दिलीप कुमार जैसा एक्टर न
कभी हुआ है और न ही होगा
`दीवार’ हाजी मस्तान
की कहानी नहीं
जाने-माने फ़िल्म राइटर सलीम खान के
साथ `मिसाल’ का एस्क्लूजिव इंटरव्यू
अनिरुद्ध दुबे
फ़िल्म राइटर सलीम खान का नाम हिन्दी सिनेमा में बड़ी
इज़्ज़त के साथ लिया जाता है। सलीम और जावेद की जोड़ी ने `दीवार’ और `शोले’ जैसा इतिहास रचा। सलीम साहब के
बेटे सलमान खान आज बॉलीवुड में शिखर पर हैं। `मिसाल’ से अपने अनुभवों को शेयर करते हुए सलीम साहब ने साफ शब्दों में कहा कि हिन्दी
सिनेमा में दिलीप कुमार जैसा एक्टर न कभी आया है और न ही आएगा। उन्होंने इस बात से
इंकार किया कि फ़िल्म `दीवार’ अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान को ध्यान में रखकर लिखी गई थी।
हाल ही में सलीम साहब से उनके मुम्बई स्थित बंगले में
लम्बा साक्षात्कार करने का मौका मिला। बातचीत के मुख्य अंश जस के तस यहां प्रस्तुत
हैं-
0 पिछले 50 सालों में हिन्दी सिनेमा को कई परिवर्तन
के दौर से होकर गुजरते आपने देखा। आज आप इसे कहां पाते हैं?
00 50 नहीं 56 साल कहिए। परिवर्तन जीवन का हिस्सा है।
जब तक परिवर्तन नहीं होगा, किसी चीज़ की ग्रोथ कैसे बढ़ेगी। विकास परिवर्तन की पहली
निशानी है। बहुत से लोग यह कहते पाए जाते हैं कि अमुक व्यक्ति में कोई परिवर्तन
नहीं आया। ये क्या बात हुई। इंसान की ग्रोथ के लिए चेंज ज़रूरी है। सबसे पहले मूक
फ़िल्में बनना शुरू हुईं। नई तकनीक आई तो बोलने वाली फ़िल्में बनने लगीं। हमारे
देश में जितनी फ़िल्में बनती हैं, दुनिया के बाकी पूरे हिस्से को मिलाकर भी गणना
करें तो उतनी और कहीं नहीं बनतीं। हिन्दी फ़िल्मों से थोड़ा और आगे चलें- मलयालम,
कन्नड़, बंगला एवं उड़िया न जाने और भी कितनी भाषाओं में हमारे यहां फ़िल्में बनती
रही हैं। इसीलिए हम फ़िल्म बनाने के मामले में दुनिया में नम्बर वन हैं। हर साल
किसी न किसी फेस्टिवल में हमारी फ़िल्में अवार्ड जीतकर आती हैं। पहले थियेटर
(नाटकों) के पैटर्न पर हिन्दी फ़िल्में बना करतीं थीं, क्योंकि शुरुआत में अधिकांश
कलाकार पारसी थियेटर से आए थे। ये कलाकार जोर लगाकर तेज आवाज़ में डायलॉग बोला
करते थे। फिर आगे अशोक कुमार, दिलीप कुमार एवं राज कपूर जैसे कलाकार चेंज लेकर आए।
वो चेंज कोई छोटा-मोटा नहीं, बहुत बड़ा चेंज था। अभी की फिल्मों की बात करें तो वे
तकनीकी रूप से काफी सशक्त नज़र आती हैं। अभी म्यूज़िक में भी एक से बढ़कर एक
प्रयोग हो रहे हैं। एक चीज की कमी अभी दिखती है, अच्छी फ़िल्में कम लिखी जा रही
हैं। आजकल के ज्यादातर फ़िल्म राइटर पढ़ते नहीं। ऐसे में नये जुमले, नई सोच लेकर
कहां से आएंगे।
0 आप और जावेद साहब की जोड़ी को स्क्रीप्ट राइटिंग के
लिए आज भी याद किया जाता है। सलीम जावेद के न तो पहले और न ही उसके बाद किसी
स्क्रीप्ट राइटर को इतनी लोकप्रियता मिली। इसके पीछे क्या वजह दिखती है?
00 बड़ी सिम्पल वजह थी कि हमें काम आता था। हम काम
करने में इंट्रेस्टेड थे। ये सलीम जावेद नाम कोई देखते ही देखते नहीं छा गया। हमने
दस हिट फ़िल्में लिखीं, तब कहीं जाकर लोकप्रियता के उस शिखर पर पहुंचे। `हाथी मेरे साथी’
से हमारी पहचान बननी शुरु हुई थी। जब हमने `अंदाज़’ व `सीता और गीता’ लिखी, फ़िल्म कम्पनी की ओर से हमें सात सौ रूपये महीना मेहनताना मिला करता
था। इसके बाद हमें `यादों
की बारात’ के लिए 25 हजार रूपये और `जंजीर’ के लिए 55 हजार रूपये मिले। फिर
आगे `दीवार’ और `शोले’ जैसी फ़िल्मों का करिश्मा हुआ। इस बीच एक ऐसी भी फ़िल्म आई जो नहीं चली `ईमान धरम’। `त्रिशूल’ एवं `काला पत्थर’ खूब चली।
0 `जंजीर’ अक्सर याद की जाती है...
00 हां, `जंजीर’ का हीरो अपनी तरह का पहला करैक्टर था। इस फ़िल्म में पहली बार ऐसा हीरो आया,
जो न गाना गाता है, न कॉमेडी करता है और न ही हीरोइन के पीछे भागता है।
0 `दीवार’ एवं `त्रिशूल’ इन दो फ़िल्मों की बात करें तो दोनों में अमिताभ बच्चन के करैक्टर में क्या
फर्क पाते हैं...
00 दोनों फ़िल्मों में एक बात कॉमन थी, दोनों में
हीरो अपनी मां के लिए लड़ रहा था। दोनों की मां के साथ ज़्यादती हुई थी। एक ही
बड़ा अंतर था, `दीवार’ का अमिताभ अंडरवर्ल्ड से जुड़ा था, जबकि `त्रिशूल’ परिवार की कहानी थी।
0 आज भी बहुत से लोग दावे के साथ यह कहते हैं कि `दीवार’ अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान को
ध्यान में रखकर लिखी गई...
00 बिलकुल गलत। हमारी तो हाजी मस्तान से कभी मूलाकात
भी नहीं हुई थी। वह ऐसा दौर था जब खूब स्मगलिंग हो रही थी। मुम्बई ही क्यों,
गुजरात और कोलकोता में भी स्मगलिंग का जाल बिछा हुआ था। ऐसे में आप `दीवार’ की कहानी को किसी एक व्यक्ति के
नाम से नहीं जोड़ सकते।
0 जावेद अख्तर जी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि `शक्ति’ में यदि अमिताभ वाला रोल किसी
छोटे कद के एक्टर ने किया होता तो वह ज़्यादा तसल्लीबख्श फ़िल्म बन सकती थी...
00 हां यह सही है कि `शक्ति’ के लिए नये हीरो की तलाश तो हुई थी। राज बब्बर का स्क्रीन टेस्ट भी लिया गया
था। यदि यह फ़िल्म अमिताभ को ऑफर की गई तो उसके पीछे व्यावसायिक कारण थे। हो सकता
है नया आदमी लेते तो वितरक फ़िल्म को लेते वक़्त दस तरह के सवाल खड़े करते। `शक्ति’ में अमिताभ को लेना सही डिसीजन
था।
0 कोई कहता है कि `शक्ति’ में दिलीप कुमार भारी पड़े तो कोई कहता है अमिताभ...
00 दोनों के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती। दिलीप
साहब जैसा न कोई आया है और न ही आएगा। अमिताभ ने खुद स्वीकार किया था कि वे दिलीप
साहब की फ़िल्में देखकर बड़े हुए।
0 `शोले’ की रीमेक बनाने के नाम पर डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा ने `रामगोपाल वर्मा की आग’
वाला हादसा रचा। इस पर क्या कहना चाहेंगे...
00 अधिकतर लोग कह रहे थे कि `शोले’ की रीमेक नहीं बनना चाहिए। यहां
तक कि जया बच्चन ने भी यही बात कही थी। डायरेक्टर रमेश सिप्पी भारी पेशोपेश में
थे। उन्होंने मुझसे सलाह मांगी की क्या किया जाए। मैंने उनसे साफ शब्दों में कहा
कि बनने दो। सब को इंतज़ार रहेगा कि आखिर `शोले’ के नाम पर कोई क्या बनाने जा रहा है। मैंने सिप्पी से कहा कि इसी बहाने `शोले’ और आपका नाम दोनों एक बार फिर
सुर्खियों में रहेंगे। इसमें नुकसान कुछ नहीं है। मैंने उनसे यह भी कहा था कि आखिर
हमने भी तो `राम और श्याम’ से आइडिया लेकर `सीता
और गीता’ लिखी थी। हमारी लिखी `अंदाज़’ किसी फ्रेंच फ़िल्म की कहानी थी।
0 क्या ऐसा नहीं लगता कि अमिताभ बच्चन ने `रामगोपाल वर्मा की आग’
में गब्बर सिंग वाला रोल कर गलती की...
00 बेहतर होगा कि ये सवाल आप अमिताभ जी से पूछें...
0 इन दिनों `पीके’ फ़िल्म के एक पोस्टर को लेकर विवाद उपजा हुआ है, जिसमें नग्न आमीर
ट्रांजीस्टर सामने रखकर लज्जा को छिपाए हुए हैं...
00 आमीर पहले ही कह चुके हैं कि इस पोस्टर को देखकर
आप लोग गेस करते रहिए। मेरे समझ में नहीं आता इस पोस्टर को लेकर क्यों किसी तरह का
कन्फ्यूजन पैदा होना चाहिए। ऐसा कुछ सामने दिखे तो पर्याप्त होम वर्क और स्टडी कर
लेने के बाद ही किसी तरह का कमेन्ट्स किया जाना चाहिए। यहां तो छोटी-छोटी बातों पर
बवाल खड़ा करना लोगों की आदत बन गई है।
0 इस बात में कितनी सच्चाई है कि प्रोड्यूसर बोनी
कपूर की तरफ से प्रयास हुआ था कि सलीम जावेद की जोड़ी एक बार फिर मिलकर काम करे?
00 बोनी कपूर ही क्यों, बहुत से लोगों की तरफ से ऐसे
प्रयास होते रहे हैं। ठीक है कि लम्बे समय तक साथ काम करने के बाद हम अलग हो गए,
पर अलग होना दुश्मनी की निशानी तो नहीं। मेरे तीनों बेटे अलग रहते हैं तो क्या वो
मुझसे दूर हो गए। जहां आप बैठे हैं इसी छत के नीचे हम सब खाना खाते हैं। कोई ये
साबित कर के बता दे कि मैंने और जावेद ने एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगाया हो। जावेद के
बेटे फरहान को मैंने अपने हाथों से अवार्ड दिया। मैंने और जावेद ने पंद्रह साल तक
साथ काम किया। तालमेल नहीं होता तो क्या हम साथ काम कर सकते थे!
0 आज कोई फ़िल्म अच्छा बिजनेस करे तो उसकी गिनती सौ
करोड़ या दो सौ करोड़ के क्लब में की जाती है। ये क्लब जैसा लुभावना शब्द जो चलन
में आया है, उस पर क्या कहना चाहेंगे?
00 इस तरह की बातों पर मुझे कोई हैरानी नहीं होती। `जानी मेरा नाम’
ने 50 लाख का बिजनेस किया था, तब लोगों ने कहा था यह अपने आप में रिकॉर्ड रहेगा।
फिर `हाथी मेरे साथी’ ने 90 लाख का बिजनेस किया था,
तब कहा गया था कि इस रिकॉर्ड को कोई तोड़ नहीं पाएगा। बाद में `शोले’ ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। `शोले’ के समय बाल्कनी क्लास का टिकट दस
रूपये था। आज कोई नई फ़िल्म लगती है तो मल्टीप्लेक्स में टिकट 400 रुपये तक पहूंच
जाता है। अब इस दस रूपये और 400 रुपये के बीच कैसा अंतर करेंगे। फिर जगह-जगह
मल्टीप्लेक्स बन जाने के कारण थियेटर भी तीन चार गुना ज्यादा हो गए हैं।
0 आप सलमान खान को इस मुक़ाम पर पाकर कैसा महसूस करते
हैं?
00 बच्चे, बड़े और बूढ़े सबका सलमान को खूब प्यार
मिलते रहा है। आज ये किसी और हीरो के पास नहीं है। ये देखकर खुशी होती है। उसे
पसंद करने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। आज के पांच फेमस हीरो की बात करें तो
उनमें सलमान की गिनती होती है।
0 सलमान और श्रीदेवी की एक फ़िल्म आई थी `चंद्रमुखी’। कहा जाता है कि इस फ़िल्म की
कहानी सलमान ने खुद लिखी थी। क्या आप अपने लेखन वाला हूनर सलमान में देखते हैं?
00 इसमें ताज्जुब करने वाली कोई बात नहीं। मछली के
बच्चे को तैरना कौन सिखाता है, यह काम वह खुद सीख जाता है।
0 खान परिवार तीसरी बहू के आने का इंतज़ार कब तक करते
रहेगा...
00 क्या आप सलमान की बात कर रहे हैं...
0 जी हां...
00 (हंसते हुए) ये तो अल्ला मियां भी नहीं बता
सकते...
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