छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
अनिरुद्ध दुबे
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ की
राजनीति में काफी उथल-पुथल मची हुई है तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं। ये तो
होना ही था। जोगी के साथ कौन बड़े लोग हैं, पत्ते धीरे-धीरे खुलने शुरू हो गए। लोगों में सबसे ज्यादा अचरज इस बात को लेकर हुआ,
जब एक बड़े कार्यक्रम में पाटन के पूर्व विधायक विजय बघेल ने अजीत जोगी के साथ मंच
साझा किया। विजय बघेल के बारे में माना जाता है कि वे औरों से काफी अलग हटकर हैं।
2003 के विधानसभा चुनाव में वे वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल व्दारा खड़ी की गई
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। उस समय
बहुत से राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि विजय बघेल चुनाव जीत सकते हैं। पर उस
चुनाव में जीत मिली थी कांग्रेस के भूपेश बघेल को। बाद में विजय बघेल राकांपा
छोड़कर भाजपा में आए। 2008 के चुनाव में भाजपा ने उनको पाटन से टिकट दी और वे
भूपेश बघेल को हराकर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। वे 2008 से 2013 तक विधायक
रहे और उन पांच वर्षों में उनकी न सिर्फ राजनीतिक बल्कि और भी खूबियां सामने आईं।
विधानसभा में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शादी की पार्टियों तक में लोगों ने
विजय बघेल को फिल्म गाइड का गाना ‘’तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं…’’ उसी दौर में गाते सुना था।
उसी दौर में उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘माटी के लाल’ और ‘मोर मन के मीत’ में काम किया। उस कार्यकाल
में गृह मंत्री ननकीराम कंवर थे। विधानसभा सत्र के दौरान बड़ी अपराधिक घटनाओं पर
जब विपक्ष की ओर से सरकार पर हमला होता तो संसदीय सचिव की हैसियत से विजय बघेल ही प्रायः
जवाब देने के लिए खड़े होते थे। 2013 का चुनाव उनके लिए लकी नहीं रहा। कांग्रेस
प्रत्याशी भूपेश बघेल ने उनको हरा दिया। बहरहाल अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने
के बाद कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा जब वे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनकी सरकार पर
निशाना नहीं साध रहे हों। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के कभी प्रिय पात्र रहे
विजय बघेल यदि जोगी के साथ किसी कार्यक्रम में मंच साझा करें तो वह बड़ी खबर तो बन
ही जाती है।
ये बायोडीजल है कि
पीछा ही नहीं छोड़ता
बायोडीजल ऐसा मुद्दा बन गया है जो प्रदेश की भाजपा सरकार का पीछा ही नहीं छोड़ता।
2003 में डॉ. रमन सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, उन्होंने बायोडीजल की खूब
वकालत की थी। तब यह घोषणा हुई थी कि मुख्यमंत्री की गाड़ी बायोडीजल से चला करेगी।
उस समय ऐसा माहौल बन गया था मानो प्रदेश में बायोडीजल क्रांति आ गई हो। सरकार की ओर से कुछ समय तक बायोडीजल की बात बढ़-चढ़कर की
जाती रही, फिर आगे जाकर न जाने कैसे मामला टॉय-टॉय फिस्स हो गया। अब विपक्षी
कांग्रेस दल के बड़े नेता समय-समय पर बायोडीजल के मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगने में
कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। पिछले दिनों विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस
विधायक मोतीलाल देवांगन का लिखित में सवाल था कि वित्तीय वर्ष 2014 से लेकर 31 मई
2016 तक बायोडीजल के निर्माण में कितनी राशि खर्च की गई और कितनी राशि के बायोडीजल
का उत्पादन हुआ। इस सवाल का लिखित में जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन
सिंह ने बताया कि इस अवधि तक की स्थिति में बायोडीजल के निर्माण में 59 लाख 6 हजार
674 रुपये व्यय किए गए। 88 लाख 53 हजार 278 रुपये का बायोडीजल उत्पादित हुआ। इस
अवधि में बायोडीजल के निर्माण हेतु कच्चा माल प्राप्त करने किसी भी किस्म का पौधारोपण
नहीं किया गया। इस अवधि में बायोडीजल निर्माण के कोई संयंत्र नहीं लगाए गए हैं।
कभी बायोडीजल का खूब संदेश फैलाने वाली सरकार ने अपनी इस महती योजना से बाद
में कदम पीछे क्यों हटा लिए, इस सवाल का जवाब न सिर्फ विपक्षी नेतागण बल्कि मीडिया
वाले भी लगातार खोज रहे पर हैं, पर जवाब कहीं मिलता ही नहीं।
फिर विवादों में मेनन
आईएएस अफसर एलेक्स पाल मेनन एक बार फिर सुर्खियों में हैं। न्याय पालिका पर
टिप्पणी करने के चलते उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी कर किया
है। ये नोटिस सोशल मीडिया में उनके व्दारा की गई टिप्पणी को लेकर है। उन्होंने फेस
बुक पर राष्ट्रदोह का आरोप झेल रहे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का
समर्थन किया। इसके अलावा फेस बुक पर यह भी पोस्ट आई थी कि फांसी की सजा पाने वालों
में 94 फीसदी दलित और मुसलमान होते हैं। मेनन और विवाद का मानो चोली दामन का साथ
रहा है। वे पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब रायपुर विकास प्राधिकरण में सीईओ
पद पर उनकी पोस्टिंग हुई थी। वे उस समय दो हफ्ते भी राविप्रा के सीईओ पद पर नहीं
रह पाए थे और उनका तबादला हो गया था। यह बात अलग है कि बाद में उसी राविप्रा में वे
फिर से सीईओ बनकर आए। तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष सुनील सोनी से उनकी कभी नहीं
जमी। मेनन ने अपनी ही जिद्द पर राविप्रा दफ्तर को पुरानी जगह से नई जगह शिफ्ट
कराया। इस शिफ्टिंग से न राविप्रा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष लोग खुश थे और न ही वहां के
अन्य अधिकारी-कर्मचारी। मेनन जब सुकमा कलेक्टर थे अप्रैल 2012 में नक्सलियों ने
उनका अपहरण कर लिया था। काफी मशक्कतों के बाद प्रदेश सरकार मेनन को नक्सलियों से
छुड़ा पाई थी। किस समझौते के तहत नक्सलियों ने मेनन को छोड़ा था उस पर आज भी रहस्य
का पर्दा पड़ा हुआ है। मेनन सबसे ज्यादा विवादों में उस समय रहे जब वे बलरामपुर के
कलेक्टर थे। वहां के कांग्रेस विधायक वृहस्पत सिंह ने विधानसभा में खुला आरोप
लगाया कि मेनन की नक्सलियों से सांठगांठ है और वे उनके साथ पार्टी भी कर चुके हैं।
वृहस्पत सिंह ने मेनन के खिलाफ आंदोलन चलाए रखा था। जब सरकार ने मेनन को बलरामपुर
से हटाया तब कहीं जाकर वृहस्पत सिंह ठंडे पड़े। मेनन वर्तमान में सूचना एवं
प्रौद्योगिकी विभाग तथा चिप्स के सीईओ हैं। कारण बताओ नोटिस पर सरकार को उनके जवाब
का इंतज़ार है।
फिल्म निगमः एक अनार सौ बीमार
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की इस घोषणा के बाद कि
फिल्म विकास निगम की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी और कस्बाई व ग्रामीण क्षेत्रों
में छोटे-छोटे सिनेमाघर बनाए जाएंगे, प्रशासनिक क्षेत्र से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा
जगत तक में हलचल तेज हो गई है। फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद की दौड़ में आईएएस-आईपीएस
अफसरों से लेकर छत्तीसगढ़ी सिनेमा के डायरेक्टरों व अभिनेताओं के नामों तक की
चर्चा है। खुलकर कोई कहता नज़र नहीं आ रहा कि वह अध्यक्ष पद की दौड़ में है, लेकिन
भीतर ही भीतर कई लोगों ने फील्डिंग शुरू कर दी है। एक आईपीएस अफसर अपने बेहद करीबी
लोगों से कहते रहे हैं कि फिल्म विकास निगम बने इसके लिए मैंने अपने स्तर पर किस हद
तक पहल की, वह मैं ही जानता हूं। वहीं एक
प्रशासनिक अधिकारी जो फिल्म समारोह कराने के नाम पर काफी लोकप्रियता बटोर चुके हैं
उनके करीबी लोग उनके नाम को उपयुक्त ठहराते आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार
प्राप्त कर चुके एक अभिनेता का कहना है कि यह सुखद संयोग ही है कि जिस दिन फिल्म
विकास निगम की ज़रूरत पर अखबार में मेरा आर्टिकल पब्लिश हुआ उसी शाम मुख्यमंत्री
जी की तरफ से निगम की घोषणा हो गई। बताते हैं कभी भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव
लड़ने की इच्छा रखने वाले इस सुपर अभिनेता की भी इच्छा शक्ति फिल्म निगम अध्यक्ष
पद के लिए हिलोरें मार रही है। कोई कहता है ‘मोर छंइहा भुंइया’ फेम डायरेक्टर सतीश
जैन को अध्यक्ष बना देना चाहिए तो किसी की राय है ‘कहि देबे संदेस’ जैसी पहली छत्तीसगढ़ी
फिल्म बनाने वाले मनु नायक से बेहतर अध्यक्ष पद के लिए दूसरा कोई और हो नहीं सकता।
कभी समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे फिल्म डायरेक्टर जो इन दिनों अपनी लंबी चोटी
के लिए विख्यात हैं भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ी
सिनेमा के एक खलनायक जिन्होंने हाल ही में छॉलीवुड के नाम पर एक संगठन खड़ा किया
है वे खुले तौर पर कह रहे हैं हां मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हूं। अध्यक्ष
पद की महत्वाकांक्षा पाले हुए कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जन्म दिन या किसी खास त्यौहार
पर सीएम हाउस तथा अन्य मंत्रियों के बंगलों के आसपास बधाई संदेश वाला बोर्ड टांगने
की परंपरा निभाने से पीछे नहीं रहे हैं। बहरहाल फिल्म विकास निगम अध्यक्ष पद को
लेकर यही कहावत चरितार्थ हो रही है- ‘’एक अनार सौ बीमार’’।
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