गुरुवार, 30 जून 2016

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ की राजधानी में इन दिनों भारी राजनीतिक हलचल है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होते ही एक के बाद एक नये समीकरण बनते चले जा रहे हैं। शक्ति प्रदर्शन का खूब दौर चल रहा है। अलग पार्टी बनाने की घोषणा करने के बाद अजीत जोगी ने अपने राजनीतिक आयोजन के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गांव ठाठापुर को चुना। जोगी केम्प ने यह संदेश देने की कोशिश की कि देखो हमने शेर को उसकी मांद पर जाकर ललकारा है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने हम किसी से कम नहीं का मैसेज देते हुए उस मरवाही क्षेत्र में सम्मेलन रखवाया, जिसे जोगी परिवार का चुनाव क्षेत्र माना जाता रहा है। अजीत जोगी मरवाही से तीन बार विधायक रहे हैं और वर्तमान में वहां से उनके बेटे अमित जोगी विधायक हैं। मरवाही के सम्मेलन में सबसे ज्यादा बढ़-चढ़कर पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत ने हिस्सा लिया। अजीत जोगी के कांग्रेस छोड़ने के बाद डॉ. महंत के चेहरे पर इन दिनों संतोष का भाव साफ देखा जा सकता है। महंत के करीबी मित्र कहते हैं कि दाउ जी लोकसभा चुनाव में हार वाले दिन भूले नहीं हैं। वो भला भूलें भी तो कैसे कोरबा लोकसभा सीट पर उन्हें कांग्रेस के तथाकथित उन चेहरों ने निपटाया था, जिनकी भाजपा प्रत्याशी बंशीलाल महतो के साथ फोटो वायरल हुई थी। यह सब वाकया सामने आने के बाद महंत ने अपने दर्द बयां करते हुए कहा भी था कि ऐसा चुनाव मैंने अपनी जिन्दगी में पहले कभी नहीं देखा। बहरहाल अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल से लेकर नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव, डॉ. चरणदास महंत एवं रविन्द्र चौबे जैसे सीनियर लीडरों ने ढाई साल के बाद वाली भूमिका को लेकर सोच विचार शुरु कर दिया है। ढाई साल बाद विधानसभा चुनाव जो है।

अब क्या कहेंगे मंत्री कश्यप
16 जून को प्रदेश में स्कूलें खुल गईं। नये शिक्षा सत्र के शुरु होते ही मीडिया के माध्यम से स्कूली बच्चों के संघर्ष की दास्तान जो सामने आई है उसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। दंतेवाड़ा जिले के पाहुरनार गांव की एक स्कूली छात्रा की तस्वीर सामने आई, जिसमें वह इंद्रावती नदी को पैदल पार करते हुए स्कूल पढ़ने जा रही है। यह स्थान बस्तर का है और खुद स्कूली शिक्षा मंत्री केदार कश्यप बस्तर से हैं। धुर नक्सल प्रभावित बस्तर में और भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां बच्चों को स्कूल तक पहुंचने कठिन यात्रा करनी पड़ती है। विधानसभा में स्कूली शिक्षा व्यवस्था को लेकर जब भी कांग्रेसी विधायकों की तरफ से हमला होता है, मंत्री केदार कश्यप यह कहते हुए बचाव करते नज़र आते हैं कि विपक्ष नहीं चाहता कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शैक्षणिक सुविधाओं का विस्तार हो। बहरहाल बस्तर के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा सुविधाओं का क्या हाल है उसकी चुगली वह फोटो करती नज़र आ रही है जिसमें बच्ची मगरमच्छों से भरी इंद्रावती नदी पार कर स्कूल पढ़ने जा रही है।

रे का हौसला
रिटायर्ड आईएएस अफसर बीकेएस रे के हौसले की भी दाद देनी होगी। रे फेस बुक पर यह टिप्पणी कर गए कि प्रदेश की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी हुई है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बीच अंदरुनी सांठगांठ है। प्रदेश की जनता इन दोनों के मंसूबों को सफल नहीं होने देगी। फेस बुक पर रे की यह टिप्पणी सामने आते ही भाजपा नेताओं एवं जोगी केम्प के लोगों की तरफ से उन पर जवाबी हमला शुरु हो गया है। न सिर्फ राजनीतिज्ञ अपितु गैर राजनीतिज्ञ लोग भी वजह तलाशने में जुटे हैं कि आखिर रे के ऐसी बातें पोस्ट करने के पीछे क्या वजह हो सकती है। उल्लेखनीय है कि रे अपर मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी गिनती बेहद काबिल अफसरों में हुआ करती थी। जब स्कूली शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पद की जिम्मेदारी उनके पास थी, उन्होंने बारहवीं बोर्ड परीक्षा में फर्जी तरीके से मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान आने वाली छात्रा पोरा बाई का भंडाफोड़ किया था। राजधानी रायपुर के ही एक बड़े अखबार के प्रथम पृष्ठ पर इस आशय की खबर के साथ जोरदार हैडिंग लगी थी- ‘’पोरा बाई निकली मुन्ना भाई‘’ रे ने डॉ. रमन सिंह व अजीत जोगी पर जो निशाना साधा है, उस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल समेत उनकी पार्टी के अन्य नेता उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं।

कैसे झंडा ऊंचा रहे हमारा?
राजधानी रायपुर के तेलीबांधा तालाब में बने मरीन ड्राइव पर देश का सबसे ऊंचा तिरंगा झंडा लगवाने का दावा करते हुए प्रदेश शासन में बैठे लोग व रायपुर नगर निगम के कर्ता-धर्ता
खुद की पीठ थपथपाते नहीं थक रहे थे। पखवाड़े भर के भीतर दो बार आए जबरदस्त तूफान से जिस तरह सबसे बड़े इस तिरंगे को क्षति पहुंची उस पर सत्ताधारियों की खूब आलोचना हो रही है। रोजाना मरीन ड्राइव में घूमने फिरने आने वाले कितने ही लोगों का कहना है कि शासन व प्रशासन ने मरीन ड्राइव के आसपास पेड़ पौधे लगाकर व मकानों पर रंग बिरंगे चित्र बनवाकर साज सज्जा की वहां तक तो ठीक था, लेकिन  लाखों खर्च कर सबसे बड़ा तिरंगा लहराने के पीछे कारण समझ से परे है। यही लाखों रुपये मरीन ड्राइव के आसपास ही किसी दूसरे जन हित से जुड़े कार्यों में खर्च किए जाते तो शासन व प्रशासन की वाहवाही ही होती।


झूमता छत्तीसगढ़
इन दिनों उड़ता पंजाब फिल्म की खूब चर्चा है। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म के प्रदर्शन पर अड़ंगा क्या लगाया, इसका नाम हर किसी की जुबां पर चढ़ गया। पंजाब इस समय जिस बुरी तरह नशे की गिरफ्त में है, वही `उड़ता पंजाब फिल्म का विषय है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे पंजाब में छोटे से लेकर बड़े तक हेरोइन व ब्राउन शुगर समेत अन्य नशीले पदार्थों की गिरफ्त में हैं। नशे की गिरफ्त में तो छत्तीसगढ़ भी है। छत्तीसगढ़ के शहर से लेकर गांवों तक में खूब शराबखोरी हो रही है। शाम को शराब दुकानों में ठीक वैसी ही भीड़ नजर आती है जैसा कि कभी सिनेमाघरों में किसी नई फिल्म के प्रदर्शन के समय टिकट खिड़की में नज़र आया करती थी। इस समय छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा में खूब फिल्में बन रही हैं। छॉलीवुड के एक प्रोड्यूसर डायरेक्टर की राय है कि जब पंजाब में ड्रग्स की लत को लेकर `उड़ता पंजाब नाम से फिल्म बन सकती है तो छत्तीसगढ़ में हो रही भारी शराबखोरी को लेकर `झूमता छत्तीसगढ़ नाम से फिल्म तो बनाई ही जा सकती है।


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