परिवार के ही मेनका गांधी और वरुण
गांधी भाजपा में चले गए तो कौन सा कांग्रेस में तूफान आ गया था। इसके और पहले
इमर्जेन्सी हटने के बाद कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई थी तो पंडित जवाहरलाल नेहरु
की बहन विजयलक्ष्मी पंडित अपनी ही भतीजी श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ सभाएं करती
नज़र आई थीं। इस सब के बाद भी इंदिरा जी सत्ता में लौटकर आई थीं। आना और जाना ये
तो राजनीति का बहुत पुराना खेल है। कांग्रेस का आज भी जनता के साथ वही पुराना मेल
है।
स्वाभिमान मंच फिर बिखरा
कभी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथा सांसद रहे ताराचंद
साहू ने जिन संकल्पों को लेकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की स्थापना की थी उसमें
पहले से पड़ी हुई दरार मानो अब और ज्यादा चौड़ी हो गई है। मंच के केन्द्रीय
अध्यक्ष मन्नूलाल परगनिहा व और भी बहुत से पदाधिकारियों ने अजीत जोगी की छत्तीसगढ़
जनता कांग्रेस में जाने की घोषणा कर दी। साथ में यह भी ऐलान कर दिया कि स्वाभिमान
मंच का जोगी की पार्टी में विलय हो गया है। वहीं स्वाभिमान मंच के केन्द्रीय
उपाध्यक्ष राजकुमार गुप्ता एवं कुछ और पदाधिकारियों ने दावा किया है कि मंच का
कहीं कोई विलय नहीं हुआ, वह अब भी अस्तित्व में है। जब तक ताराचंद साहू जीवित थे
तब मंच लगातार ताकतवर होता नज़र आया था। उनके निधन के बाद मानो सब कुछ छिन्न-भिन्न
होते चला गया। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू स्वाभिमान
मंच की कमान सम्हाले हुए थे। विधानसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले दिल्ली में दीपक
साहू की कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से जो गोपनीय मुलाकात हुई थी,
उसकी चर्चा आज भी राजनीति के गलियारे में होती है। उस विधानसभा चुनाव के कुछ समय
बाद दीपक साहू भाजपा में चले गए और पुरस्कार स्वरुप उन्हें छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प
विकास बोर्ड अध्यक्ष का पद मिला। उनके भाजपा में जाने के बाद भी स्वाभिमान मंच बने
रहा। स्वाभिमान मंच तो अब भी बना हुआ है लेकिन उसकी ताकत कितनी घट चुकी है, वो तो
वे ही लोग अच्छी तरह जान पा रहे होंगे जो कि उसे ऑक्सीजन पर रखे हुए हैं।
अपने ही शहर में अग्नि परीक्षा
इसके पहले विपक्ष को लगातार आवाज़ उठाने का मौका
मिलता सरकार ने पुलिस विभाग में बड़ी सर्जरी कर दी। एक महिला कांस्टेबल के आरोपों
से घिरे पवन देव को बिलासपुर आईजी पद से हटाकर पीएचक्यू आईजीसीआईडी भेज दिया गया।
दूसरा राजधानी रायपुर में पखवाड़े भर के भीतर गोली चलाने की तीन बड़ी घटनाएं जो
हुई उस पर कड़ा निर्णय लेते हुए सरकार ने बी.एन. मीणा को रायपुर एसपी से हटाकर
रायगढ़ एसपी पद पर भेजा। रायगढ़ एसपी रहे संजीव शुक्ला को रायपुर एसपी की कमान
सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर एसपी के रूप में मुकेश गुप्ता
एवं दीपांशु काबरा का कार्यकाल ही ऐसा रहा, जब राजधानी में कानून व्यवस्था नाम की
चीज नज़र आती थी। बाकी और किसी आईपीएस में यह बात देखने में नहीं आई के कि शहर में
अपराधों पर नियंत्रण रखने के नाम पर वह छाप छोड़ पाया हो। संजीव शुक्ला सरकार के
काफी विश्वसनीय अफसर माने जाते हैं। पूरे भरोसे के साथ सरकार ने उनको राजधानी
रायपुर में बिठाया है। रायपुर में बरसों से रह रहे लोग जानते हैं कि इस शहर की सदर
बाजार, बूढ़ापारा एवं नयापारा की गलियों में खेलते हुए संजीव शुक्ला का बचपन बीता।
उनकी कॉलेज की पढ़ाई रायपुर के ही दुर्गा कॉलेज में पूरी हुई। पुलिस के बड़े पद पर
पहुंचने का असर यह रहा उनके व्यक्तित्व में पहले से कहीं ज्यादा गंभीरता आ गई।
अमिताभ बच्चन की तरह ऊंचे पूरे संजीव शुक्ला से सरकार ही नहीं उनके अपने रायपुर के
लोगों के बीच भी बहुत सी अपेक्षाएं हैं। शुक्ला के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि
उनके अपने ही शहर में बुरी तरह ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था के साथ वह कितना
न्याय कर पाते हैं।
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