छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ में बारिश के साथ आसमानी मौसम तो बदला
ही है, राजनीतिक फिज़ां भी बदली-बदली सी नज़र आ रही है। पहले राजनीतिक खबरें
भाजपा-कांग्रेस पर केन्द्रित रहा करती थीं अब एक और नया दल ‘छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी)’ सुर्खियों में है। पूर्व
मुख्यमंत्री अजीत जोगी यदि कोई नई राजनीतिक इबारत गढ़ेंगे, वह सुर्खियों में तो रहेगी
ही। जोगी के इस नये संगठन पर भाजपा एवं कांग्रेस के कद्दावर लोग अपने-अपने ढंग से
सोच रहे हैं। हाल ही में भाजपा के बारनवापारा अभ्यारण्य में हुए चिंतन शिविर में
बड़े नेताओं को चाय पानी के लिए जब-जब थोड़ा वक्त मिला, चर्चा में यह बात ज़रूर आई
कि जोगी के नया संगठन खड़ा करने पर किसकी
सेहत पर कितना असर पड़ेगा। राजनीति पर गहन चिंतन करने वाले कुछ बुद्धिजीवियों का
मानना है कि यह भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि 2018 के विधानसभा चुनाव में अजीत
जोगी और उनका नया राजनीतिक दल केवल कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होगा, जहां ज़रूरत
महसूस होगी उन सीटों पर जोगी खेमा भाजपा के उम्मीदवारों को भी नुकसान पहुंचाने में
कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। यदि जोगी का दल पांच-छह सीट भी जीत ले आया तो सरकार
बनाने के समीकरण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका तो हो ही जाएगी। बहरहाल श्रीमती रेणु
जोगी को लेकर जो सस्पेंस बरकरार था उस पर से धुंध छंट चुकी है। कांग्रेस विधायक दल
की बैठक में शामिल होकर श्रीमती जोगी ने संकेत दे दिया कि वे विधानसभा के मानसून
सत्र में कांग्रेस विधायक दल की उपनेता वाली जगह पर ही बैठेंगी।
जोगी तेरी लीला न्यारी...
सावन का महीना लगने में अब ज्यादा वक्त नहीं।
सावन के महीने में मंदिरों में खूब भजन कीर्तन चलता है। भगवान शंकर के बहुत से
मंदिरों में यह पॉपुलर भजन सुना जा सकता है- “जोगी तेरी लीला न्यारी, बम
बम बम बम बम भोला...”। अजीत जोगी की कार्य शैली पर गौर करें तो क्या वह कम
न्यारी है। जोगी अलग-अलग समय पर जो राय बनाते रहे उस पर उन्हें बदलते देखा गया।
जोगी जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि नेताओं को साठ साल के बाद राजनीति
से संन्यास ले लेना चाहिए। यह अलग बात है कि आज वे सत्तर के करीब पहुंच रहे हैं और
राजनीति के क्षेत्र में अब भी पूरा जी जान लगाए हुए हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव के
समय जब उनका जबर्दस्त एक्सीडेंट हुआ, तब महीने भर इलाज के लिए लंदन में थे। वहां
उन्होंने एक आर्टिकल लिखा जो कि अखबारों में पब्लिश हुआ था। जोगी ने लेख में अपनी
भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा था कि अब मैं नये तरीके का जीवन जीयूंगा। आगे चलकर
उनके तरीकों में कौन सा बदलाव आया उसे समझने की कोशिश में आज भी कई लोग लगे हुए हैं। 2013 में बेटे अमित
जोगी के चुनाव जीत जाने के बाद जोगी जी ने कहा था कि साल भर सक्रिय राजनीति से दूर
रहूंगा। खूब पढ़ूंगा-लिखूंगा तथा धर्म और अध्यात्म को और करीब से समझूंगा। इस काम
के लिए उन्होंने अपने बंगले के खाली पड़े हिस्से में एक बड़े हाल का निर्माण
करवाया। वहां पर एक बार पद्मश्री ख्याति प्राप्त भारती बंधु का भजन भी हुआ, जिसमें
जोगी और उनके करीबी समर्थक झुमते नज़र आए थे। बाद में ना जाने हालात कैसे बदलते
चले गए धर्म और अध्यात्म का सिलसिला बीच में ही थम गया और जोगी 2014 का लोकसभा
चुनाव महासमुंद सीट से लड़ गए, जिसमें उन्हें भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू के हाथों
पराजय मिली। ये वही अनोखा लोकसभा चुनाव था जिसमें भाजपा प्रत्याशी को मिलाकर दर्जन
भर चंदूलाल महासमुन्द सीट से चुनावी मैदान में थे जिसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर
हुई थी। जो हो, जोगी अभी न तो राजनीति से रिटायर होने वाले हैं और न ही उन्हें अभी
धर्म और अध्यात्म के लिए समय मिल पाएगा। नई ‘जनता कांग्रेस’ की जमीन मजबूत करने दिन रात
लगे जो रहना पड़ेगा।
सुर्खिंयों में राय
आर. के. राय वो शख्स हैं जो ढाई साल के विधायक
कार्यकाल में लगातार सुर्खियों में हैं। इस कार्यकाल में शायद ही कोई दूसरा नया
विधायक हो, जिसकी चर्चा मीडिया में इतनी होती रही हो। राय पुलिस अफसर की नौकरी से
इस्तीफा देकर राजनीति में आए। काफी विरोध होने के बाद भी न सिर्फ कांग्रेस की टिकट
लेने में कामयाब रहे, बल्कि विधायक चुनाव भी जीते। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत
जोगी का ब्लाइंड सपोर्टर माना जाता है। राय को जब लगता है तो वे बड़े नेताओं पर
निशाना साधने से भी नहीं चूकते। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के समय कांग्रेस
आलाकमान के सबसे ज्यादा विश्वसनीय माने जाने वाले मोतीलाल वोरा जैसे नेता पर राय
गंभीर आरोप लगाने से पीछे नहीं रहे थे, जिसके कारण वे कुछ समय कांग्रेस से निलंबित
भी रहे। अब वे खुले तौर पर यह कहते नज़र आ रहे हैं- हां मैं अजीत जोगी के साथ हूं,
जिसे जो करना है कर ले। बताते हैं राय व्दारा कही गई यह बात कांग्रेस राष्ट्रीय
महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद के कानों तक पहुंच चुकी है। राय को
लेकर करना क्या है, बड़े नेता अभी इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं। राय
दावे के साथ कहते हैं- मैं जो भी कहता हूं या करता हूं पूरे होश हवाश के साथ करता
हूं। अध्ययन में जुटे रहना मेरी प्रवृत्ति है। विधानसभा चुनाव कैसे नये अंदाज में
लड़ा जाए इस पर चिंतन मनन करने मैंने राजस्थान की यात्रा की थी। राजस्थान जाकर
समझने की कोशिश की कि वहां के राजे-महाराजे कौन सी रणनीतियों पर चलते हुए अपने
शत्रुओं को निपटाते थे। राजस्थान में हासिल किए गए अनुभव मुझे छत्तीसगढ़ में काम आ
रहे हैं।
रायपुर एयरपोर्ट अब नहीं नंबर वन
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा कई बार देखने में आया
है कि बड़ी घोषणाएं, बड़े काम या बड़ी उपलब्धि ज्यादा समय तक टिके नहीं रह पाती।
कुछ दिनों पहले जो रायपुर एयरपोर्ट सुविधाओं में नंबर वन था खिसककर नंबर दो पर आ
गया। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ताजा सर्वे रिपोर्ट तो कुछ ऐसा ही बयां कर रही
हैं। ये वही रायपुर एयरपोर्ट है जहां पिछले अप्रैल महीने में विमान से उतरने के
बाद एक्ट्रेस दीपा सही ने कहा था “वॉव... ऐसा एयरपोर्ट तो गोवा का भी नहीं है”। उस दौरान दीपा के फिल्म
डायरेक्टर पति केतन मेहता भी साथ थे। कभी बायो-डीजल (रतनजोत) के इस्तेमाल पर शासन
की ओर से बढ़-चढ़कर घोषणाएं हुई थीं। आगे जाकर यह काम पिछड़ गया। घोषणा तो यहां तक
हुई थी कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कार बायो-डीजल से चलेगी। कुछ दिन चली, फिर
बंद हो गई। इसी तरह आंशिक शराब बंदी में भी प्रदेश पिछड़ गया। सरकार ने घोषणा की
थी कि पूर्ण तो नहीं पर आंशिक शराब बंदी की तरफ हमारे कदम बढ़ रहे हैं। कदम कहां
तक बढ़े थे ये तो पता नहीं, गांव-गांव हर शाम जाम ज़रूर छलक रहे हैं।
बार और चीतल रेस्टॉरेंट
भाजपा के चिंतन शिविर के कारण बारनवापारा
अभ्यारण्य पिछले दिनों लगातार चर्चा में रहा। इस अभ्यारण्य के साथ कुछ अलग ही तरह
की बातें जुड़ी हुई हैं। शिकार पर प्रतिबंध होने के बावजूद आए दिन बारनवापारा
अभ्यारण्य में चीतल व भालुओं के शिकार की खबरें सामने आती रहती हैं। इंटरनेट के इस
युग में आजकल नाम से लेकर काम तक शार्ट में होने लगा है, इसलिए बारनवापारा ‘बार’ कहलाने लगा है। बारनवापारा
में पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटन विभाग ने एक रेस्टॉरेन्ट भी खोल रखा है,
जिसका नाम भी पता नहीं किस बुद्धिमान ने ‘चीतल रेस्टॉरेन्ट’ रख दिया है। चीतल
रेस्टॉरेन्ट यह नाम कानों में पड़ता है तो पर्यटकों के मन में कुछ अजीब सा बोध होता
है। यहां तक कि चीतल रेस्टॉरेन्ट का पूरा स्टाफ भी इस नाम को लेकर खुश नहीं है।
लेकिन अफसरों के आगे इसे गलत ठहराकर कौन अपनी नौकरी खतरे में डाले। बार और चीतल
रेस्टॉरेन्ट ये दोनों शब्द कितने ही पर्यटकों की नापसंदगी बने हुए हैं।
राजधानी में दनादन गोलियां
राजधानी रायपुर में पंद्रह दिनों के भीतर तीन
लोगों पर बंदूक से प्राणघातक हमला हुआ। एक बाल-बाल बचा और दो लोगों की जान चली गई।
राजधानी में कानून व्यवस्था की तो मानो लगातार धज्जियां उड़ रही हैं। पुलिस का डर
भय रहा नहीं। कोई दिन में गोली चला रहा है तो कोई शाम में। घर लौट रहे व्यापारी की
रात में गोली मारकर हत्या की गई उस समय भी कोई ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। चौराहे
में लगे ट्रैफिक सिग्नल पर पुलिस वाले सिर्फ टाइम पास करते दिखते हैं। गौरव पथ और एयरपोर्ट
जाने वाले वीआईपी रोड पर खुले आम यातायात कानून का उल्लंघन होते रहता है। व्यस्ततम
ट्रैफिक के समय में भी बीच रास्तों पर रईस घरों की बिगड़ैल औलादें बाइक रेस करते
नज़र आ जाती हैं। यहां तक कि शंकर नगर मार्ग जहां मंत्रियों के बंगले हैं और पुलिस
महानिरीक्षक का दफ्तर है वहां भी बाइक रेस का नज़ारा सुबह शाम दिख जाता है। जहां
सरकार बैठी है उस शहर का जब ये हाल है फिर बाकी का तो भगवान ही मालिक है।
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